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लोकसभा के हेड मास्टर माने जाते थे सोमनाथ

पश्चिम बंगाल तथा देश के कई नेता श्री चटर्जी को लोकसभा के हेड मास्टर मानते थे. इसका जिक्र 2010 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘कीपिंग द फेथ : मेमोयर्स ऑफ ए पार्लियामेंटेरियन’’ में किया है. उन्होंने लिखा, ‘मेरे द्वारा नियमित समयावधि पर आसन से लगायी गयी डांट भावपूर्ण हैं. इनसे मुझे ‘हेडमास्टर’ की उपाधि मिली, जिनसे […]

पश्चिम बंगाल तथा देश के कई नेता श्री चटर्जी को लोकसभा के हेड मास्टर मानते थे. इसका जिक्र 2010 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘कीपिंग द फेथ : मेमोयर्स ऑफ ए पार्लियामेंटेरियन’’ में किया है. उन्होंने लिखा, ‘मेरे द्वारा नियमित समयावधि पर आसन से लगायी गयी डांट भावपूर्ण हैं. इनसे मुझे ‘हेडमास्टर’ की उपाधि मिली, जिनसे मुझे तकलीफ नहीं हुई, क्योंकि हेडमास्टर का पद सम्मानीय है.’
उन्होंने अपनी पुस्तक में सदस्यों को डांट लगाने की कई घटनाओं का जिक्र किया. उन्होंने कहा : मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि हम ज्यादा से ज्यादा दिखा रहे हैं कि हम लोकतंत्र के लायक नहीं हैं. एक जगह उन्होंने कहा : मैं जानता हूं कि आसन का इस सदन में कोई सम्मान नहीं है. हम इसके प्राधिकार को बहुत कम किया है. लोग हमें देख रहे हैं.
हम अपने लिए और धन के लिए लड़ रहे हैं या मुझे लगता है कि लोग कहने लगेंगे कि ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’. जब सदस्य लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास आकर वापस जाने से इंकार कर देते तो चटर्जी उन्हें चेताकर कहते : क्या आपको खुद पर शर्म नहीं आती? आप क्या कर रहे हैं? क्या यह संसद सदस्यों के व्यवहार का तरीका है? आपको यहां रहने का कोई हक नहीं. उन्होंने यह भी जिक्र किया कि किस तरह विदेशी प्रतिनिधिमंडल भारत के सांसदों के व्यवहार से खुश नहीं था.
श्री चटर्जी ने पुस्तक में लिखा कि भारत के दौरे पर आये स्वीडन के स्पीकर ने आशा जतायी थी कि उनके सदस्य भारत के सदस्यों से नहीं सीखेंगे. कई बार चटर्जी सांसदों से निपटते वक्त भावुक हो जाते थे. वह उनसे कहा करते थे : अब अगर कोई सदस्य अपनी इच्छानुसार काम करना चाहता है तो न तो आसन की जरूरत है, न कामकाज की सूची की और ना ही नियमों की.
चटर्जी माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य थे. विदित हो कि वह 1968 में माकपा में शामिल हुए थे. वह वर्ष 2004 से 2009 तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे. श्री चटर्जी ने 23 जुलाई 2008 को अपनी जिंदगी का सबसे दुखद दिन बताया था. विभिन्न दलों के नेताओं ने चटर्जी के निधन पर शोक जताते हुए उन्हें भारतीय राजनीति को समृद्ध करने वाला असाधारण सांसद बताया.
1968 में शुरू हुआ राजनीतिक करियर, 10 बार बने सांसद : सोमनाथ चटर्जी ने सीपीएम के साथ राजनीतिक करियर की शुरुआत 1968 में की और 2008 तक इस पार्टी से जुड़े रहे. 1971 में वह पहली बार सांसद चुने गए और इसके बाद राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. चटर्जी 10 बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गये.
वह 2004 से 2009 तक लोकसभा के स्पीकर रहे. जब सीपीएम ने पार्टी से निकाला वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सीपीएम ने तत्कालीन मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे. पार्टी ने उन्हें स्पीकर पद छोड़ देने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माने. इसके बाद सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.
शिक्षा : सोमनाथ चटर्जी ने मित्रा इंस्टीट्यूशन स्कूल से पढ़ाई की. आगे की पढ़ाई उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से की. उसके बाद वे पढ़ाई के लिये कैम्ब्रिज गये जहां उन्होंने वर्ष 1952 में जीसस कॉलेज से स्नातक (बीए) की डिग्री प्राप्त की. वर्ष 1957 मेें उन्होंने स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की. राजनीति में आने से पहले सोमनाथ चटर्जी ने वकालत की कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिश शुरू की. वह बार-एट-लॉ भी रह चुके थे.
