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Navratri: बासंतिक नवरात्रि में काशी में 9 देवियों के पूजन का अलग-अलग है विधान, जानें विधि…

नवरात्र में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक मां के पूजन को लेकर काशी के ज्योतिषाचार्य पण्डित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि काशी त्रिलोक न्यारी नगरी है जब भगवान शिव लोगों को मोक्ष प्रदान करने के लिए माता जगदम्बा के साथ काशी आ रहे थे तो भगवान शिव ने माता जगदम्बा से पूछा कि तुम यहां क्या करोगी?

Varanasi News: बासंतिक नवरात्र में काशी में 9 देवियों के पूजन का अलग-अलग विधान है. नवरात्र में हर रोज देवी के विभिन्न रूपों का पूजन और उपाय करके माता को प्रसन्न किया जाता है.

पहले पढ़ें यह कथा…

नवरात्र में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक मां के पूजन को लेकर काशी के ज्योतिषाचार्य पण्डित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि काशी त्रिलोक न्यारी नगरी है जब भगवान शिव लोगों को मोक्ष प्रदान करने के लिए माता जगदम्बा के साथ काशी आ रहे थे तो भगवान शिव ने माता जगदम्बा से पूछा कि तुम यहां क्या करोगी क्योंकि मैं यह जानता हूं कि जहां मैं रहूंगा वहाँ तुम अवश्य रहोगी. ऐसे में तुम्हारा यहाँ के लोगों के लिए क्या विचार हैं. इस पर माता जगदम्बा ने कहा कि प्रभु मैं यहाँ भोजन दुंगी सभी को, इसलिए काशी में भगवान शिव मुक्ति देते हैं और मां जगदम्बा भुक्ति (भोजन) प्रदान करती हैं. ऐसे में नवरात्रि दो पड़ती हैं एक बासंतिक दूसरा शारदीय इसमे जो बासंतिक होता है वह नववर्ष के लिए होता है . काशी में इस नवरात्रि में गौरी पूजन होता है, गौरी की परिक्रमा का विधान होता है.यह विलक्षण है यह केवल काशी में होता है क्योंकि माता गौरी यही काशी में विराजमान होकर पुरे ब्रह्माण्ड को भोजन प्रदान कर रही हैं.इसलिए बासंतिक नवरात्र में 9 दिन गौरी का पूजन होता है.भक्तों के भाव से वशीभूत होकर के वह 9 गौरी का विभिन्न रूप धारण कर के काशीवासियो समेत पूरे ब्रह्मांड का कुशलतापूर्वक संचालन करती हैं.

जानें मां के 9 स्वरूप

महागौरी के 9 रूप है – पहला माता निर्मलिक जिनका मुख ही निर्मल है. दूसरा माता ज्येष्ठा है.तीसरे दिन सौभाग्य गौरी के दर्शन- पूजन का विधान है. यह सौभाग्य प्रदान करती हैं. चौथे दिन श्रृंगार गौरी के पूजन का विधान है, जीवन में यदि श्रृंगार नही है तो सब व्यर्थ है. पांचवे दिन विशालाक्षी देवी का पूजन विधान है. आपकी दृष्टि विशाल हो, ऐसी कामना के साथ 52 शक्तिपीठ में से एक पीठ के रूप में जाना जाता है. छठे दिन ललिता गौरी के दर्शन- पूजन का विधान है. सातवें दिन भवानी गौरी का पूजन होता है. आठवें दिन मंगला गौरी की पूजा होती हैं. इनके दर्शन पूजन करने से जीवन में मांगलिक अवसर जल्दी प्राप्त होते है. नौवे दिन महालक्षमी की पुजा होती हैं. इनकी लक्ष्मी के रूप में पूजा होती हैं. काशी में 9 दिन गौरी की ही पूजा होती हैं.

भगवती गौरा करती हैं मनोकामना पूरी

प्रत्येक जगह लक्ष्मी, माता गौरी सभी देवियों के एक ही मन्दिर होंगे मगर काशी नगरी धन्य है कि यहाँ सभी देवियों के 9 मंदिर है. देवी गौरी ने जब तपस्या कर के भगवान शिव को प्राप्त किया तो भगवान ने हिमालय पर जाकर देवी के साथ विराजमान हो गए. मगर पार्वती जी ने कहा कि प्रभु यह तो मेरा मायका है मगर मेरा ससुराल कहा हैं. इसपर भगवान शिव ने काशी का निर्माण कर दिया. और माता को लेकर यहां आ गए. भगवती गौरा सबकी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अलग- अलग रूप लेकर विराजमान होता है.

रिपोर्ट : विपिन सिंह

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