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Jharkhand News: भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में बीआइटी सिंदरी की होगी भूमिका

पूरी दुनिया में जर्मनी, जापान और स्वीडन बेहतरीन मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इन देशों में पढ़ाई वहीं की भाषा में होती है. जर्मनी के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए जर्मनी भाषा का ज्ञान होना जरूरी है.

Dhanbad News: बिरसा प्रौद्योगिकी संस्थान (बीआइटी) सिंदरी देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में शुमार रहा है. यहां के पासआउट छात्र आज देश-विदेश में उच्च पदों पर आसीन हैं. इन्हीं में एक हैं श्रीनारायण सिंह. श्री सिंह मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच के 1987 बैच के पासआउट छात्र हैं. वह मूलत: बिहार के भोजपुर के रहने वाले हैं. अभी ग्रेट ब्रिटेन के डोगर बैंक में समुद्री लहर से बिजली उत्पादन के लिए बन रही दुनिया की सबसे बड़ी ऑफशोर बैंक परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर हैं.

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संस्थान छोड़ने के लगभग 35 वर्षों के बाद श्रीनारायण सिंह बुधवार को बीआइटी पहुंचे. उन्होंने निदेशक प्रो (डॉ) डीके सिंह से मुलाकात कर यहां के छात्रों को जर्मन भाषा सीखने में मदद का प्रस्ताव रखा. सिंदरी से लौटने पर श्रीनारायण सिंह से प्रभात खबर ने कई मुद्दों पर बातचीत की. श्री सिंह चाहते हैं कि बीआइटी के छात्र जर्मन भाषा सीखें और जर्मनी जाकर उच्च शिक्षा हासिल करें. वहां से अपने देश लौटकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजूबत बनायें.

श्रीनारायण सिंह का कहना है कि पूरी दुनिया में जर्मनी, जापान और स्वीडन बेहतरीन मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इन देशों में पढ़ाई वहीं की भाषा में होती है. जर्मनी के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए जर्मनी भाषा का ज्ञान होना जरूरी है. श्री सिंह ने बीआइटी निदेशक प्रो (डॉ) डीके सिंह से मुलाकात में यहां के छात्रों को जर्मन भाषा सीखने में मदद का प्रस्ताव दिया. उन्होंने इस पर आने वाला खर्च वहन करने तथा बीआइटी के यूरोपियन चैप्टर से इस कार्य में सहयोग दिलाने की बात कही. उनके इस प्रस्ताव को निदेशक ने स्वीकार कर लिया है. बहुत जल्द इस पर पहल की होगी.

35 वर्ष बाद संस्थान आना हुआ है. कैसा लग रहा है?

मैंने साल 1982-87 तक मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में पढ़ाई की. यहां से पास होने के बाद अपने देश के अलावा मलेशिया, सिंगापुर, दुबई में नौकरी की. अभी ग्रेट ब्रिटेन में हिताची के डोगर बैंक ऑफशोर परियोजना का प्रभारी हूं. अब तक अपने लिए काफी कुछ किया है. अब उस संस्थान का कर्ज उतारने का समय है, जिसकी वजह से मैंने आज यह मुकाम हासिल किया है. मैं बीआइटी के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा रहा हूं.

बीआइटी का पुराना गौरव कैसे लौटेगा?

1990 के दशक तक बीआइटी की गिनती देश सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में होती थी. इसका पुराना गौरव लौटाने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है. मैं इसमें अपना हिस्सा देने आया हूं. मैं यहां के छात्रों को जर्मन भाषा सीखने में मदद करना चाहता हूं, ताकि वे जर्मनी जाकर उच्च शिक्षा हासिल कर सकें.

जर्मनी ही क्यों, शिक्षा के लिहाज से अमेरिका भी ताे बेहतर है?

भारतीयों की इंग्लिश काफी अच्छी होती है, इसलिए वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की पढ़ाई के लिए जर्मनी अमेरिका से काफी बेहतर है. जर्मनी में उच्च शिक्षा नि:शुल्क है. इसके लिए जरूरी है छात्र को जर्मन भाषा का ज्ञान होना. जर्मनी में पूरी पढ़ाई जर्मन भाषा में होती है. चीन के छात्र अमेरिका से अधिक जर्मनी में पढ़ने जाते हैं. आज चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब है, इसमें बड़ी भूमिका जर्मनी से पढ़ने वाले चाइनीज छात्रों की है. भारत के जर्मनी से अच्छे संबंध हैं, इसलिए हमें भी वहां के उच्च शिक्षण व्यवस्था का लाभ लेना चाहिए.

रिपोर्ट : अशोक कुमार, धनबाद

Prabhat Khabar News Desk
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