संवाददाता, कोलकाता
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने शुक्रवार को कहा कि वर्तमान में राज्य में एक भी बिल पेंडिंग नहीं है. उन्होंने यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गवर्नरों की विधायी शक्तियों और उनकी सीमाओं से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले के बाद दी. राज्यपाल बोस ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि अदालत ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गवर्नर या भारत के राष्ट्रपति के लिए किसी बिल पर निर्णय लेने की टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वे किसी फाइल को अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं. किसी भी देरी के पीछे उचित कारण होना चाहिए. राज्यपाल बोस ने बताया कि तीन वर्ष पहले उन्होंने राज्य सरकार और विधानसभा के साथ संवाद की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिल चुकी है. उन्होंने यह भी दोहराया कि बंगाल में कोई बिल लंबित नहीं है, बल्कि कुछ बिलों को स्पष्टीकरण नोट्स के साथ राज्य सरकार को वापस भेजा गया है. सरकार के जवाब मिलते ही बिना किसी देरी के आवश्यक कार्रवाई की जायेगी.
यह पूरा विवाद तब उभरा जब तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने कई बिल लंबित रखे. इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, और न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर ने आठ अप्रैल के अपने पूर्व आदेश को पलटते हुए कहा कि राज्यपाल/राष्ट्रपति के लिए तय टाइमलाइन का प्रावधान करना न्यायालय द्वारा उनकी शक्तियों को कब्जा करने जैसा होता, जिसकी अनुमति संविधान नहीं देता. राज्यपाल बोस की यह टिप्पणी उसी फैसले की प्रतिक्रिया में आयी है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

