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लोकतंत्र को बचाने के लिए हर नागरिक करे पहल

मौसम महांति, लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं. आज पूरे देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है. भारतीय संसद में भारत के संविधान के लागू होते ही 26 जनवरी, 1950 को हमारा देश पूरी तरह से लोकतांत्रिक गणराज्य बना था. पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा होती रही है. भारत को दुनिया के सबसे समृद्ध, […]

मौसम महांति, लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं.

आज पूरे देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है. भारतीय संसद में भारत के संविधान के लागू होते ही 26 जनवरी, 1950 को हमारा देश पूरी तरह से लोकतांत्रिक गणराज्य बना था. पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा होती रही है. भारत को दुनिया के सबसे समृद्ध, प्रगतिशील व बड़े लोकतांत्रिक देश का गौरव प्राप्त है. दुनिया के विभिन्न देशों के लोग भारतीय लोकतंत्र की प्रशंसा करते रहे हैं. प्रेरणा लेते हैं. इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता कि भारतीय लोकतंत्र इतना मजबूत तो है कि इसकी हत्या नामुमकिन है. भारत दुनिया में इकलौता देश है, जहां हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता के पहले दिन से ही मतदान का अधिकार दिया गया.

अमेरिका, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़े लोकतंत्र है, उसने स्वतंत्रता के 150 से अधिक वर्षों बाद नागरिकों को मतदान का अधिकार दिया. स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव एक अच्छे लोकतंत्र की स्थापना की कुंजी है. जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटाचलैया पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं कि एक अदना-सा व्यक्ति एक अदने से बूथ तक चलने और एक अदने से कागज के टुकड़े पर पेंसिल से एक अदना-सा निशान बना कर राजनीतिक क्रांति का अग्रदूत साबित हो सकता है. भारत अपनी चुनाव प्रणाली पर निश्चित रूप से गर्व कर सकता है, जिसने इस क्षेत्र के कई अन्य देशों के विपरीत सत्ता के समयबद्ध मार्ग प्रशस्त कर दिया है.

भारतीय लोकतंत्र की स्तुति में और कई सारी बातें हो सकती हैं, कई सारे तथ्य हो सकते हैं. बावजूद इसके मन के किसी कोने में बार-बार यह सवाल भी पैदा होता है कि क्या 68 की उम्र में भारतीय लोकतंत्र मजबूत होने की बजाय कमजोर हुआ है? 68 वर्षीय भारतीय लोकतंत्र को बच्चा माना जाये, युवा माना जाये, अधेड़ माना जाये या फिर बुढ़ापे की ओर बढ़ता हुआ माना जाये? आर्थिक-औद्योगिक-तकनीकी विकास की एक से बढ़ कर एक उपलब्धियों के आंकड़े के बावजूद देश के कोने-कोने में गरीबी-भूख-बीमारी से मौत के आंकड़े यह सोचने को मजबूर करते हैं कि क्या भारत सचमुच एक लोकतांत्रिक देश है?

इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी विकास की मुख्य धारा से बाहर है. यह तो सर्वविदित है कि शासन-प्रशासन चलाने के लिए लोकतंत्र से बेहतर व्यवस्था और कुछ नहीं हो सकती है. हमने देखा है कि दुनिया के कई देशों में राजतंत्र से, तानाशाही शासन से, समाजवादी से लेकर सैन्य शासन से अजीज होकर जनता लोकतंत्र की मांग को लेकर विद्रोह करती है. सड़क पर उतरती है. खून-खराबा होता है. दुर्भाग्य यह कि बिना खून बहाये हमें लोकतंत्र के रूप में जो अनमोल रत्न मिला, उस पर आज चापलूस, निकम्मे, अयोग्य, अपराधी व संपन्न लोगों का कब्जा होता जा रहा है.

हमारा गणतंत्र अब तक यह प्राथमिक व्यवस्था भी खड़ी नहीं कर सका है कि अपराधी और असामाजिक तत्व लोकसभा और विधानसभा में पहुंच कर विधायिका को प्रभावित न कर सकें. जो विधान के अपराधी हैं, वे ही विधान निर्माता बन जायेंगे, तब क्या होगा? तब सदन में सरकार ही यह व्यवस्था ले कर आयेगी कि अपराधियों को चुनाव लड़ने से और विधायिका में बैठने से रोका नहीं जायेगा.

लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया का मतलब सर्वश्रेष्ठ पद पर सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति का चयन. यानी पंचायत में मुखिया से लेकर विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के पद तक योग्य व्यक्ति का चयन होना. आज चुनाव में जाति, धर्म, पैसा, लहर, मुर्गा-भात-शराब का गहरा असर दिखता है. प्रत्याशी की योग्यता गौण होती गयी है. हां, यह जरूर है कि लोग कहते हैं कि लोकतंत्र को बचने के लिए अच्छे लोगों को राजनीति में आना होगा, तभी गलत लोगों के हाथों से लोकतंत्र और देश को मुक्ति मिलेगी. सच तो यह है कि अच्छे लोग राजनीति में आते हैं, लेकिन इतने खराब अनुभव से गुजरते हैं कि फिर चुनाव लड़ने का सपना छोड़ देते हैं.

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