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फर्जीवाड़े के बाद भी खाताधारकों को क्यों मिले सुनवाई का मौका : कोर्ट

उधारकर्ता को कोई वास्तविक हानि नहीं होती, क्योंकि उसे कारण बताओ नोटिस के बाद लिखित जवाब देने का पूरा अवसर मिलता है.

कोलकाता. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि उन बैंक खाताधारकों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देने से क्या फायदा होगा, जिनके खातों को 2017 में भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से तय नियमों के तहत उचित जांच-पड़ताल के बाद फ्रॉड घोषित किया गया था. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ मंगलवार को भारतीय स्टेट बैंक की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कलकत्ता हाइकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गयी है, जिसमें इन खाताधारकों को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए व्यक्तिगत सुनवाई का मौका देने के लिए कहा गया था. पीठ ने निजी कंपनी अमित आयरन प्राइवेट लिमिटेड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर से कहा : व्यक्तिगत सुनवाई के मौके को कैसे उचित ठहरा सकते हैं, जबकि बैंक ने आरबीआइ के सर्कुलर के अनुसार काम किया है. इस सर्कुलर के अनुसार बैंक ने उचित जांच-पड़ताल के बाद आपको कारण बताओ नोटिस जारी कर लिखित रूप में अपनी बात रखने का अवसर प्रदान किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्यक्तिगत सुनवाई पर जोर देने से बैंकों और पूरे नियामकीय ढांचे को गंभीर नुकसान होगा. उधारकर्ता को कोई वास्तविक हानि नहीं होती, क्योंकि उसे कारण बताओ नोटिस के बाद लिखित जवाब देने का पूरा अवसर मिलता है. उन्होंने आरबीआइ के मास्टर डायरेक्शन 2017 का हवाला देते हुए कहा कि बैंकिंग धोखाधड़ी में लगातार वृद्धि के कारण एकीकृत और कठोर तंत्र बनाना आवश्यक था. उन्होंने कहा कि वर्षों से धोखाधड़ी रोकने में बैंकों के बीच समन्वय की कमी सबसे बड़ी चुनौती रही, जिसके कारण एक बैंक के साथ धोखाधड़ी कर चुके लोग दूसरे बैंक से कर्ज ले लेते थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया है, मामले की सुनवाई आगे जारी रहेगी. आरबीआइ की 2024-2025 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 से 2025 तक बैंकिंग धोखाधड़ी और उसमें शामिल राशि का आंकड़ा देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा : 2022-23 में धोखाधड़ी की संख्या 13,494 और राशि 18,981 करोड़ रुपये थी. 2023-24 में 36,060 बैंक धोखाधड़ी के मामले थे, जिनमें 12,230 करोड़ रुपये शामिल थे और 2024-25 में मामले 23,953, जबकि राशि 36,014 करोड़ रुपये थी.

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