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लातेहार के पतकी जंगल में भोजन के नाम पर बंदरों को ‘मौत’ बांट रहे लोग

इंसानों की करतूतों की वजह से पतकी जंगल के हजारों बंदरों की जिंदगी खतरे में है. हुआ यूं की पतकी जंगल से नक्सली और सड़क लुटेरों को खदेड़ने के लिए सीआरपीएफ कैंप की स्थापना की गयी. सेना के जवान यहां पहुंचे, तो नक्सली और सड़क लुटेरे को भाग गये, लेकिन उनके फेंके गये भोजन खाने के लिए बंदर यहां आने लगे.

झारखंड में रांची-मेदिनीनगर मुख्य मार्ग पर लातेहार जिला में है पतकी जंगल. एक समय था, जब शाम ढलने के बाद पुलिस हो या पब्लिक, इस इलाके से गुजरने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी. वजह थे नक्सली और लुटेरे. इंसानों के लिए वो दहशत भरे दिन तो अब नहीं रहे, लेकिन पतकी जंगल से गुजरने वाली सड़क से गुजरने वाले लोगों की पुण्य कमाने की भूख बेजुबान जानवरों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं.

खतरे में पड़ी हजारों बंदरों की जिंदगी

इंसानों की करतूतों की वजह से पतकी जंगल के हजारों बंदरों की जिंदगी खतरे में पड़ गयी है. हुआ यूं की पतकी जंगल से नक्सली और सड़क लुटेरों को खदेड़ने के लिए सीआरपीएफ कैंप की स्थापना की गयी. सेना के जवान यहां पहुंचे, तो नक्सली और सड़क लुटेरे को भाग गये, लेकिन उनके फेंके गये भोजन खाने के लिए बंदर यहां आने लगे. लगातार भोजन मिलने लगा, तो बंदर यहीं जम गये.

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लगातार बढ़ती गयी बंदरों की संख्या

पहले तो ये बंदर कैंप के अंदर तक सीमित थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी तादाद बढ़ती चली गयी. अब उनकी तादाद इतनी बढ़ गयी है कि सड़क के दोनों ओर जमे रहते हैं. बंदरों को सड़क पर देखकर उधर से गुजरने वाले लोग उन्हें खाना जरूर खिलाते हैं. देखते ही देखते बंदरों को खाना खिलाना मनोरंजन का साधन भी बन गया. पुण्य कमाने के लिए गाड़ी रोककर बंदरों को भोजन करने का सिलसिला चल पड़ा.

आसानी से भोजन के आदी हो गये जंगली बंदर

नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में बंदरों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी. आसानी से भोजन उपलब्ध हो जाने की वजह से बंदरों ने अपना स्वाभाविक खाना छोड़ दिया. यही इनके लिए काल साबित हो रहा है. कुरकुरे, चिप्स, बिस्कुट, बादाम, ब्रेड, रोटी आदि के साथ इनके पेट में प्लास्टिक भी जाने लगा. तेल से तला-भुना खाद्य पदार्थ भी ये खाने लगे. इससे बंदरो में तेजी से चर्मरोग फैल रहा है. गला, फेफड़ा, पेट की बीमारियां बंदरों को हो रही है.

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बंदरों के बच्चों में देखा जा रहा चर्मरोग

हाल के दिनों में इन बंदरों के जो बच्चे पैदा हुए हैं, उनमें जन्म के समय से ही चर्म रोग देखा जा रहा है. इतना ही नहीं, वे भोजन के लिए सड़क के आसपास ही मंडराते रहते हैं. ऐसे में अक्सर रफ्तार वाहन की चपेट में आने से उनकी मौत हो जाती है. इंसानों के फेंके भोजन खाने से न सिर्फ बंदरों को बीमारी हुई, बल्कि उनका स्वाभाविक रहन-सहन भी बदल गया. बंदर पहले से ज्यादा आक्रामक हो गये हैं. इनके कई गुट हैं, जो भोजन के लिए आपस में लड़ने के साथ-साथ इंसानों पर भी हमला करते हैं.

क्या कहते हैं वन्य प्राणी विशेषज्ञ

देश के जाने-माने वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ दया शंकर श्रीवास्तव का कहना है कि अगर इंसान वन्य जीवों को भोजन कराने की आदत नहीं छोड़ेंगे, तो आने वाला दिन और खतरनाक होगा. उन्होंने कहा कि किसी भी जंगली जानवर को उसकी अपने ही भोजन शैली में छोड़ देना चाहिए. ऐसा नहीं होने से उममें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं. इससे उनकी आने वाली पीढ़ी भी ऐसी ही बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भोजन की लालच में जब बंदर सड़क पर दौड़ते हैं, तो न सिर्फ वे दुर्घटना के शिकार होते हैं, बल्कि इंसान खासकर टू व्हीलर चलाने वाले लोग भी दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं.

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वन विभाग मौन

वन्य प्राणियों को बचाने की जिम्मेदारी वन विभाग पर है. लेकिन वह मौन है. वन विभाग ने कर्तव्य के नाम पर जंगल से गुजरने वाली सड़क के किनारे दो बोर्ड लगा रखे हैं. इसमें लिखा गया है कि वन्य प्राणियों को भोजन न दें. लेकिन, जानकारों का कहना है की इससे बात बनने वाली नहीं है. इस संबंध में बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. साथ ही कुछ दिनों तक इस जगह पर पुलिस के सहयोग से सख्ती बरतने की भी जरूरत है.

रिपोर्ट- सैकत चटर्जी

Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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