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डूबने से होने वाली मौतों पर लगाम संभव

ब्रिटेन स्थित एक शीर्ष संस्थान के विशेषज्ञ का कहना है कि भारत में बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में डूबने से होने वाली मौतें प्रमुख हैं और इसे सरल और कम लागत वाले उपायों के माध्यम से पूरी तरह से रोका जा सकता है.

कोलकाता

. ब्रिटेन स्थित एक शीर्ष संस्थान के विशेषज्ञ का कहना है कि भारत में बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में डूबने से होने वाली मौतें प्रमुख हैं और इसे सरल और कम लागत वाले उपायों के माध्यम से पूरी तरह से रोका जा सकता है.

‘रॉयल नेशनल लाइफबोट इंस्टीट्यूशन’ (आरएनएलआइ) की प्रमुख केट एर्डली ने कहा कि डूबने को अक्सर ‘अप्राकृतिक मौत’ की श्रेणी में रखा जाता है और कई सरकारें इसे गंभीर मुद्दा नहीं मानतीं.

एर्डली ने भारत की अपनी पहली यात्रा के दौरान हाल ही में कहा कि भारत ने डूबने की घटनाओं को रोकने के लिए ‘2023 विश्व स्वास्थ्य सभा’ के प्रस्ताव का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

उन्होंने कहा: कई सरकारें अभी भी डूबने को एक गंभीर समस्या नहीं मानतीं. अक्सर इसे ””अप्राकृतिक मौत”” की श्रेणी में डाल दिया जाता है और इसके समाधान पर ध्यान नहीं दिया जाता. लेकिन डूबने की घटनाओं को रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि भारत ने अनजाने में घायल होने की घटनाओं की रोकथाम के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति भी शुरू की है, जिसमें डूबने से होने वाली मौतों को प्राथमिकता दी गयी है. हालांकि, जमीनी स्तर पर खासकर राज्य स्तर पर इसका क्रियान्वयन असंगत रहा है. पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गंभीर है.

एर्डली ने कहा कि सुंदरबन जैसे क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील हैं, जहां अक्सर छोटे बच्चे तालाबों और नहरों के पास खेलते रहते हैं, जबकि उनके माता-पिता काम की तलाश में गये होते हैं.

उन्होंने कहा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा जोखिम में हैं. एर्डली के अनुसार सरल और कम लागत वाले उपायों से इन्हें रोका जा सकता है.

माताओं को दिया जाये प्रशिक्षण : आरएनएलआइ पश्चिम बंगाल के गैर-सरकारी संगठन ‘चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट’ (सीआइएनआइ) के साथ मिलकर इस दिशा में जागरुगता पैदा कर रहा है कि समुदाय के लोगों, खासकर माताओं को प्राथमिक उपचार और सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) का प्रशिक्षण कैसे जीवन बचाने में कारगर हो सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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