कोलकाता.
पश्चिम बंगाल ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (डब्ल्यूबीजेईई) के नतीजे कोर्ट के आदेश के बाद चार महीने की देरी से शुक्रवार को घोषित किये गये, लेकिन इस देरी ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है- क्या बंगाल अब मेधावी छात्रों को रोक पाने में सक्षम है? परिणामों की घोषणा के साथ ही एक चौंकाने वाली हकीकत सामने आयी. मेरिट सूची में शामिल शीर्ष 10 छात्रों में से ज्यादातर ने पहले ही राज्य छोड़ दिया है. इनमें से कुछ छात्र आइआइटी खड़गपुर में अध्ययन कर रहे हैं, जबकि अन्य दिल्ली, मुंबई, पुणे और बेंगलुरु जैसे शहरों के प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला ले चुके हैं.जेईई की तैयारी कराने वाले शिक्षकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से यह ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है. राज्य की शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और स्थिरता की कमी के कारण छात्र अन्य राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं.
विशेषज्ञों और अभिभावकों का मानना है कि डब्ल्यूबीजेईई के नतीजों में चार महीने की देरी ने छात्रों का भरोसा और अधिक कमजोर किया है. इसी बीच आरजी कर मेडिकल कॉलेज, जादवपुर विश्वविद्यालय, कलकत्ता लॉ कॉलेज सहित अन्य संस्थानों में हालिया घटनाओं ने शैक्षणिक माहौल पर और भी नकारात्मक असर डाला है.प्रमुख चिंताएं
शैक्षणिक माहौल में गिरावट : राज्य के प्रमुख विश्वविद्यालयों में अनुशासन और सुरक्षा को लेकर सवाल उठे हैं.भरोसे की कमी : अभिभावक और छात्र अब राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं कर पा रहे.
प्रतिस्पर्धी संस्थानों की ओर रुख : अधिकांश टॉप रैंकर्स ने जेईई (मेन व एडवांस्ड) के जरिये पहले ही बाहर के संस्थानों में दाखिला ले लिया था.बुद्धिजीवियों का कहना है कि यदि समय रहते राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो यह पलायन और तेज हो सकता है. एक राज्य के विकास में उसकी युवा प्रतिभा की अहम भूमिका होती है और जब वही प्रतिभा राज्य से पलायन कर जाये, तो यह केवल शिक्षा का ही नहीं, बल्कि भविष्य का भी संकट बन जाता है.
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