35.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

अब वीरान पड़ी है साहागंज स्थित टायर फैक्टरी

1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई से लेकर 1999 के करगिल युद्ध तक डनलप ने दिया सेना का साथ

Audio Book

ऑडियो सुनें

1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई से लेकर 1999 के करगिल युद्ध तक डनलप ने दिया सेना का साथ हुगली. जिले के साहागंज में हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित डनलप टायर फैक्टरी कभी देश की रक्षा ताकत का अहम हिस्सा हुआ करती थी. 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्ध में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों को जिन टायरों ने सहारा दिया, वे डनलप के ही थे. 1999 के कारगिल युद्ध में भी सेना ने डनलप के बनाये एरो टायर और ओटीआर टायर का इस्तेमाल किया. लेकिन आज वही डनलप फैक्टरी इतिहास के पन्नों में सिमट चुकी है– वीरान, जर्जर और गुमनाम. भूखे मजदूरों ने देशहित में खोले दरवाजे: एरो टायर निर्माण में कार्यरत रहे श्रमिक मधु शर्मा याद करते हैं : फैक्टरी बंद थी, हमारी हालत खराब थी. पहले तो भूखे मजदूर टायर देने को तैयार नहीं थे, लेकिन राज्य के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता ने आकर समझाया कि देश पहले है. इसके बाद मजदूरों ने फैक्टरी के गेट खोले और वायुसेना के जवान ट्रकों में टायर भरकर ले गये. मधु शर्मा गर्व से बताते हैं कि भले वे युद्ध के मैदान में नहीं थे, लेकिन उनकी मेहनत से बने टायर भारत की जीत का हिस्सा बने. श्रमिक असीम कुमार बसु भी कहते हैं : बिना वेतन और तमाम संघर्षों के बीच हमने देश के लिए टायर दिये थे. डनलप सिर्फ वायुसेना ही नहीं, बल्कि नौसेना के जहाजों में इस्तेमाल होने वाले वी बेल्ट भी बनाती थी– यह भी उन्हीं दिनों सेना को मुहैया कराये गये. करगिल युद्ध में बंद फैक्टरी का योगदान 1998 में जब यह फैक्टरी मनु छाबड़िया समूह के हाथों में थी, तब इसका उत्पादन पूरी तरह बंद हो गया था. लेकिन जब 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ा, तब डनलप के गोदामों में अभी भी वे टायर मौजूद थे, जो सेना के लिए बेहद जरूरी थे. एरो टायर वायुसेना के लड़ाकू विमानों में और ओटीआर टायर टैंक व बोफोर्स तोपों में इस्तेमाल होते थे.तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को आदेश दिया कि डनलप के स्टॉक से जरूरी टायर सेना को उपलब्ध कराये जायें. फैक्टरी भले ही बंद थी, लेकिन उसके भीतर मौजूद टायर उस समय देश की सबसे बड़ी जरूरत बन गये. अब हो चुकी है खंडहर मंे तब्दील आज वही डनलप फैक्टरी एक खंडहर में बदल चुकी है. जर्जर इमारतें, वीरान पड़ी जमीन और बंद गेट – जैसे एक दौर का अंत. किसी भी सरकार ने इसे दोबारा खड़ा करने की कोशिश नहीं की. जिस फैक्टरी ने देश के लिए योगदान दिया, वही आज पूरी तरह भुला दी गयी है.देश में सामरिक टायर निर्माण की अब भी जरूरत है, लेकिन डनलप जैसा नाम दोबारा उभर नहीं पाया. मजदूरों की नयी पीढ़ी साहागंज छोड़ चुकी है, और कुछ बुजुर्ग ही बचे हैं, जो आज भी दीवारों को देखकर उन गौरवशाली दिनों की कहानियां सुनाते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel