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Operation Romeo Movie Review:मोरल पुलिसिंग के मुद्दे के साथ न्याय करने में नाकामयाब है यह ‘ऑपरेशन रोमियो’

फ़िल्म ऑपेरशन रोमियो भी साउथ फ़िल्म का हिंदी रीमेक है. फ़िल्म मोरल पुलिसिंग पर है. जो हमारे आसपास की ही कहानी रही है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बेहद स्लो है. बिल्डअप करने में बहुत ज़्यादा समय ले लिया गया है. शुरुआत के जो सीक्वेंस और डायलॉग हैं.

फ़िल्म -ऑपेरशन रोमियो

निर्माता- नीरज पांडे

निर्देशक- शशांत शाह

कलाकार- सिद्धांत गुप्ता, वेदिका पिंटो, शरद केलकर,भूमिका चावला और अन्य

रेटिंग-डेढ़

Operation Romeo Movie Review: इस शुक्रवार सिनेमाघरों में जर्सी के साथ रिलीज हुई फ़िल्म ऑपेरशन रोमियो भी साउथ फ़िल्म का हिंदी रीमेक है. यह फ़िल्म मलयालम फ़िल्म इश्क़ नॉट ए लव स्टोरी का हिंदी रिमेक है. फ़िल्म मोरल पुलिसिंग पर है. जो हमारे आसपास की ही कहानी रही है. इस कहानी में कहने को बहुत कुछ था लेकिन इस फ़िल्म के मेकर्स पूरी तरह से कंफ्यूज नज़र आए हैं. समझ नहीं आता कि वह मोरल पुलिसिंग के स्याह पक्ष को उजागर करना चाहते हैं या फ़िल्म को बस एक थ्रिलर फिल्म बनाना चाहते थे या फिर एक ऐसे इंसान की कहानी इसे बनाना चाहते थे जो मोरल पुलिसिंग का शिकार हुआ है. लेकिन असल में उसकी सोच भी मोरल पुलिसिंग वाली ही है कि उसकी प्रेमिका पवित्र तो है ना. कुलमिलाकर यह फ़िल्म अपने उद्देश्य में सफल नहीं होती है. जिससे मामला पूरी तरह से बोझिल हो गया है.

फ़िल्म की कहानी एक नए नवेले कपल आदित्य(सिद्धांत गुप्ता) और नेहा ( वेदिका पिंटो) की है. जो डेट पर हैं. कार में रोमांस कर रहे होते हैं कि अचानक दो पुलिस वाले आकर उन्हें पकड़ लेते हैं. उसके बाद दोनों पुलिस वाले किस तरह से मोरल पुलिसिंग के नाम पर इस कपल को टॉर्चर करते हैं. उनके साथ बदसलूकी करते हैं. इससे कहानी आगे बढ़ती है. सेकेंड हाफ में कहानी रिवेंज मोड़ ले लेती है लेकिन जो फर्स्ट हाफ में हुआ था सेकेंड हाफ में भी वही होता है. फ़िल्म के निर्माता के तौर पर नीरज पांडे का नाम फ़िल्म से जुड़ा है और फ़िल्म के ट्रेलर ने भी उम्मीद जगायी थी लेकिन इन दोनो उम्मीदों पर फ़िल्म खरी नहीं उतर पायी है.

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फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बेहद स्लो है. बिल्डअप करने में बहुत ज़्यादा समय ले लिया गया है. शुरुआत के जो सीक्वेंस और डायलॉग हैं. वह टीवी सीरियलों की याद दिला जाते हैं. शरद केलकर के एंट्री के बाद कहानी आगे बढ़ती हैं लेकिन टल मोरल पुलिसिंग पर यह फ़िल्म हमें ना तो शिक्षित करती है ना जागरूक बनाती है. बस दो अलग अलग आदमियों की एक सी बुरी सोच को दर्शाती है. सेकेंड हाफ में फ़िल्म रिवेंज ड्रामा बन गयी है लेकिन उसमें भी मेकर्स ने एकदम आसान रास्ता लिया है. घटना के कुछ दिन बाद आदित्य अपनी कार से उसी जगह जाता है और कार में बैठे बैठे उसे शरद की हकीकत का पता चल जाता है. वो कहां रहता है और बहुत आसानी से जानकर उसके घर में एंट्री भी कर लेता है.

अभिनय की बात करें तो फ़िल्म की कहानी कमज़ोर रह गयी है लेकिन एक्टर्स का परफॉर्मेंस अच्छा है. अभिनेता सिद्धांत गुप्ता फिल्मों में नए हैं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने फिल्म के कई मुश्किल दृश्यों को बखूबी जिया है खासकर सेकेंड हाफ में. शरद केलकर अपनी भूमिका से नफरत पैदा करने में कामयाब रहे हैं. भूमिका चावला को एक अरसे बाद स्क्रीन पर देखना अच्छा रहा है. वे अपनी भूमिका में जमी हैं. नवोदित वेदिका पिंटो और दूसरे पुलिस वाले की भूमिका में दिखें एक्टर ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है. दूसरे पक्षों की बात करें फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी हैं लेकिन संवाद बेहद कमजोर रह गया है. कुलमिलाकर यह फ़िल्म अपने विषय के साथ न्याय नहीं करती है.

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