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बांग्ला साहित्य व कला को कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर ने किया समृद्ध

विश्वभारती शांतिनिकेतन के संस्थापक कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर की जयंती बुधवार को देशभर में मनायी जायेगी. भारत के महान कवि, लेखक, नाटककार, दार्शनिक, संगीतकार व शिक्षाविद् रबींद्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती मनायी जायेगी.

बोलपुर.

विश्वभारती शांतिनिकेतन के संस्थापक कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर की जयंती बुधवार को देशभर में मनायी जायेगी. भारत के महान कवि, लेखक, नाटककार, दार्शनिक, संगीतकार व शिक्षाविद् रबींद्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती मनायी जायेगी. गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था. उनका पालन-पोषण एक संपन्न परिवार में हुआ, जहां उन्हें कला, साहित्य व संगीत के प्रति प्रोत्साहित किया गया. आठ साल की अल्पायु में ही टैगोर कविता लिखने लगे थे. 1879 में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई. टैगोर की औपचारिक शिक्षा घर से ही शुरू हुई. उन्होंने बांग्ला व अंगरेजी में भी कविताएं, नाटक, उपन्यास, लघु कथाएं, निबंध व यात्रा-वृत्तांत लिखे. उनकी रचनाओं में गीतांजलि, गोरखा, गोरा, चांडालिका और रश्मिरथी शामिल हैं. कालजयी कृति गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया. गुरुदेव, कविगुरु और विश्वकवि के नाम से प्रसिद्ध रबींद्रनाथ टैगोर नोबेल जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे. टैगोर ने रबींद्र संगीत नामक संगीत की अनूठी शैली विकसित की. उन्होंने 2,000 से अधिक गीत लिखे, जिन्न्हें ‘रबींद्र संगीत’ नाम से जाना जाता है. रबींद्रनाथ ने ही भारत का राष्ट्रगान ””जन-गण-मन… ”” और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ””आमार-सोनार-बांग्ला..”” की रचना की. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ही टैगोर को ””गुरुदेव”” की उपाधि दी थी. टैगोर ने लगभग 2,230 गीत रचे. उन्होंने बांग्ला साहित्य व कला को समृद्ध किया. भारत व बांग्लादेश के राष्ट्रगान लिखे. दोनों देशों के बीच आपसी प्रेम को बढ़ाया. आज पूरी दुनिया में टैगोर एकमात्र कवि हैं, जिनकी रचना आज उन देशों की आपसी कड़ी को मजबूती दी. टैगोर को भारत व बांग्लादेश के राष्ट्रकवि के रूप में सम्मानित किया गया है. उनकी रचनाओं का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है. उन्होंने कला, साहित्य, शिक्षा व दर्शन के क्षेत्र में योगदान दिया है.पश्चिम बंगाल में आठ मई को गुरुदेव की जयंती मनायी जायेगी. अलबत्ता, भारत के कई राज्यों में टैगोर जयंती ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सात मई को मनायी गयी है. टैगोर को धर्म-संसद में दो बार भाषण देने का गौरव मिला. उनके कार्यों ने बांग्ला साहित्य में बहार ला दी. उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे. इन रचनाओं में चोखेर बाली, घरे बाइरे, गोरा आदि शामिल हैं. उनके उपन्यासों में विशेष रूप से मध्यवर्गीय समाज प्रतिबिंबित होता है. कविगुरु के रबींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है. भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीतों में मानवीय भावनाएं घुली हुई हैं. कालांतर में गुरुदेव चित्रकारी भी करने लगे थे. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्रा की थी. विश्वभारती के प्रोफेसर सुदीप्त भट्टाचार्य बताते हैं कि टैगोर का कथा साहित्य व उपन्यास भले ही बंकिमचंद्र व शरतचंद्र जितने लोकप्रिय ना हों, मगर साहित्य के मापदंडों पर उनका कथा-साहित्य उच्च कोटि का है. उन्होंने भारतीय साहित्य में नये मानक गढ़े. समीक्षकों के मुताबिक टैगोर की कृति ””गोरा”” कई मायनों में अलग है. विश्वभारती के छात्र सोमनाथ साव ने कहा कि टैगोर को यूं ही गुरुदेव नहीं कहा जाता है. उनके विचार व ज्ञान गुरु की तरह लोगों का मार्गदर्शन करते हैं. टैगोर के प्रासंगिक विचारों को जीवन में उतारने से भविष्य में आपकी राह आसान हो जाती है. टैगोर का निधन सात अगस्त 1941 को हो गया था. देश की इस महाविभूति का जाना देश के लिए भारी क्षति थी.

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Prabhat Khabar News Desk
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