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यूपी से बंगाल तक ज्यादातर जगहों पर गंगा है मैली

कोलकाता/नयी दिल्ली : केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी एक मानचित्र में दिखाया गया है कि उत्तर प्रदेश-पश्चिम बंगाल क्षेत्र में ज्यादातर स्थानों पर गंगा नदी का जल पीने और नहाने लायक नहीं है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पिछले महीने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को एक सौ किलोमीटर के अंतराल पर डिस्प्ले बोर्ड […]

कोलकाता/नयी दिल्ली : केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी एक मानचित्र में दिखाया गया है कि उत्तर प्रदेश-पश्चिम बंगाल क्षेत्र में ज्यादातर स्थानों पर गंगा नदी का जल पीने और नहाने लायक नहीं है. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पिछले महीने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को एक सौ किलोमीटर के अंतराल पर डिस्प्ले बोर्ड लगाकर यह बताने को कहा था कि जल पीने या नहाने लायक है या नहीं.
एनजीटी ने मिशन और सीपीसीबी से उनकी वेबसाइट पर दो सप्ताह के भीतर एक मानचित्र अपलोड करने को कहा था, जिसमें दिखाया जाये कि किन स्थानों पर नदी का जल पीने और नहाने के लिए ठीक है.
एनजीटी के निर्देश का अनुपालन करते हुए सीपीसीबी ने मानचित्र अपलोड किया, जिसमें गंगा नदी की ज्यादातर लंबाई पर लाल रंग के बिंदु दिखाये गये. लाल रंग के बिंदु का मतलब हुआ कि वहां का पानी पीने या नहाने लायक नहीं है.
उत्तराखंड और गंगा के उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने पर कुछ अन्य स्थानों पर नदी पर हरे रंग के बिंदु दिखाये गये हैं जिसका मतलब यह है कि जल पीने और नहाने के लायक है. इसके बाद नदी का जल उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित आरा पर एक स्थान के अलावा पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी में गिरने तक अयोग्य है.
जल संरक्षण कार्यकर्ता मनोज मिश्रा ने कहा कि ‘कोलीफॉर्म’ स्तर पानी में खतरनाक जीवाणुओं की उपस्थिति बताता है और अगर इसका स्तर 500 से कम होता है तब ही यह उबालकर पीने योग्य हो सकता है.

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