– 16 से 18 सीटों पर निभा सकते हैं महत्वपूर्ण भूमिका
कोलकाता : पश्चिम बंगाल के कुल मतदाताओं में से करीब 30 फीसदी लोग अल्पसंख्यक हैं और वे राज्य की लगभग 16-18 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. इस वोट बैंक को हर राजनीतिक पार्टी लुभाने की कोशिश करती है. उत्तर बंगाल में रायगंज, कूचबिहार, बालुरघाट, माल्दा उत्तर, मालदह दक्षिण, मुर्शिदाबाद और दक्षिण बंगाल में डायमंड हार्बर, उलुबेरिया, हावड़ा, बीरभूम, कांथी, तमलुक, जयनगर जैसी संसदीय सीटों पर मुस्लिमों की आबादी बहुत अधिक है.
राज्य की सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए जी-जान से जुटी हुई है, हालांकि अल्पसंख्यकों का एक वर्ग तृणमूल कांग्रेस से भी नाराज है. कोलकाता की बड़ी मुस्लिम आबादी पर प्रभाव रखने वाले इमामों का मानना है कि अल्पसंख्यकों को सबसे मजबूत धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवार के लिए वोट करना चाहिए.
हर साल ईद पर रेड रोड में नमाज अता कराने वाले इमाम काजी फजलुर रहमान ने भाषा से कहा : हम अल्पसंख्यकों से अपने-अपने इलाकों में सबसे मजबूत धर्मनिरपेक्ष ताकतों के पक्ष में वोट देने की अपील करेंगे. यह सुनिश्चित करने के प्रयास होने चाहिए कि केवल धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक उम्मीदवार जीते.
तृणमूल का राज्य में अल्पसंख्यक वोटों पर काफी प्रभाव है लेकिन पिछले चार सालों में कई दंगे हुए जिससे अल्पसंख्यकों का एक वर्ग काफी नाराज है. गृह मंत्रालय द्वारा 2018 में जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में साल 2015 से ही सांप्रदायिक हिंसा तेजी से बढ़ी है. इससे अल्पसंख्यकों का एक वर्ग काफी नाराज है.
दूसरी ओर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस के भाजपा के खिलाफ तीखे तेवर भी अल्पसंख्यकों को खुश करने की उसकी कवायद है. वहीं, वाममोर्चा और कांग्रेस भी अल्पसंख्यक वोटों पर अपनी निगाहें टिकायी हुई है.
वाममोर्चा व कांग्रेस के नेता तृणमूल कांग्रेस पर भाजपा के साथ साठगांठ का आरोप लगाते हैं. माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती का कहना है कि भाजपा व तृणमूल कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलु हैं तथा दोनों की नीतियां जनविरोधी हैं.