आमतौर पर बिरहार जनजाति के लोग रस्सी बनाने के लिये जूट, सन्न या जंगली वनस्पति सबै का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, इन दिनों बिरहोरों ने रस्सियां बनाने का अपना तरीका बदल दिया है और सामग्री भी. अब बिरहोर रस्सियां बनाने के लिये परंपरागत जूट या सन का इस्तेमाल करने बजाय प्लास्टिक बोरों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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बिरहोरों ने रस्सियां बनाने के पुस्तैनी काम को बनाया मॉर्डन, बने वोकल फॉर लोकल
बिरहोर, एक आदिम जनजाति, जो झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के जंगली इलाकों में निवास करती है. इनका मुख्य पेशा रस्सियां बनाना होता है. रस्सियां बनाने के लिये बिरहोर जनजाति के लोग किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इनके पास पुस्तैनी कला है. हाथों से रेशों को रस्सियों के रूप में गूंथ लेने का. आमतौर पर बिरहार जनजाति के लोग रस्सी बनाने के लिये जूट, सन्न या जंगली वनस्पति सबै का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, इन दिनों बिरहोरों ने रस्सियां बनाने का अपना तरीका बदल दिया है और सामग्री भी. अब बिरहोर रस्सियां बनाने के लिये परंपरागत जूट या सन का इस्तेमाल करने बजाय प्लास्टिक बोरों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
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