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पूजा की प्रत्येक वस्तु में है औषधीय गुण : सुमित सूर

पूजा केवल भक्ति नहीं, स्वास्थ्य व प्रकृति संरक्षण का भी देती है संदेश

पूजा केवल भक्ति नहीं, स्वास्थ्य व प्रकृति संरक्षण का भी देती है संदेश

कोलकाता. हमारे देश के धार्मिक अनुष्ठान केवल भक्ति की अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच शाश्वत कड़ी भी हैं. पश्चिम मेदिनीपुर जिला के दे पारा (चंद्रा) ब्लॉक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ सुमित सूर का कहना है कि देवी-देवताओं की पूजा केवल अध्यात्म तक सीमित नहीं है. प्रत्येक अनुष्ठान में प्रकृति संरक्षण और जीव-जगत के कल्याण का गहरा संदेश छिपा हुआ है. डॉ सूर के अनुसार, वैदिक काल से ही पूजा की वस्तुओं में जड़ी-बूटियां, धातु और प्राकृतिक तत्व शामिल रहे हैं, जो आयुर्वेद के दृष्टिकोण से अमूल्य चिकित्सा संसाधन हैं. पूजा में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों का व्यापक रूप से उपयोग आयुर्वेद में किया जाता है. दुर्गा पूजा में प्रयुक्त नवपत्रिका, पंचपल्लव, पंचगव्य, नारियल (डाब), तिल, हरीतकी, बिल्व, हल्दी, श्वेत कज्जल, चावल, दूर्वा, सफेद सरसों, आंवला, शहद और धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, शंख, लोहा समेत लगभग 35 प्रकार की जड़ी-बूटियां इस्तेमाल में लायी जाती हैं. डॉ सूर बताते हैं कि दुर्गा पूजा में नवपत्रिका के लिए एक केले के पेड़ को अन्य आठ पौधों और सफेद अपराजिता की बेल के साथ बांधा जाता है. स्त्री शरीर की रक्षा के लिए दो बेल फलों का उपयोग किया जाता है. अंत में उसे लाल और सफेद पार वाली साड़ी और सिंदूर से स्त्री रूप दिया जाता है.

कहा जाता है कि ये नौ पौधे देवी दुर्गा के नौ रूपों के प्रतीक हैं. केले का पौधा, फल, फूल, पत्ते और कंद सभी औषधीय उपयोग के लिए उत्तम हैं. वहीं, हरीतकी त्वचा संबंधी समस्याओं और ज्वर में प्रयोग होती है. डॉ सूर ने बताया कि पंचपल्लव यानी आम, अश्वत्थ, बरगद, पाकुड़ और यज्ञ दुमुर के पत्ते और छाल का उपयोग त्वचा रोगों और घावों के उपचार में किया जाता है. आम के पत्ते कफ, सांसों की दुर्गंध और गले की खराश में लाभकारी हैं.

कच्चा आम अपच के लिए उपयोगी है, जबकि पका आम बलवर्धक और निद्राजनक होता है. बरगद और पाकुड़ के पत्ते पित्त निवारक हैं. यज्ञ दुमुर के पत्ते और छाल का भी घावों के उपचार में व्यापक उपयोग होता है. आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियों को गोमूत्र के माध्यम से शुद्ध किया जाता है. डाब (नारियल) का पानी खनिज लवण और शर्करा से भरपूर होता है, जो शरीर के लिए आवश्यक है. तिल का तेल कफनाशक के रूप में, गठिया में दर्द निवारक और विभिन्न रोगों के लिए उपयोगी है. सफेद और काले तिल दोनों ही औषधीय हैं. शहद में भी आयुर्वेदिक गुण मौजूद हैं. शंख की भस्म का उपयोग उदर रोगों में और शरीर में कैल्शियम की पूर्ति के लिए किया जाता है. डॉ सूर का निष्कर्ष है कि पूजा की प्रत्येक वस्तु केवल भक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, औषधीय लाभ और प्रकृति संरक्षण का संदेश भी देती है.

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