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Exclusive: मुझे और राणा जी को नहीं पता था कि हमारी शादी इतनी अच्छी चलेगी- रेणुका शहाणे

रेणुका शहाणे जल्द ही फिल्म द फर्स्ट सेकेंड चांस में नजर आएंगी. इस फिल्म को लेकर एक्ट्रेस ने बात की है. साथ ही बताया है कि किस वजह से उन्होंने इस मूवी के लिए हां कही.

Renuka Shahane interview: हिंदी सिनेमा की उम्दा अभिनेत्रियों में शुमार रेणुका शहाणे (Renuka Shahane) इन दिनों डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज शार्ट फ़िल्म द फर्स्ट सेकेंड चांस में नज़र आ रही हैं. उनकी इस फ़िल्म,निर्देशिका के तौर पर उनकी अगली फिल्म , उनकी सफल शादी सहित कई दूसरे पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत.

शार्ट फ़िल्म द फर्स्ट सेकेंड चांस में क्या आपकी अपील कर गया?

निर्देशिका लक्ष्मी की जो अप्रोच है. वो मुझे बहुत अच्छी लगती है. मैं उन्हें आर्टिस्ट ऑर्गनाइजेशन सिंटा की वजह से पहले से जानती हूं. जब उन्होंने दो लाइनर मुझे सुनाया था तभी मुझे किरदार बहुत पसंद आया था. ये एक प्रोग्रेसिव सोच वाली फिल्म है. एक ऐसे एज ग्रुप पर है. जिनके लिए फ़िल्म नहीं बनती हैं. आपको एक उम्र के बाद किसी की भाभी,किसी मां के रोल ऑफर्स होते हैं. जिनका अपना नाम भी नहीं होता है. यहां वह एज ग्रुप कहानी का चेहरा है. फ़िल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं, जो उस एज ग्रुप को प्रभावित करती है.

फ़िल्म का शीर्षक काफी अलग है द फर्स्ट सेकेंड चांस?

यह सबकी ज़िन्दगी में आता है. फर्स्ट चांस में अनेकों बार सफलता नहीं मिलती है. पहला प्यार वो आपको मिलेगा ही यह ज़रूरी नहीं. पहला जॉब जो आपका है वो अच्छा होगा ऐसा नहीं है. ज़िन्दगी जो आपको फर्स्ट सेकेंड चांस देती है तो कई बार आप डर जाते हो. उसको मानने की हिम्मत नहीं होती है इसलिए हम वो चांस गंवा देते हैं लेकिन वो चांस लिया जाए तो उसका नतीजा ज़िन्दगी में बेहतर हो सकता है.

आपकी ज़िंदगी में फर्स्ट सेकेंड चांस क्या रहा था?

करियर ही मेरा आप देखिए. मैं साइकोलॉजी कर रही थी. उसमें बहुत खुश थी. पीएचडी करने से पहले मैं थोड़ा ब्रेक लेना चाहती थी. उसी दौरान मुझे सर्कस सीरियल आफर हुआ. मैंने कर लिया. निर्देशक अज़ीज़ मिर्ज़ा ने मुझसे कहा कि पीएचडी भूल जाओ. एक्टिंग को करो. मैंने चांस लिया. अगला काम मुझे सुरभि का मिला. जिसके बाद मेरी ज़िंदगी की दिशा ही बदल गयी. मैं तो कहूंगी कि ज़िन्दगी के हर चांस को लेना चाहिए फिर वह पहला हो या दसवां.

आप अभी भी एक्ट्रेसेज के तौर पर बहुत कम नज़र आती हैं,जो आपको ऑफर्स मिल रहे हैं क्या आपको वो अपील नहीं करते हैं?

मैं थोड़ी चूजी हूं. डेली सोप्स के जो ऑफर्स आते हैं. वो मैं ले नहीं सकती हूं. कंटेंट बहुत ही कमज़ोर हैं. ओटीटी एक अच्छा मौका है,लघु फिल्मों से लेकर फ़िल्म और वेब सीरीज सभी मैं एक्सपेरिमेंट हो रहे हैं. मैं फिल्मों में जल्द ही दर्शकों को नज़र आऊंगी.

निर्देशिका के तौर पर टीवी के लिए कुछ करना चाहेंगी?

मौजूदा जो दौर है, उसमें मुश्किल है. यहां कहानी टीआरपी के आधार पर तय होती तो कहानी में पानी मिला मिलाकर दिखाया जाता है. वो मुझसे नहीं होगा.

आपके दोनों बेटे अब बड़े हो चुके हैं, आपकी जिम्मेदारियां कितनी कम हो गयी हैं?

