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शिव में निहित है परोपकार की सर्वोच्च क्षमता

परम पुरुष सर्वोच्च सत्ता है, जो तीनों लोकों का केंद्र बिंदु है. हे ईश्वर! मैं खुद को आपको समर्पित करता हूं, क्योंकि आप सर्वोच्च आश्रय हैं. अपना सर्वस्व आपके चरणों में अर्पण करता हूं. ब्रह्मांड में कोई दूसरी सत्ता नहीं है, जिसे सब समर्पित किया जा सके.

मनुष्य आंतरिक हृदय की मिठास और आकर्षण से निर्देशित होकर भगवान से प्रार्थना करते हैं- हे शिव सर्वोच्च शक्तिमान, सूक्ष्म दुनिया के ईश्वर को नमस्कार! मैं खुद को पूरी तरह आपको समर्पित करता हूं. आप सूक्ष्म जगतों के सर्वोच्च गंतव्य हैं. साधक सर्वप्रथम भगवान को संबोधित करते हैं- हे परम पुरुष, आप परम सत्ता हैं, आप शिव हैं. यहां शिव का अर्थ सर्वोच्च सत्ता से है, जो सब देख, सुन और समझ रहा है. उसके ज्ञान के बिना कुछ करने की क्या बात है! जो सभी घटनाओं का मौन साक्षी है, वह शिव है. वह सभी लीलाओं में नायक की भूमिका निभाता है. वह निष्कलंक, सर्वज्ञ है, जो हर समय सभी के कल्याण के विचार से व्याप्त है.

शिव का अर्थ कल्याण का अवतार

शिव का अर्थ कल्याण का अवतार भी है. यदि उन्होंने परम कल्याणकारी पिता की भूमिका न निभाई होती, तो सूक्ष्म जगत में एक भी जीव, एक क्षण भी जीवित न रह पाता. मनुष्य इसलिए जीवित हैं, क्योंकि वे हर पल उनके परोपकारी स्पर्श को महसूस करते हैं. उन्हीं में सभी गतियों का समापन है, उनमें परोपकार की सर्वोच्च क्षमता निहित है. वे न केवल सर्वोच्च, बल्कि पूर्ण कल्याण के अवतार हैं.

अपना सब कुछ उन्हें समर्पित करने के बाद मनुष्य को जो आनंद प्राप्त होता है, वह इतना गहरा है कि मानव के छोटे मन द्वारा मापा नहीं जा सकता. जब तक हमारा मन बाहरी वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है, तब तक हृदय बेचैन रहता है और शोकपूर्वक कहता है, “मुझे भूख लगी है.” इस अतृप्त भूख को सांसारिक दुनिया की किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं किया जा सकता है. केवल सर्वोच्च शांत इकाई, जिसमें इस ब्रह्मांड की सभी वस्तुएं, चाहे चेतन या निर्जीव, सकारात्मक या नकारात्मक, आश्रय लेती हैं, वही मनुष्य की असीमित भूख को संतुष्ट कर सकती है. केवल वे ही मनुष्य को आंतरिक शांति का लेप लगाकर आनंद के धाम में स्थापित कर सकते हैं. इस शांत अस्तित्व का दूसरा नाम शिव है.

मानसिक-आध्यात्मिक मार्ग को चार चरणों में विभाजित किया गया है- यातमान, व्यतिरेक, एकेंद्रिय और वशीकरण. जब मन स्थूल और सूक्ष्म के बीच घूमता है, तो यह यातमन अवस्था है. जब मन क्षुद्र लाभ और हानि के बीच झूलने के बाद उस बंधन को तोड़ कर मानसिक आनंद की दुनिया में डुबकी लगाना चाहता है, तो यह दूसरा चरण है व्यतिरेक. जब आनंद चांदनी रात में रोशनी की बाढ़ की तरह आता है, तो वह एकेंद्रिय है. और जब कोई मानसिक-आध्यात्मिक प्रयास के माध्यम से सभी सांसारिक लालसाओं को निलंबित करके पूर्ण दुनिया में खुद को स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत करता है, तो यह वशीकरण है.

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