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मायं-माटी : साहित्य अकादमी ने कुड़मालि सम्मेलन को ऐतिहासिक बनाया

नेवी के विंग कमांडर ज्ञानेश्वर सिंह ने कहा कि वर्तमान में कुड़मालि के पठन-पाठन हेतु देवनागरी अति व्यावहारिक लिपि है. रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ राकेश किरण ने कुड़मालि भाषा के विकास के आयाम विषय पर चर्चा की.

कुड़मालि भाषा-साहित्य में काम तो हुए हैं पर काफी काम होना बाकी है. वर्तमान में करीब 450 से ज्यादा कुड़मालि विषय से संबंधित पुस्तक प्रकाशित हुईं. शोध कार्य की दृष्टि से देखा जाय तो मात्र तीन ही हुए हैं. पहला डॉ एनके सिंह ने 1962 में विश्वभारती विश्वविद्यालय, कोलकाता से, दूसरा डॉ चंद्र मोहन महतो ने 1989 में रांची विश्वविद्यालय से एवं तीसरा डॉ निताई चंद्र महतो ने 2018 में भाषा पक्ष को केंद्रित कर पीएचडी हेतु शोध कार्य किये हैं. पिछले दिनों डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुड़मालि विभाग एवं साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ. इसका विषय था ‘कुड़मालि भाषा सम्मेलन’. यह सम्मेलन दो दिवसीय था. इस सम्मेलन में उदघाटन सत्र को मिलाकर कुल 8 सत्र हुए. प्रो (डॉ) तपन कुमार शाण्डिल्य ने अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान युवाओं को कुड़मालि भाषा की प्रचार-प्रसार पर जोर देने की सलाह दी. अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने स्वागत भाषण में कहा कि कुड़मालि का लोकसाहित्य, लोक संस्कृति, शिष्ट साहित्य, व्याकरण, सुर, ताल आदि समृद्ध हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय मुंबई के कुलपति प्रो केशरी लाल वर्मा ने बीज भाषण में कुड़मालि को एक समृद्ध भाषा कहा.

पहला सत्र कुड़मालि साहित्य पर केंद्रित था. डॉ मंजय प्रमाणिक ने कुड़मालि साहित्य पर प्रकाश डाला. दूसरा आलेख पाठ संगीता कुमारी महतो ने पढ़ा. उन्होंने कहा कि कुड़मालि की कथा साहित्य की बुनियाद इसकी लोककथाएं हैं. दूसरे सत्र में नेवी के विंग कमांडर ज्ञानेश्वर सिंह ने कहा कि वर्तमान में कुड़मालि के पठन-पाठन हेतु देवनागरी अति व्यावहारिक लिपि है. रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ राकेश किरण ने कुड़मालि भाषा के विकास के आयाम विषय पर चर्चा की. सिदो-कान्हु बिरसा विश्वविद्यालय, पुरुलिया के कुड़मालि विभाग के कॉर्डिनेटर डॉ सनत कुमार महतो ने कुड़मालि भाषा का वैशिष्ट्य विषय पर आलेख पढ़ा. सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ एचएन सिंह ने कुड़मालि व्याकरण लेखन परंपरा और विकास पर आलेख प्रस्तुत किया.

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तीसरा सत्र कुड़मालि संस्कृति पर था. इसमें जयंती कुमारी महतो ने अपने आलेख पाठ में कुड़मालि समाज में पुरखों से प्रचलन में आने वाले कई परिधानों का जिक्र किया.रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो तारकेश्वर सिंह मुंडा ने कुड़मालि समुदाय के बीच पाये जाने वाले पारंपरिक कला का जिक्र किया. पश्चिम बंगाल से आये कुड़मालि भाषा प्रेमी बिजराज महतो ने कुड़मालि समुदाय के पारंपरिक आभूषण पर आलेख प्रस्तुत किया. सत्र की अध्यक्षता कुड़मालि कवि रतन कुमार महतो ने की.

चतुर्थ सत्र कुड़मालि लोकगाथा पर केंद्रित था. नंद किशोर महतो ने कुड़मालि गीतों में प्रकृति चित्रण भरपूर पाये जाने का जिक्र किया. कोलहान विश्वविद्यालय, चाईबासा के कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो सुभाष चंद्र महतो ने कुड़मालि गीतों में पारिवारिक संबंध को बतलाया. रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर कुड़मालि के विभागाध्यक्षा डॉ गीता कुमारी सिंह ने कुड़मालि के पारंपरिक लोकगीत गाया. सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ राजा राम महतो ने की. पंचम सत्र कुड़मालि परिवारिक गीत पर केंद्रित था. रामलखन सिंह यादव कॉलेज, रांची की कुड़मालि प्राध्यपिका प्रो नीलु कुमारी ने कुड़मालि भाषा साहित्य के महिला लेखिकाओं का जिक्र किया. कुड़मालि साहित्यकार डॉ मानसिंह महतो ने कुड़मालि गीतों में नारी सौंदर्यीकरण पर आलेख प्रस्तुत किया. कुड़मालि के विभागाध्यक्ष डॉ वृंदावन महतो ने कुड़मालि के पारिवारिक खेल गीत पर आलेख प्रस्तुत किया. सत्र की अध्यक्षता आयोजक डॉ परमेश्वरी प्रसाद महतो ने की.

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षष्ठ सत्र में विष्णुपद महतो ने कुड़मालि भाषा के विकास में संचार माध्यम का योगदान विषय पर आलेख प्रस्तुत किया. डॉ रितेश कुमार महतो ने कुड़मालि समाज के प्रचलित लोक नृत्य को संजोने की बात कही. कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ निताई चंद्र महतो ने कुड़मालि भाषा में प्रकाशित अब तक पत्र-पत्रिकाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि कुड़मालि भाषा में पत्रिका का इतिहास पांच दशक का है. इस क्षेत्र में अब तक 40 से ज्यादा पत्रिकाएं प्रकाशित हुई है. इस सत्र की अध्यक्षता अशोक कुमार पुराण ने की.

डॉ बीरेंद्र कुमार महतो ‘गोतिया’, असिस्टेंट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ टीआरएल, रांची यूनिवर्सिटी, रांची

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