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63 मंदिरों को तोड़ने के बाद विश्वनाथ धाम पर पड़ी थी शाहजहां की गंदी नीयत, चंद हिंदुओं ने दिखाई थी बहादुरी…

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था. इसके बाद साल 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था. इसे एक बार फिर बनाया गया. मगर वर्ष 1447 में पुन: इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया था.

Kashi Vishwanath Corridor: काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों लोकार्पण होगा. यह मंदिर ऐतिहासिक ही नहीं पौराणिक है. ग्रंथों में भी इसकी चर्चा मिलती है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर को आतताइयों ने एक बार जब तोड़ने की पुरजोर कोशिश कर ली थी तब चंद जांबाज हिंदुओं ने इसकी रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर लिया था. इतिहासकार बताते हैं कि उस समय शाहजहां ने काशी में कुल 63 मंदिरों को तबाह कर दिया था. इतिहास में दर्ज इस रोचक गाथा को आज आप सबके लिए भी जानना जरूरी है…

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बता दें कि वर्तमान की केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के माध्यम से करीब 352 साल के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरुद्धार का काम किया गया है. उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर हिंदुओं के प्राचीन मंदिरों में से एक है. यह गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है. जानकार बताते हैं कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था. इसके बाद साल 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था. इसे एक बार फिर बनाया गया. मगर वर्ष 1447 में पुन: इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया था. हिंदुओं की आस्था का सैलाब जहां उमड़ता रहता है उस पावन स्थली को एक बार फिर उद्धार किया गया.

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फिर साल 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने इसे बनाया गया था. मगर वर्ष 1632 में शाहजहां ने इसे तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी. मगर हिंदूओं के प्रतिरोध के कारण सेना अपने मकसद में कामयाब न हो पाई. इतना ही नहीं 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कराने के आदेश दिए थे. आने वाले समय में काशी मंदिर पर ईस्ट इंडिया का राज हो गया, जिस कारण मंदिर का निर्माण रोक दिया गया. फिर साल 1809 में काशी के हिंदूओं द्वारा मंदिर तोड़कर बनाई गई थी.

साल 1632 में शाहजहां के हाथों इस मंदिर के तोड़े जाने के प्रयास का जो जिक्र है, वह भी बड़ा रोचक है. काशी के वासी ही इस बारे में बताते हैं कि वर्ष 1632 में किसी ने बादशाह शाहजहां को इस मंदिर के खिलाफ कर दिया था. इसके बाद शाहजहां ने बिना किसी देरी के काशी के बाबा के दर पर सेना की एक टुकड़ी भेज दी. देखते ही देखते मंदिर पर हमले की बात चारों ओर फैल गई. चंद हिंदुओं ने इसका विरोध करने की ठान ली. वे चट्टान की तरह मंदिर के चारों ओर पसर गए. शाहजहां ने जो सेना की टुकड़ी भेजी थी, वह बैरंग ही लौट गई. आस्था से उन्मादित हिंदुओं के आगे उनकी एक न चली. इस तरह शाहजहां की क्रूर विचारधारा से काशी के धाम की रक्षा की गई थी.

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