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JMM सुप्रीमो शिबू सोरेन ने धनबाद के जिस पोखरिया गांव से छेड़ा था आंदोलन, वह इलाका विकास से अब भी दूर

jharkhand news: JMM सुप्रीमो शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ धनबाद के टुंडी स्थित जिस पोखरिया गांव से आंदोलन छेड़ा था, वह आज विकास से कोसों दूर है. इसी गांव में गुरुजी ने पोखरिया आश्रम बनाये थे. हालांकि, कई कार्य हुए हैं, लेकिन विकास की रफ्तार तेज गति से नहीं चल रही है.

Jharkhand News: धनबाद के टुंंडी क्षेत्र का पोखरिया वही गांव है, जहां से JMM सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. यहीं पर झारखंड राज्य के गठन की रूपरेखा तय हुई थी. पर यहां की उपेक्षा से ऐसा नहीं लगता है कि दिशोम गुरु के प्रति श्रद्धा रखनेवालों का यह तीर्थस्थल है. एक तरफ झारखंड की राजधानी रांची में शिबू सोरेन के आवास को राजकीय धरोहर का रूप दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर दिशोम गुरु की बीजभूमि को लेकर शासन की उपेक्षा है. आज यहां के बच्चे पढ़ना चाहते हैं. स्कूल मर्जर के कारण बंद हो गया है. अब पढ़ाई का संकट है. बच्चों को पढ़ाई के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. स्थिति तो यह है कि अब तो स्कूल में पुआल और धान रखा जाता है. प्रभात खबर ने पोखरिया गांव का जायजा लिया. राज्य बनने के 21 वर्ष बाद भी स्थिति नहीं बदली है.

गुरुजी के संघर्ष के दिनों का ठिकाना है पोखरिया आश्रम
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दिशोम गुरु शिबू सोरेन का संघर्ष दरअसल इसी गांव से शुरू हुआ था. उनका मुख्य ठिकाना पोखरिया गांव था. इसी गांव में श्याम लाल मुर्मू (अब शहीद) के घर दिशोम गुरु रुका करते थे. संघर्ष के दिनों में यहीं छिपते थे. गुरुजी ने यहां पोखरिया आश्रम बनाया था. आज आश्रम में विधायक फंड से कुछ कमरे बनाये गये थे, लेकिन कोई खास सुविधा उपलब्ध नहीं है.

पोखरिया आश्रम से गुरुजी को जोहार
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शहीद श्याम लाल की पत्नी बहली देवी एवं उनके परिजन इसी आश्रम में रहते हैं. आश्रम के नाम पर कुछ जमीन है. इसमें खेती कर बहली देवी का परिवार गुजर-बसर करते हैं. हालांकि, अब आश्रम के लिए कुछ विस्तृत याेजना धनबाद प्रशासन ने बनायी है. धनबाद के डीडीसी भी आये थे. आज भी यहां के लोग गुरु जी की कहानियां सुनाते रहते हैं और उन्हें जोहार करते हैं.

इंदिरा, पीएम आवास नहीं मिला
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शहीद श्याम लाल मुर्मू के पुत्र प्रकाश मुर्मू कहते हैं कि उनके पिता की हत्या नक्सलियों ने वर्ष 1994 में कर दी थी. उसके बाद कई बार यहां के अधिकारियों से इंदिरा आवास फिर पीएम आवास योजना के तहत आवास के लिए गुहार लगायी. अभी कुछ दिन पहले उसकी मां बहली देवी के नाम एक पीएम आवास स्वीकृत भी हुआ है, लेकिन अभी तक राशि नहीं मिली है.

गुरुजी से अब भी उम्मीद
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पोखरिया, धनबाद जिले के अत्यंत नक्सल प्रभावित इलाका रहे टुंडी प्रखंड के मनियाडीह थाना के सामने ही है. ग्रामीणों को उम्मीद थी कि राज्य गठन के बाद पोखरिया गांव की तस्वीर बदलेगी. सभी को पक्का मकान और शुद्ध पेयजल मिलेगा. उच्च शिक्षा की व्यवस्था होगी. रोजगार मिलेगा. पर, यहां के लोगों में निराशा है. करीब 200 की आबादी वाले इस गांव में एक ही महिला को सरकारी नौकरी मिली है. दो पारा शिक्षक हैं. इसके बावजूद गुरुजी शिबू सोरेन से प्रेम अगाध है. उन्हें लगता है कि अब गुरुजी के पुत्र हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं. गांव की स्थिति में कुछ सुधार जरूर आयेगा.

स्वास्थ्य केंद्र की भी कोई नहीं व्यवस्था
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पोखरिया गांव या आसपास में कोई स्वास्थ्य केंद्र या उपकेंद्र की भी व्यवस्था नहीं है. बीमार पड़ने पर गांववाले पहले खुद से ही इलाज करने की कोशिश करते हैं. अधिक परेशानी होने पर टुंडी सीएचसी या शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) जाने को मजबूर होते हैं. इस रास्ते में सार्वजनिक वाहन भी नहीं के बराबर चलने से मरीजों को हॉस्पिटल ले जाने के लिए ऑटो या मैक्सी गाड़ी रिजर्व करना पड़ता है. इसमें काफी राशि खर्च हो जाती है. इस इलाके में मलेरिया का भी अक्सर प्रकोप होता है. हर साल बहुत सारे लोग मलेरिया से ग्रसित हो रहे हैं.

