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वास्तविकता से संबंध न होना मानसिक बीमारी की वजह

कोलकाता : महानगर में एक के बाद एक रोबिंसन स्ट्रीट की जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं. परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद भी उसे कई दिनों तक जिंदा समझना, उसके बगल में सोना एक मानसिक बीमारी है. इस प्रकार की मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते. चिकित्सीय भाषा […]

कोलकाता : महानगर में एक के बाद एक रोबिंसन स्ट्रीट की जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं. परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद भी उसे कई दिनों तक जिंदा समझना, उसके बगल में सोना एक मानसिक बीमारी है.

इस प्रकार की मानसिक बीमारी से पीड़ित लोग वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते. चिकित्सीय भाषा में इस बीमारी को साइकोसिस सिजोफ्रेनिया कहा जाता है. मेडिकल साइंस के अनुसार मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोग ही इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं.
एसएसकेएम (पीजी) हॉस्पिटल के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंसेस के मनोचिकित्सा विभाग के प्रो डॉ इंद्रनील साहा ने बताया कि किसी जानवर की मौत के बाद उसके साथी पशु भी शव को छोड़ देते हैं. अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जाये और उसके परिवार का कोई सदस्य शव के साथ रह रहा हो तो ऐसा करनेवाला व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार होता है. यह एक पैथोलॉजिकल समस्या है.
ऐसे लोग साइकोसिस सिजोफ्रेनिया के शिकार हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि साइकोसिस एक विरल बीमारी नहीं. ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल में ही इस तरह के ऐसे मामले देखे जा रहे हैं. देश में हर साल 10 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आते हैं. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का शारीरिक विकास तो होता है.
उम्र बढ़ने के साथ-साथ पीड़ित व्यक्ति भावनातमक रूप से विकसित नहीं होता पाता है. डॉ दास ने कहा कि उक्त बीमारी से ग्रसित लोग यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि उनके परिवार के सदस्य की मौत हो गयी है. पीड़ित व्यक्ति को लगता है कि मृत व्यक्ति उससे बात कर रहा है, लेकिन इस मानसिक बीमारी का पूरी तरह से इलाज संभव है.
साइकोसिस से जूझ रहे व्यक्ति समाजा से दूर होता है. वह अपने घर की चारदिवारी के अंदर पड़ा रहता है. समाज से अलग थलग पड़ जाता है. आइएलएस हॉस्पिटल के केमिकल साइकोलॉजिस्ट अभिषेक हंस ने बताया कि इस बीमारी का इलाज संभव है. ऐसा भी हो सकता पीड़ित व्यक्ति की मौत से पहले उसके उस परिजन के काफी लगाव हो.

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