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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बंगाल मदरसा मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता द्वारा पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को किसी अन्य बेंच को सौंपे जाने पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के प्रति अपनी निराशा व्यक्त की थी. इसके बाद जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की दूसरी बेंच ने निर्देश दिया कि मामले को सूचीबद्ध करने के लिए उचित आदेश हेतु चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष रखा जाए.

कोलकाता.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता द्वारा पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को किसी अन्य बेंच को सौंपे जाने पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के प्रति अपनी निराशा व्यक्त की थी. इसके बाद जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की दूसरी बेंच ने निर्देश दिया कि मामले को सूचीबद्ध करने के लिए उचित आदेश हेतु चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष रखा जाए. यह मुद्दा तब उठा जब जस्टिस दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 (मस्तारा खातून बनाम मदरसा शिक्षा निदेशालय) से संबंधित याचिका पर गौर किया. जस्टिस दीपांकर दत्ता को सूचित किया गया कि जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ द्वारा अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई की जा रही है, जिन पर स्थगन आदेश पारित किये गये हैं. उन्होंने पूछा कि रजिस्ट्री उनके अलावा किसी और खंडपीठ को कैसे नियुक्त कर सकती है, जबकि वह उसी खंडपीठ का हिस्सा रहे हैं, जिसने पहले भी इसी तरह के मामलों में कई आदेश पारित किये.

उन्होंने टिप्पणी की, ””ऐसा क्यों है कि बंगाल के एक जज को नजरअंदाज किया जा रहा है?”” सुप्रीम कोर्ट अगले दिन जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. खंडपीठ ने जस्टिस दत्ता की बेंच द्वारा की गयी निम्नलिखित टिप्पणियों पर विचार किया: “हालांकि, हम इस बात से पूरी तरह हैरान हैं कि इस न्यायालय की रजिस्ट्री संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए समान मुद्दों से जुड़ी याचिकाओं को सूचीबद्ध करते समय कैसे काम करती है. ऐसी रिट याचिकाओं को सूचीबद्ध करते समय रजिस्ट्री को या तो ””कोरम नियम”” या ””रोस्टर नियम”” का पालन करना चाहिए.

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