24 में से 18 घंटे नहीं मिलती बिजली
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ग्रामीणों ने कहा कि गांव में बिजली तो है, पर 24 घंटे में से 17-18 घंटे बिजली नहीं रहती है. दिन में अधिकांश समय तो बिजली गुल ही रहती है. शाम 6 बजे तक आती है और रात 10 बजे तक चली जाती है. कभी-कभी देर रात कुछ देर के लिए बिजली आती है. लेकिन, अधिकांश रात अंधेरे में ही गुजरती है. गांव में स्ट्रीट लाइट भी नहीं लगा है. कई बार स्थानीय मुखिया व अन्य जनप्रतिनिधियों से शिकायत की गयी है. हर बार आश्वासन मिलता है कि लग जायेगा. सोलर लाइट की भी व्यवस्था नहीं है. कम से कम सोलर स्ट्रीट लाइट लग जाये, तो रात को अंधेरे से मुक्ति मिलेगी. आसपास जंगल व पहाड़ होने से जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है.

स्नातक करने के पास भी नहीं मिली नौकरी
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गांव के युवा अनीश टुडू कहते हैं कि बहुत संघर्ष करके स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की. रोजगार की तलाश में हैं. कोई नौकरी नहीं मिल रही है. कहा कि पूरे गांव में सिर्फ एक महिला को BCCL में स्थायी नौकरी मिली है. वह भी अनुकंपा के आधार पर मिली है. दो पारा शिक्षक भी हैं. नौकरी नहीं मिलने के कारण अब खुद राशन की दुकान खोलना चाहते हैं. इसके लिए भी सरकारी योजना से लोन के लिए प्रयासरत हैं.

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गांव की बुजुर्ग महिला टुंपी टुडू कहती हैं कि उनलोगों को अबतक कोई सरकारी आवास नहीं मिला है. मिट्टी के दीवार और खपड़ैल के सहारे सिर छुपाने को मजबूर है. कई बार आवास के लिए आवेदन दे चुकी है. वहीं, वृद्धा पेंशन का भी लाभ नहीं मिला है. ठंड से बचने के लिए धनबाद से लकड़ीवाला कोयला मंगाकर जलाती है.

ग्रामीणों की इच्छा है कि मुख्यमंत्री आएं पोखरिया

पोखरिया के ग्रामीणों की इच्छा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक बार खुद आकर गांव की हालत को देखें. एक आदर्श ग्राम के रूप में इसे विकसित करने के लिए पहल करें. मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन यहां एक बार भी नहीं आये हैं. एक बार डिप्टी सीएम के रूप में यहां आये थे. ग्रामीणों ने कहा कि झारखंड आंदोलन की चर्चा होती है, तो पोखरिया का नाम आता है. यह सुनकर अच्छा लगता है. लेकिन, झामुमो के सत्ता में आने के बाद भी यहां की तस्वीर वैसी नहीं बदली, जैसे अपेक्षा थी. पहले गुरुजी शिबू सोरेन यहां बीच-बीच में आते थे. अब नहीं आ पाते. इसके कारण गांव के लोग कुछ समस्या भी नहीं बता पाते. अगर सीएम या गुरुजी यहां आये, तो अपनी बातों और समस्याओं को सही तरीके से बता सकते हैं. साथ ही उन समस्याओं का निराकरण भी हो सकता है.

धान की ही होती है खेती

पोखरिया गांव में केवल धान की खेती होती है. सारे ग्रामीण साल में एक बार धान की खेती करते हैं. जो खुद से खेती नहीं कर पाते, वो लोग बंटाई पर खेत दे देते हैं. 50-50 प्रतिशत पर खेती होती है. पोखरिया आश्रम की जमीन पर भी धान की ही उपज होती है. ग्रामीणों के अनुसार, खाने लायक धान तो पैदा होता ही है, बेचने लायक भी कुछ धान हो जाता है. खेती के बाद वाले समय में रोजगार के लिए धनबाद या दूसरे जगह चले जाते हैं. कई लोग ईंट और कोयला भट्ठा में दैनिक मजदूरी करते हैं.

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पोखरिया के ग्रामीण अपने खेतों में बाजार से खरीदकर खाद नहीं डालते हैं. ग्रामीणों के अनुसार, केवल गोबर खाद ही डालते हैं. धान के अलावा बाड़ियों या घरों में सब्जी, बाजरा आदि लगाते हैं. पूरी खेती ऑर्गेनिक होती है. यह परंपरा दशकों से चल रही है. इन सब्जियों का इस्तेमाल खुद खाने के लिए करते हैं. कुछ लोग आसपास के बाजार में जाकर सब्जियों को बेचते भी हैं. कहते हैं कि यहां की जमीन इतनी अच्छी है कि खाद का उपयोग नहीं करने के बावजूद पैदावार अच्छी होती है.

पोखरिया आश्रम के विकास के लिए प्रयत्नशील : मथुरा प्रसाद महतो

इस संबंध में टुंडी विधायक मथुरा प्रसाद महतो कहते हैं कि शिबू आश्रम, पोखरिया के विकास के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं. आश्रम के अधिकांश हिस्सों का पक्कीकरण करा दिया गया है. गांव में चापानल लगाया गया है. कई लाभुकों को पीएम आवास योजना का लाभ दिलाया है. जो बचे हैं उनको भी दिलाया जायेगा. हाल ही में डीडीसी को पोखरिया आश्रम लाये थे. आश्रम के विकास की रूपरेखा तय की गयी है.

रिपोर्ट: संजीव झा, धनबाद.

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