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जन्माष्टमी विशेष: कन्हैया स्थान, जहां आज भी मौजूद है श्रीकृष्ण-राधा के पैरों के निशान

कन्हैया स्थान में आज भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पदचिन्ह विद्यमान हैं. पूरे साल यहां ना केवल देश बल्कि विदेशों से भी कृष्ण भक्त दर्शन के लिये पहुंचते हैं.

साहिबगंज: झारखंड में वैसे तो कई सारे पर्यटन स्थल हैं, लेकिन उनमें राजमहल में मौजूद कन्हैया स्थान सबसे खास है. खास इसलिए क्योंकि यहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम और भक्ति का आध्यात्मिक अहसास बसता है.

कन्हैया स्थान में आज भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पदचिन्ह विद्यमान हैं. पूरे साल यहां ना केवल देश बल्कि विदेशों से भी कृष्ण भक्त दर्शन के लिये पहुंचते हैं.

भगवान श्रीकृष्ण ने यहां किया था महारास

जन्माष्टमी के मौके पर कन्हैया स्थान का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. कन्हैया स्थान दो वजहों से खास है. यहां भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों और सखाओं के साथ रासलीला की थी.

यहां आज भी वो पेड़ मौजूद है जहां भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी के साथ झूला झूले थे. दूसरी खास बात ये है कि, यहां एक पेड़ के नीचे चैतन्य महाप्रभु को भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप के दर्शन हुये थे. इन पेड़ों के नीचे आज भी भक्ति विभोर होकर भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिकता को महसूस किया जा सकता है.

कन्हैया स्थान को गुप्त वृंदावन की भी कहा जाता है. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी यहां महारास कर रहे थे तभी राधा रानी किसी बात से नाराज हो गयीं. कृष्ण ने उनके मन की बात भांप ली और किसी गुप्त स्थान पर छुप गये. इससे राधा रानी परेशान हो गयी. उन्हें परेशानी में देख भगवान श्रीकृष्ण बाहर निकल आये और राधा रानी से अपने अतुल्य प्रेम प्रकट किया.

चैतन्य महाप्रभु ने किया था बाल रूप का दर्शन

हिंदू धर्म ग्रंथ श्री चैतन्य चरितामृत के अनुसार श्री चैतन्य महाप्रभु बिहार के गया से अपने माता-पिता का पिंड दान कर अपने घर नवद्वीप वापस लौट रहे थे. इसी दौरान वे तमाल वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए रुके. जब चैतन्य महाप्रभु आराम कर रहे थे तभी मोर मुकुट धारण किए भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल रूप का दर्शन दिया.

श्रीकृष्ण के बाल रूप को देख श्री चैतन्य महाप्रभु भावविभोर हो गए और उन्हें आलिंगन में लेना चाहा. जैसे ही उन्होंने आलिंगन करना चाहा भगवान श्रीकृष्ण अंर्तध्यान हो गए.

जिन तमाल वृक्षों के नीचे चैतन्य महाप्रभु को भगवान के बालरूप के दर्शन हुये थे, उनके बारे में भी एक अद्भूत कथा है. कहा जाता है कि तमाल के वृक्ष वहीं लगते हैं जहां भगवान श्रीकृष्ण ने लीला रची थी. मान्यता है कि इन वृक्षों को यदि किसी अन्य स्थान पर रोपा जाए तो वे मुरझा जाते हैं.

गंगा नदी के किनारे मौजूद है कन्हैया स्थान

गंगा नदी के तट पर होने की वजह से कन्हैया स्थान और भी ज्यादा रमणीक जान पड़ता है. मंदिर प्रांगण को छूती गंगा की धारायें देख ऐसा लगता है मानों मां गंगा भगवान श्रीकृष्ण के पैर पखारना चाहती है. मंदिर में प्रवेश करने से पहले गंगा नदी की ओर से उपवन में आती ठंडी हवा आपका चित्त और आपकी आत्मा शुद्ध कर देती है. इस समय मंदिर प्रांगण से लेकर गंगा नदी तट तक नमामि गंगे परियोजना के तहत सीढ़ियां बना दी गयी हैं.

इस्कॉन करता है कन्हैया स्थान का संचालन

इस स्थान का संचालन साल 1995 में महंत श्री नरसिंह दास बाबा जी महाराज ने इस्कॉन को सौंप दिया था. साल 1997 में राधा कन्हैयालाल सिंह महाप्रभू ने इस्कॉन के जरिये यहां मंदिर की स्थापना की. वर्तमान में यहां का संचालन प्राण जीवन चेतन दास की जिम्मेदारी है. इस समय यहां भव्य मंदिर बनवाया जा रहा है. यहां यज्ञ मंडप भी बना है जहां भक्त अपनी इच्छानुसार यज्ञ अनुष्ठान कर सकते हैं.

हर साल यहां 10 से 15 हजार की संख्या में श्रद्धालु जन्माष्टमी के मौके पर जुटते हैं लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से संभव नहीं है. इस बार यहां क्या व्यवस्था है, ये मंदिर प्रबंधक प्राणजीवन चैतन्य दास से सुनिये.

कन्हैया स्थान तक पहुंचने के लिये ये करें

अब आपको बताते हैं कि कन्हैया स्थान कहां है और यहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है. कन्हैया स्थान साहिबगंज जिला मुख्यालय से 26 किमी दूर मंगलहाट मैं मौजूद है. कन्हैया स्थान गंगा नदी के किनारे बसा है. यदि आप कन्हैया स्थान जाना चाहते हैं तो आपको रेल या सड़क मार्ग द्वारा पहले साहिबगंज पहुंचना होगा.

साहिबगंज से बस या निजी वाहन द्वारा आप राजमहल पहुंच सकते हैं. राजमहल से ऑटो या ई-रिक्शा के जरिये आप कन्हैया स्थान तक पहुंच सकते हैं.

Posted By- Suraj Kumar Thakur

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