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Jagannath Rath Yatra 2022: जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई को, पौराणिक कथाएं व धार्मिक महत्व जानें

Jagannath Rath Yatra 2022: जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई को है. रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को अलग-अलग रथोंपर सवार कर पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक भक्तों द्वारा खींचा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान के रथों को खींचने से मनुष्य के सभी पाप कट जाते हैं.

Jagannath Rath Yatra 2022: भगवान जगन्नाथ हिंदू देवता भगवान विष्णु के अवतार रूप हैं. जगन्नाथ शब्द का अर्थ स्वयं उस व्यक्ति से है जो ब्रह्मांड का स्वामी है. लोग भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath), उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को लेकर तीन रथों का 3 किमी लंबा जुलूस निकालते हैं. रथयात्रा के दिन इन रथों को खींचने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु एक साथ कदम रखते हैं. यह प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2022) 1960 के दशक के अंत से भारत के विभिन्न शहरों में मनाई जाती है. न केवल हिंदू बल्कि बौद्ध भी रथयात्रा में भाग लेकर इस त्योहार को मनाते हैं.

Jagannath Rath Yatra 2022: रथ यात्रा तिथि और समय

जगन्नाथ शब्द दो शब्दों जग से बना है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड और नाथ का अर्थ है भगवान जो ‘ब्रह्मांड के भगवान’ हैं. जानें इस बार कब है जगन्नाथ रथ यात्रा…

जगन्नाथ रथ यात्रा: शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

द्वितीया तिथि शुरू: 30 जून, 2022 सुबह 10:49 बजे

द्वितीया तिथि समाप्त: जुलाई 01, 2022 01:09

Jagannath Rath Yatra 2022: रथ खीचंते हुए भक्त ढोल की थाप के साथ गीत और मंत्रों का जाप करते हैं

रथ यात्रा हर साल भक्तों द्वारा निकाली जाती है. अलग-अलग तीन रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक भक्तों द्वारा खींचा जाता है. ऐसी मान्यता है कि जुलूस के दौरान अपने भगवान के रथों को खींचने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं जो जाने या अनजाने में किए गये थे. रथ के साथ भक्त ढोल की थाप की ध्वनि के साथ गीत और मंत्रों का जाप करते हैं. जगन्नाथ रथ यात्रा गुंडिचा यात्रा, रथ महोत्सव, दशावतार और नवदीना यात्रा के रूप में भी प्रसिद्ध है.

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Jagannath Rath Yatra 2022: जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत को लेकर प्रचलित हैं ये पौराणिक कथाएं

जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जो लोगों की सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती हैं. ऐसी ही एक कहानी के अनुसार कृष्ण के मामा कंस कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मारना चाहते थे. इस आशय से कंस ने कृष्ण और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया था. उसने अक्रूर को अपने रथ के साथ गोकुल भेजा. पूछने पर, भगवान कृष्ण बलराम के साथ रथ पर बैठ गए और मथुरा के लिए रवाना हो गए. भक्त कृष्ण और बलराम के मथुरा जाने के इसी दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं. जबकि द्वारका में भक्त उस दिन का जश्न मनाते हैं जब भगवान कृष्ण, बलराम के साथ, उनकी बहन सुभद्रा को रथ में शहर की शान और वैभव दिखाने के लिए ले गए थे.

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