एक जमाना था जब मैं बच्चों को स्कूल में छोड़ती थी और वो रोते थे, क्योंकि वो मुझसे दूर नहीं जाना चाहते थे. आज मुझे लगता है कि बच्चे तो इंडिपेंडेंट हो गए हैं, लेकिन मैं अभी तक इंडिपेंडेंट नहीं हुई हूं. वो मुझे हासिल करना है. वो एक प्रोसेस है. मुझे उसमें समय लगेगा. मैं अभी भी खुद को 24 घंटे मां की भूमिका में ही देखती हूं. पार्ट टाइम मैं राइटर,डायरेक्टर,एक्टर और पत्नी हूं.

आप हेलीकॉप्टर मां हैं?

बिल्कुल भी नहीं,मैं अपने बच्चों के साथ बड़ी हुई हूं. एक हिसाब से मैं उनकी बेस्ट फ्रेंड हूं. उनको ये बहुत ज़रूरी होता है कि दिन भर जो हुआ वो मुझसे शेयर करें. मेरे साथ जो भी दिन भर हुआ रहता है, मैं वो शेयर करती हूं. दोस्ती का रिश्ता है जबरदस्ती का नहीं.

आपके बच्चों को एक्टिंग से लगाव है?

अभी तक तो नहीं है. एक तरह की उनको चिढ़ है, क्योंकि हम जब भी साथ में बाहर जाते हैं तो उन्हें हमारे साथ वह समय नहीं मिल पाता है. वो प्राइवेसी नहीं मिल पाती है, क्योंकि राणा जी और मैं दोनों ही एक्टर हैं. हमें देखकर भीड़ आ ही जाती है, लेकिन मैं पूरी तरह से संभावनाओं को नकार नहीं सकती हूं. कहीं न कहीं हमारे गुण कुछ तो बच्चों में होंगे. फिलहाल छोटे वाले बेटे को फुटबॉल बहुत पसंद है और बड़े बेटे की अध्यात्म में रुचि है,हां वो फ़िल्म देखना पसंद करता है, लेकिन एक दर्शक की तरह.

आप उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में से रही हैं,जो बहुत बेबाक रही हैं,आपकी ये खूबी किससे मिली है?

मेरी मां से आयी है. वो मुझसे ज़्यादा बेबाक और आधुनिक सोच की हैं. उन्होंने मुझे और मेरे भाई को बचपन से उनसे भी सवाल करना सिखाया है. आमतौर पर माता पिता हमको सवाल करने का अधिकार नहीं देते हैं, लेकिन हमारे घर पर वो अधिकार था ,हां गरिमा में रहकर, बच्चे हैं इसलिए नहीं बल्कि एक इंसान को दूसरे इंसान के साथ गरिमा में रहकर ही बात करनी चाहिए, इसलिए हमारी सोच ऐसी पनप गयी. आमतौर पर माता पिता कुछ बोलते हैं तो आपको आंखें बंद करके उसे फॉलो करना होता है. वो आपकी ड्यूटी समझी जाती है. मेरे बच्चों की परवरिश भी ऐसे ही मैंने की है. डिस्कशन के साथ साथ सवाल भी मेरे घर में पूछे जाते हैं.

मौजूदा दौर लार्जर देन लाइफ सिनेमा का है,आप एक्टर के साथ साथ राइटर और डायरेक्टर भी हैं?

मैं जो भी लिखती हूं ,ये सोचकर नहीं लिखती हूं कि इसका नतीजा क्या होगा. आपको खुद के साथ ईमानदार रहना पड़ता है. मैं रियल लाइफ में ही लार्जर देन लाइफ नहीं हूं तो मैं वैसी कहानियां भी नहीं लिख सकती हूं. मेरी जो कहानियां हैं वो इंसानी रिश्तों पर ही आधारित होती है. मैंने सायकोलॉजी की पढ़ाई भी की है. औरत हूं तो महिला प्रधान कहानियों को ज़्यादा खूबसूरती के साथ बयां कर पाऊंगी.

आपको अपनी फिल्मों के लिए निर्माता मिलने में क्या मुश्किल होती है?

आसान तो नहीं है,चाहे आपकी पहली फ़िल्म हो या दसवीं. अगर आप खुद प्रोड्यूसर बन जाए तो बात अलग है. मैं उस डिपार्टमेंट में बिल्कुल जीरो हूं. मैं डायरेक्शन और प्रोडक्शन एक साथ नहीं कर सकती हूं. जैसे जीवनसाथी ऊपर से लिखा हुआ होता है (हंसते हुए)उसी तरह हर स्क्रिप्ट के लिए प्रोड्यूसर भी चुना होता है.

घर में जब दो लोग इतने प्रतिभाशाली होते हैं तो क्या कभी कभी आपके मत में भेद भी होते हैं?

