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11 जातियों के मसले पर केंद्र कर रहा है राजनीति : विनय

आरोप. गोरखा समुदाय के हित के लिए नहीं किया गया प्रयास भाजपा के खिलाफ आंदोलन में उतरने की चेतावनी दार्जिलिंग : गोजमुमो (विनय गुट) के अध्यक्ष और जीटीए प्रशासनिक बोर्ड के चेयरमैन विनय तमांग ने केंद्र सरकार पर पहाड़ के 11 जातीय समूहों को जनजाति की मान्यता दिलाने के मसले को लेकर राजनीति का आरोप […]

आरोप. गोरखा समुदाय के हित के लिए नहीं किया गया प्रयास

भाजपा के खिलाफ आंदोलन में उतरने की चेतावनी
दार्जिलिंग : गोजमुमो (विनय गुट) के अध्यक्ष और जीटीए प्रशासनिक बोर्ड के चेयरमैन विनय तमांग ने केंद्र सरकार पर पहाड़ के 11 जातीय समूहों को जनजाति की मान्यता दिलाने के मसले को लेकर राजनीति का आरोप लगाया है. शनिवार को प्रेस बयान जारी कर विनय तमांग ने केंद्र सरकार और सांसद एसएस अहलुवालिया को घेरते हुए कहा कि केंद्र सरकार इस मसले को आगामी लोकसभा चुनाव में मुख्य हथियार के रुप में इस्तेमाल के लिये मन बना रही है.
हालांकि उसने कभी भी गोरखा समुदाय के भीतर रही जनजातीय समूहों को जनजाति की मान्यता दिलाने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किया. उन्होंने एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार का हवाला देकर बताया कि इस मसले को सुलझाने के लिये गठित भिशु मियानी कमेटी का कार्यकाल भी समाप्त हो गया जिसके बाद केंद्र ने इसे छह माह और बढ़ा दी है. कमेटी की मियाद 13 मई 2018 तक बढ़ायी गयी है.
विनय तमांग ने बताया कि सिक्किम, दार्जिलिंग सहित गोरखा बहुल क्षेत्रों में निवास करने वाले 11 जातीय समूहों जैसे भुजेल, गुरुंग, मंगर, नेवार, जोगी, खस, राई, सुनवार, थामी, याक्खा (देवान) और धीमाल को जनजाति की मान्यता दिलाने को लेकर केंद्र के जनजाति कल्याण मंत्रालय ने अप्रैल 2016 में विभागीय सचिव अशोक पाई के नेतृत्व में आकलन कमेटी का गठन किया था.
‍्लेकिन यह कमेटी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी, उसी बीच अशोक पाई का स्थानांतरण हो जाने से मंत्रालय के उप निदेशक भिशु मियानी के नेतृत्व में नयी कमेटी का गठन किया गया. भिशु मियानी ने सर्वे के लिये नवंबर 2017 में सिक्किम व दार्जिलिंग का दौरा भी किया था. उसके बाद कमेटी निष्क्रिय हो गयी. हाल में मिली खबर के अनुसार इस कमेटी की मियाद पूरी होने पर एक नयी कमेटी गठित की गयी है. विनय तमांग ने इन तथ्यों का हवाला देकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र सरकार की सहानुभूति गोरखा जाति के साथ नहीं है. केवल दार्जिलिंग की सीट हासिल करने के लिये वह जुबानी खर्च कर रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान सिलीगुड़ी, वीरपाड़ा और बागडोगरा की जनसभाओं में 11 जनजातियों की मान्यता दिलाने का समर्थन किया था. लेकिन अभी तक उसका काम-काज उनकी मंशा को स्पष्ट करते हैं. उसी आश्वासन के बल पर एसएस अहलुवालिया को रिकार्ड वोट से जीत मिली. बाद में वे केंद्रीय मंत्री भी बने.
‍्लेकिन आज तक उन्होंने संसद में गोरखालैंड का मसला नहीं उठाया. सांसद बनने से पहले वे बराबर यह कहते सुने गये कि दार्जिलिंग ही उनका भावी घर होगा. लेकिन आज तक उनका पहाड़ में दर्शन नहीं है. न तो उन्होंने हालिया गोरखालैंड आंदोलन में कोई सार्थक भूमिका निभायी. उनके पास विदेश भ्रमण के लिये समय मिला लेकिन पहाड़ आकर आंदोलन में शहीद हुए कार्यकर्ताओं के घर जाकर उनके परिवारवालों के प्रति शोक जताने का समय नहीं मिला. न तो उन्होंने उनके लिये मुआवजा या उन्हें न्याय दिलाने के लिये कोइ बीड़ा उठाया.
सांसद पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि सांसद के लिए सदर थाने में उनकी गुमशुदगी की रपट भी दर्ज करायी गयी. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार गोरखालैंड का सपना दिखाकर गोरखा जाति को भ्रमित कर रही है.
आंदोलन के दौरान पहाड़ नहीं आकर भाजपा के नेताओं ने अपनी इसी संवेदनहीनता का परिचय दिया है. कहा कि उलटे केंद्र सरकार और भाजपा ऐसे नेताओं का साथ दे रहीं हैं जिनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह के मामले दर्ज हैं. इसीलिये गोरखा समुदाय का भरोसा वर्तमान केंद्र सरकार पर नहीं है. विनय तमांग ने कहा कि गोजमुमो की मांग 11 जातीय समूहों को जनजाति की मान्यता दिलाने के लिये गंभीर प्रयास किये जाने की है. ऐसा नहीं करने पर देश के विभिन्न हिस्सों के गोरखा भाजपा के खिलाफ आंदोलन में उतर जायेंगे.

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