राजकुमारी अमृत कौर (1889-1964)
उन्होंने देश की सेवा के लिए राजसी जीवन छोड़ दिया था. उनके पिता राजा हरनाम सिंह और रानी हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं. अमृत कौर उनकी एकलौती बेटी और सात भाइयों की एकमात्र बहन थीं. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के स्कूल शेरबॉन से पूरी की थी. अमृत कौर ने स्नातक की डिग्री ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया था. वे टेनिस की बेहतरीन खिलाड़ी थीं और इस खेल के लिए उनको बहुत सारे पुरस्कार भी मिले थे. भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी.
उन्होंने एक समाज सुधारक के तौर पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया. राजा हरनाम सिंह बहुत धार्मिक और नेक दिल इंसान थे, वे अक्सर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं जैसे गोपाल कृष्ण गोखले आदि से मिलते रहते थे. शिक्षा पूरी करने के बाद अमृत कौर ने भी स्वाधीनता संग्राम के प्रति रुचि लेना शुरू किया और स्वतंत्रता सेनानियों के कार्य शैली के बारे में जानकारी हासिल की थी. वे महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं. जलियावाला बाग कांड ने उनको बहुत आहत किया था और वहीं से उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने का निर्णय लिया था.
अमृत कौर पहली महिला थीं जो केंद्र में पद संभाल रही थीं. अमृत कौर ने ̔स्वास्थ विभाग̕ का कार्यभार संभाला. केंद्र सरकार में अमृत कौर एकमात्र ईसाई थीं. वर्ष 1957 तक अमृत कौर भारत की ̔स्वास्थ्य मंत्री थीं. आजादी के बाद अमृत कौर जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में केंद्र सरकार में शामिल हुईं. अमृत कौर पहली महिला थीं, जो केंद्र में पद संभाल रही थीं. अमृत कौर ने ̔स्वास्थ विभाग̕ का कार्यभार संभाला.
केंद्र सरकार में अमृत कौर एकमात्र ईसाई थीं. वर्ष 1950 में उन्होंने ̔विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था. ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली̕ की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही.