हाइकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को रखा बरकरार
संवाददाता, कोलकातापश्चिम बंगाल संयुक्त प्रवेश परीक्षा (डब्ल्यूबीजेइइ) के परिणाम प्रकाशन को लेकर कानूनी जटिलता जारी है. गुरुवार को कलकत्ता हाइकोर्ट की डिविजन बेंच ने स्पष्ट किया कि परिणाम प्रकाशन को लेकर एकल पीठ के निर्देश ही प्रभावी रहेंगे. जस्टिस सुजॉय पाल की अगवाई वाली खंडपीठ में पश्चिम बंगाल संयुक्त प्रवेश बोर्ड की ओर से बताया गया कि बोर्ड परिणाम जारी करने के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन चल रहे मामले के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा. इस पर न्यायालय ने कहा कि सिंगल बेंच पहले ही समयबद्ध परिणाम जारी करने का आदेश दे चुकी है, ऐसे में नये सिरे से कोई निर्देश देने का अवसर नहीं है.अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि चूंकि संयुक्त प्रवेश बोर्ड ने सिंगल बेंच के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है, इसलिए डिविजन बेंच इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं कर रही. हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने हजारों विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया. डिविजन बेंच सुनवाई दो सितंबर को कर सकती है. वहीं अगले सप्ताह उच्चतम न्यायालय में भी सुनवाई होने की संभावना है.
इससे संबंधित मामले पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ ने कहा था कि नयी ओबीसी सूची के आधार पर डब्ल्यूबीजेइइ की मेधा तालिका जारी नहीं की जा सकेगी, बल्कि वर्ष 2010 से पहले की 66 ओबीसी समुदायों की सूची के आधार पर इसे नये सिरे से तैयार करना होगा. एकल पीठ ने डब्ल्यूबीजेइइ बोर्ड को आगामी 15 दिनों में अदालत के इस निर्देश पर अमल करने को कहा था और उसके बाद के तीन सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल कर अदालत को इसकी जानकारी देने का निर्देश दिया गया था. यह भी कहा था कि हलफनामा सीनियर स्पेशल सेक्रेटरी स्तर के किसी अधिकारी को दाखिल करना होगा. एकल पीठ ने यह भी कहा था कि ओबीसी परीक्षार्थियों के लिए पहले की तरह सात प्रतिशत आरक्षण लागू रहेगा. बंगाल सरकार ने एकल पीठ के निर्णय को खंडपीठ में चुनौती दी थी, हालांकि उसे वहां निराशा हाथ लगी है. एकल पीठ की ओर से बांधी गयी समय सीमा 22 अगस्त को खत्म हो रही है.गौरतलब है कि सात अगस्त को संयुक्त प्रवेश परीक्षा का परिणाम जारी होना था. लेकिन जस्टिस कौशिक चंद्र की एकल पीठ ने नयी ओबीसी सूची को लेकर आपत्ति जतायी थी. अदालत ने पिछले वर्ष डिविजन बेंच के आदेश का हवाला देते हुए संयुक्त प्रवेश बोर्ड को निर्देश दिया था कि ओबीसी सूची का पुनर्मूल्यांकन किया जाये. 2010 से पहले के प्रमाणपत्र को मान्यता दी जाये और सात प्रतिशत आरक्षण के आधार पर सूची तैयार की जाये. इसके बाद ही राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
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