क्रिस श्रीकांत
ऐसा लग रहा है कि टीमवर्क का मंत्र आइपीएल के इस सीजन में बखूबी काम कर रहा है. इस बात में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चेन्नई सुपरकिंग्स ने जिन नौ सीजन में हिस्सा लिया, उसमें से उन्होंने सातवीं बार फाइनल में जगह बनायी. उनकी जीत का फॉर्मूला एकदम साफ है. कुछ खिलाड़ियों पर निर्भर होने के बजाय एक इकाई के रूप में प्रदर्शन करें. मेरे हिसाब से संतुलन और आॅलराउंडरों की ताकत के नजरिए से चेन्नई और कोलकाता इस सीजन की सर्वश्रेष्ठ टीम रहीं हैं. टी-20 ऐसा प्रारूप है, जहां गलती की गुंजाइश बेहद कम होती है. यही वजह है कि जब एक या दो खिलाड़ी मौका आने पर प्रदर्शन करने में नाकाम रहे, तो कुछ टीमों को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा.
महेंद्र सिंह धौनी ने खिलाड़ियों को यह विश्वास दिलाया कि एकजुट होकर प्रदर्शन करने से बेहतर कुछ नहीं है. यह भरोसा जगाने के लिए धौनी की जितनी तारीफ की जाेय, कम है. चेन्नई के खुशनुमा माहौल में हर खिलाड़ी अपनी भूमिका और जिम्मेदारी जानता है. मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन आइपीएल जैसे बेहद दबाव वाले टूर्नामेंट में सिर्फ कुछ खिलाड़ियों के योगदान के दम पर खिताब नहीं जीता जा सकता. जरा भारत के तीन बड़े खिताबों पर नजर डालिए.
1983 और 2011 का विश्व कप और 1985 की विश्व चैंपियनशिप. इन सभी में एक चीज समान है, वो ये कि टीमवर्क से बेहतर कुछ नहीं है. तीनों खिताबों में हमें कई बेहतरीन व्यक्तिगत प्रदर्शन देखने को मिले, लेकिन अंत में वो टीम का एकजुट प्रदर्शन ही था, जिससे खिताब हाथ लगा.
(टीसीएम)