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सरहद पर शिक्षा का अलख जगा रहा मुंगेर का जवान

देश की सरहदों की रक्षा के लिए तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान किसी भी परीक्षा के लिए तैयार रहते हैं. वे जान तक की परवाह नहीं करते.

अमित शर्मा, कोलकाता

देश की सरहदों की रक्षा के लिए तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान किसी भी परीक्षा के लिए तैयार रहते हैं. वे जान तक की परवाह नहीं करते. इतना ही नहीं, वे इससे आगे भी देश-समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं. इनके जज्बे का कहना नहीं है. बीएसएफ के एक जवान की एक अनूठी पहल इसका उदाहरण है. वह सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए भी काम कर रहा है. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग और अनोखा करने की दिशा में बीएसएफ के असिस्टेंट कमांडेंट मनोज कुमार को उनके सहकर्मियों और अधिकारियों का भी चहेता बना दिया है. मनोज कुमार मूल रूप से बिहार के मुंगेर जिले के हैं. वह बीएसएफ के 93वीं बटालियन में असिस्टेंट कमांडेंट हैं. फिलहाल उनकी पोस्टिंग जलपाईगुड़ी स्थित भारत-बांग्लादेश सीमा पर है. मनोज कुमार सीमा पर अपनी ड्यूटी के अतिरिक्त शिक्षा का भी अलख जगा रहे हैं. उनकी कोशिश का ही नतीजा है कि सीमा से सटे करीब 20 गांवों के बच्चों को मुफ्त कोचिंग की सुविधा मिल रही है. श्री कुमार चूंकि खुद ही अर्द्धसैनिक बल में हैं, इसलिए वह इन बच्चों को बीएसएफ और ऐसे ही अन्य बलों में भर्ती के लिए प्रोत्साहित करते हैं. जो बच्चे उनकी देखरेख में पढ़-लिख रहे हैं, उनके लिए मनोज कुमार प्रशिक्षण कार्यक्रमों का भी आयोजन करते हैं.

युवतियों को बना रहे हैं आत्मनिर्भर

असिस्टेंट कमांडेंट मनोज कुमार के अनुसार, सीमा से सटे गांवों में रहने वाले यदि शिक्षित हों और सतर्क रहें, तो इलाके के विकास की गति को और बल मिलेगा. कुछ ऐसा ही सोचते हुए उन्होंने चार-पांच बच्चों को मुफ्त कोचिंग देने की शुरुआत की थी और आज उनके विद्यार्थियों की संख्या काफी बढ़ चुकी है. अब तो स्थिति यह है कि अन्य गांवों के लोग भी उनके यहां कोचिंग का शिविर लगाने का अनुरोध कर रहे हैं. श्री कुमार ने बताया है कि उनके इस कार्य में उनकी बटालियन का पूरा सहयोग मिलता है और अब उनकी आगे की योजना है कि वे सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली युवतियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कुछ ठोस पहल हो, कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रम हाथ में लिये जायें. ऐसे प्रशिक्षण कार्य के लिए आवश्यक धन के जुगाड़ के लिए उन्होंने विभाग स्तर पर बातचीत करने का आश्वासन दिया है.

सरहद के एक गांव से हुई शुरुआत

उत्तर बंगाल फ्रंटियर में पोस्टिंग के पश्चात श्री कुमार ने पिछले साल नवंबर में जलपाईगुड़ी सीमा से सटे खिड़कीडांगा नामक एक गांव में कक्षा आठ से 12 तक के विद्यार्थियों को मुफ्त कोचिंग देने का बीड़ा उठाया. अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद जब भी समय मिला, बच्चों को पढ़ाने में जुट गये. स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा वह जेनरल नॉलेज और शारीरिक शिक्षा का भी ध्यान रखते हैं. उनकी इस पहल को देख कर बीएसएफ की 93वीं बटालियन के कमांडेंट संजय कुमार सिंह और बटालियन के अन्य जवान और अफसरों से भी उन्हें प्रोत्साहन मिला. धीरे-धीरे श्री कुमार का अभियान आगे बढ़ा और अब खिड़कीडांगा ही नहीं, बल्कि घोड़ादेवा, जमींदारपाड़ा और जयंतीपाड़ा के भी बच्चे मुफ्त शिक्षा व प्रशिक्षण पाने लगे हैं. कुछ अन्य गांवों के बच्चे भी श्री कुमार की छत्रछाया में पढ़ने के लिए आने लगे. अभी सीमा से सटे गांवों के 200 से ज्यादा विद्यार्थी मुफ्त शिक्षण व प्रशिक्षण का लाभ ले रहे हैं. श्री कुमार की कोशिश से प्रभावित होकर उनके चार अन्य सहकर्मी भी बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में सहयोग के लिए आगे आये हैं. ये लोग केवल समय और श्रम दे रहे हों, ऐसा नहीं. मनोज कुमार और उनके सहयोगी यहां के विद्यार्थियों के हित में धन भी खर्च कर रहे हैं. वे अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा इनके भले के लिए खर्च भी करते हैं.

ड्रग्स के खिलाफ भी कर रहे हैं जागरूक

बच्चों को मुफ्त कोचिंग और प्रशिक्षण देने के साथ ही श्री कुमार व उनके साथी सीमावर्ती गांवों में रहने वाले बच्चों व युवाओं को ड्रग्स व नशीले पदार्थों के खिलाफ जागरूक करने पर भी बल दे रहे हैं. उन्हें ड्रग्स और तस्करों के चंगुल से बचाया जा सके, इसके लिए वे इन्हें हर तरह से समझाने-बुझाने और तैयार करने पर जोर दे रहे हैं. मुफ्त कोचिंग के लिए जहां ये शिविर लगाते हैं, वहीं ड्रग्स के खतरों के खिलाफ भी सबको सावधान रहने का सबक दिया जाता है. इन्हें तस्करों से सतर्क रहने की हिदायतें भी दी जाती हैं. इसके नफा-नुकसान के बाबत समझाते हुए. श्री कुमार और उनके साथियों के योगदान को देखते हुए खिड़कीडांगा के नजरूल मंडल व अन्य स्थानीय लोग कहते हैं कि वे इतना तो जानते थे कि बीएसएफ के जवान सुरक्षा ड्यूटी करते हैं, पर वे ‘मास्टर मोशाय’ की भूमिका में भी दिख सकते हैं, ऐसा कभी सोचा नहीं था.

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