यहां उल्लेखनीय है कि राज्य की तृणमूल सरकार तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में विभिन्न जनजातियों के लिए एक पर एक विकास बोर्डों का गठन किया है. और भी कई विकास बोर्ड बनाये जाने की मांग की जा रही है. जिन जातियों के लिए विकास बोर्ड का गठन हुआ है, उस जाति के लोगों में तृणमूल तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए लगाव बढ़ा है. इतना ही नहीं, तृणमूल के ताकत में भी लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. गोजमुमो के कई आला नेता तृणमूल का दामन थाम चुके हैं. गाजमुमो के प्रथम पांच नेताओं में शुमार हर्क बहादुर छेत्री ने सबसे पहले पार्टी छोड़ी. वह भले ही तृणमूल कांग्रेस में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन वह एक तृणमूल नेता के तौर पर ही पहाड़ पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा हाल ही में गोजमुमो के एक और ताकतवर नेता तथा जीटीए सभा के अध्यक्ष प्रदीप प्रधान ने भी गोजमुमो को बाय-बाय कर दिया है. पहाड़ पर तृणमूल की लगातार बढ़ती ताकत से स्वाभाविक तौर पर गोजमुमो सुप्रीमो तथा जीटीए चीफ बिमल गुरूंग परेशान हैं.
यही वजह है कि उन्होंने एक बार फिर से गोरखालैंड आंदोलन की शुरूआत कर दी है. हालांकि अभी आंदोलन की गति धीमी है, लेकिन इसे धीरे-धीरे तेज किया जा रहा है. सबसे पहले विद्यार्थी मोरचा ने रिले अनशन की शुरूआत की. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के तीनों महकमा दार्जिलिंग, कर्सियांग तथा कालिम्पोंग में रिले अनशन जारी है. गोजमुमो के युवा संगठन युवा मोरचा द्वारा भी रैलियां निकाली जा रही है. इसके अलावा गोजमुमो ने नारी मोरचा को भी मैदान में उतार दिया है. नारी मोरचा गोजमुमो की सबसे बड़ी ताकत है. नारी मोरचा के घेराव आंदोलन की वजह से ही कभी पहाड़ के राजा समझे जाने वाले सुवास घीसिंग सहित कई विपक्षी नेताओं को पहाड़ छोड़कर भागना पड़ा था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहाड़ पर जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस की ताकत बढ़ रही है, उससे बिमल गुरूंग के सामने गोरखालैंड आंदोलन शुरू करने के अलावा और कोई चारा नहीं है. उन्होंने भले ही अभी आंदोलन की शुरूआत धीमी गति से की हो, लेकिन उन्हें नहीं चाह कर भी गोरखालैंड आंदोलन तेज करना होगा. इस मामले में बिमल गुरूंग का भी साफ-साफ कहना है कि वह गोरखालैंड राज्य से कम कुछ भी लेने के लिए तैयार नहीं हैं. बिमल गुरूंग ने बताया है कि जीटीए बनाये जाने का कोई लाभ नहीं हुआ है. राज्य सरकार की हस्तक्षेप की वजह से जीटीए को चलाना संभव नहीं है. उनकी एक सूत्री मांग गोरखालैंड है.
आगे राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार से सिर्फ इसी एक सूत्री मांग पर बात होगी. दूसरी तरफ गोजमुमो के इस रूख से प्रशासन ने भी अपने तेवर सख्त कर लिये हैं. प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रैली निकालने तथा जनसभाओं को संबोधित करने वाले गोजमुमो नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. पिछले दस दिनों में बिमल गुरूंग सहित गोजमुमो के एक दर्जन नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में मुकदमे दर्ज किये जा चुके हैं. इतना ही नहीं, बिमल गुरूंग कभी जिस जीएलपी (गोरखालैंड पर्सनल) के सुरक्षा घेरे में रहते थे, आज उसी जीएलपी के संबंध में तथ्य जुटाने में पुलिस लगी हुई है. स्वाभाविक तौर पर पुलिस की इस कार्रवाई से न केवल जीएलपी, बल्कि गोजमुमो खेमे में भी हड़कंप है.
इस बीच, पहाड़ पर बढ़ते इस तकरार को लेकर यहां के आम लोग परेशान हो रहे हैं. इन लोगों को एक बार फिर से पहाड़ पर बंद का सिलसिला शुरू होने की आशंका है. सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि सिलीगुड़ी तथा दार्जिलिंग के पर्यटन कारोबारी भी चिंतित हैं. इन लोगों ने बिमल गुरूंग से गोरखालैंड आंदोलन के दौरान बंद अथवा अवरोध नहीं करने की अपील की है. उत्तर बंगाल के प्रमुख टूर ऑपरेटर संगठन एतवा के अध्यक्ष सम्राट सान्याल का कहना है कि पर्यटन मौसम में यदि गोरखालैंड आंदोलन होता है, तो पर्यटन कारोबार को काफी नुकसान पहुंचेगा. पहाड़ पर अभी जो स्थिति है, उससे पर्यटन के कारोबार को कोई नुकसान नहीं है. लेकिन बंद हो सिलसिला शुरू होने पर परेशानी बढ़ेगी. दुर्गा पूजा आने को है. इस समय पर्यटन कारोबार उफान पर है. सभी होटलों तथा लॉजों की बुकिंग शत-प्रतिशत है. ऐसे में गोरखालैंड को लेकर यदि गोजमुमो द्वारा बंद की घोषणा की गई, तो पर्यटन कारोबार काफी नुकसान होगा.