बिल्कुल भी नहीं,मेरी हर कहानी के पहले श्रोता मेरे पति ही हैं. उनसे फीडबैक मैं पहले लेती हूं. घर पर ही आपको अगर सबसे अच्छा फीडबैक मिलता है तो यह बहुत बड़ी बात है. वो भी जब भी कुछ लिखते हैं तो मुझे सबसे पहले पढ़कर सुनाते हैं. हम एक दूसरे के काम पर बिना हिचके ओपिनियन देते हैं. ये नहीं सोचते कि दुख पहुंचेगा क्योंकि हमें पता है कि एक दूसरे की क्रिएटिविटी की लेवल क्या है ,तो वो अच्छे से आए इसलिए हम बोलते हैं. एक्टिंग में भी मैं उनका फीडबैक ज़रूर लेती हूं. दुनिया कहे कि आपने अच्छा किया लेकिन राणा जी कहें कि आप यहां पर औऱ अच्छा कर सकती थी तो मैं उनकी मानूंगी दुनिया की नहीं. कमाल की बात है कि उनको कविताएं बहुत पसंद हैं,मुझे बिल्कुल नहीं. वो पढ़ते बहुत अच्छा हैं इसलिए आपको लगता है कि आप बस सुनते रहो.

इंडस्ट्री में शादियां इनदिनों ज़्यादा टिक नहीं रही हैं,आप अपनी शादी की क्या खास बात मानती हैं ?

मुझे और उनको हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारी शादी इतनी अच्छी होगी. कोई- कोई निर्णय लेते हैं तो उसका आगे क्या परिणाम होगा. हम नहीं देख पाते हैं. उस वक़्त हम प्रेम में होते हैं लेकिन उसके बाद अलग किस्म का रिश्ता हो जाता है. जब शादी के इतना वक़्त गुज़र जाए. बच्चे हो जाते हैं. इम्प्रेस करने की होड़ नहीं रहती है. कई दिनों तक काम की मशरूफियत में हम एक दूसरे से बात भी नहीं करते हैं लेकिन देख भर लेने से सारी बात हो जाती है. जैसे हमारी फेवरेट टूथपेस्ट ,जिसके बिना हम अपने दिन की शुरुआत नहीं कर सकते हैं तो वो नहीं होते आसपास तो लगता है कि दिन की शुरुआत सही नहीं हुई. एक अलग तरह का कम्फर्ट लेवल है. अब तक बढ़ा है तो आगे भी बढ़ता रहेगा. बच्चे जब अपनी जिंदगियों में मशरूफ हो जाएंगे. हमको कम समय देंगे तो हमारे रोमांस का एक और दौर शुरू होगा.

आप आशुतोष राणा सर के लिए क्या स्पेशल करना पसंद करती हैं?

हमदोनों को सरप्राइजेस पसंद नहीं है. वैसे मैंने उन्हें दो बार सरप्राइज किया है. एक बार मैंने उनके जन्मदिन पर पजेरो कार बुक की थी. वो चकित थे कि हर चीज़ जो मैं करती हूं,उनको पता होती है. ये कैसे पता नहीं चली. दूसरी बार मैंने उनके 45 वे जन्मदिन पर एक बड़ी सी सरप्राइज पार्टी रखी थी. उनके स्वाभिमान के दिनों के सारे दोस्तों को बुलाया था. वे उस दिन बहुत खुश थे. ऐसी वाली सरप्राइजेस बीच बीच में देते रहना चाहिए.

आप और आशुतोष राणा सर साथ में कोई प्रोजेक्ट करने वाले हैं?

मैं उनके लिए लिख रही हूं एक ब्लैक कॉमेडी. उनको निर्देशित करूंगी. मेरी स्पीड थोड़ी स्लो है. मैं ऐसा किरदार उनसे करवाना चाहूंगी जो सच में बहुत अलग हो.

आप खुद को काम या दूसरी चीजों के स्ट्रेस से किस तरह से दूर रखती हैं?

मुझे प्रकृति बहुत पसंद है. किस्मत से हमारे घर के बाहर बहुत अलग अलग तरह के पेड़ है. जिसमे अलग अलग तरह के पंक्षी आते हैं. उनको देखना मुझे सुकून देता है. मैं उसमें अपना मेडिटेशन ढूंढ लेती हूं, अगर वो नहीं तो मुझे म्यूजिक सुनना बहुत पसंद है खासकर रात में.

किस तरह के सिनेमा को आप दर्शक के तौर पर देखना पसंद करती हैं?

हर तरह का सिवाय हॉरर के,मैं अपने चेहरे को ढंककर आधी आंखें खुली आधी बंद करके देखती हूं. मेरे बच्चों को हॉरर फिल्में बहुत पसंद हैं. ओटीटी देखती हूं ,लेकिन मुझे वेब सीरीज याद नहीं रहती हैं शायद लंबे समय की वजह से या उस फॉर्मेट का प्रभाव मुझ पर नहीं हो पाता है,जितना कि फिल्में कर जाती हैं. फिल्में सच में मेरी सोच में परिवर्तन ला सकती हैं. नाटक का भी होता है. टीवी और वेब सीरीज का नहीं होता है.

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