विवाह : सोमनाथ चटर्जी ने 7 फरवरी, 1950 में लालगोला के जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाली रेणु चटर्जी से विवाह किया था. इनका एक बेटा प्रताप और दो बेटियां अनुराधा और अनुशिला हैं. उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो चुका है.
राजनीतिक जीवन : वकालत के दौरान वे वामपंथी नेता ज्योति बसु से काफी प्रभावित थे. वह हिंदू महासभा के अध्यक्ष के बेटे थे लेकिन अपनी राजनीति के लिए उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को चुना. भाकपा से टूटने के बाद वे माकपा का हिस्सा बन गये. वर्ष 1968 से वर्ष 2008 तक वे माकपा के सदस्य रहे थे. वर्ष 1971 में पिता की मौत के कारण उन्हें अंतरिम चुनाव लड़ने के लिये नामित किया गया.
वे‍ वर्ष 1971 में पहली बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वर्ष 1971 में वे लोकसभा के सदस्य बने और माकपा द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुने गये. वर्ष 1984 में जादवपुर लोकसभा क्षेत्र से वे ममता बनर्जी से हार गये थे. उसके बाद वे नौ बार फिर लोकसभा चुनाव में विजयी रहे. उन्हें 1996 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार मिल चुका है. वर्ष 2004 में बोलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 14वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गये और दसवीं बार लोकसभा के सदस्य रहे.
वर्ष 1989 से 2004 तक लोकसभा में वह वामपंथी दलों के नेता रहे. सोमनाथ चटर्जी विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से अपने अच्छे संबंधों के लिए भी जाने जाते थे. शायद इसीलिए कांग्रेस ने ख़ुद उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था. वर्ष 2004 के चुनाव के बाद, उन्हें प्रो टेम्प स्पीकर नियुक्त किया गया और बाद में 4 जून 2004 को उन्हें सर्वसम्मति से 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया.
माकपा से छूटा दामन : वर्ष 2008 के मध्य में माकपा ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अगुवाई वाली सरकार से अपना समर्थन वापस से लिया. तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया. सोमनाथ चटर्जी अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग का हिस्सा नहीं बने. उन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर व पार्टी के निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए, सदन के अध्यक्ष के रूप में अपने पद पर रहने का फैसला किया. हालांकि यूपीए की सरकार नहीं गिरी लेकिन पार्टी नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए सोमनाथ चटर्जी को 23 जुलाई, 2008 को पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया.
पार्टी की ओर से विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया था कि माकपा के पोलित ब्यूरो ने सर्वसम्मति से सोमनाथ चटर्जी को तत्काल प्रभाव से पार्टी की सदस्यता से निष्कासित करने का फैसला किया है.
राजनीति से लिया संन्यास : इस घटना से सोमनाथ चटर्जी काफी प्रभावित हुए थे और उन्होंने कहा था कि निष्कासन उनके जीवन के सबसे बुरे दिनों में से एक था. उन्होंने सुझाव दिया कि भविष्य में सदन का अध्यक्ष बनने पर पार्टी से इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि वह उस कार्यालय में सेवा कर सकें साथ ही वह गैर-पक्षपातपूर्ण ढंग से खड़ा हो सकें.
वे ऐसे भारतीय राजनेता थे जिनका अधिकांश जीवन माकपा से जुड़ा रहा. वह वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक लोकसभा के अध्यक्ष थे. बोलपुर का उनका निर्वाचन क्षेत्र पहले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था, जिसका अर्थ है कि अब सोमनाथ चटर्जी अगले चुनाव में उस सीट से लड़ने में असमर्थ थे. उन्होंने माकपा से निष्कासन के बाद अगस्त 2008 में घोषणा की कि वह 2009 में अगले चुनाव के समय राजनीति से संन्यास लेे लेंगे और उसपर अम्ल भी किया.
वह लोकसभा अध्यक्ष के आसन पर बैठने वाले देश के पहले कम्युनिस्ट नेता थे.
सोमनाथ चटर्जी देश भर में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते थे. राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष समर्थक आंदोलन का भी हिस्सा बने.
वह संसद में विशेषाधिकार, रेलवे और संचार की समितियों के चेयरमैन पद पर आसीन थे और वित्त और गृह मंत्रालय की सलाहकार समितियों में भी उन्होंने कार्य किया था.
सोमनाथ चटर्जी ने कई देशों की यात्रा की थी. इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट और इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के अलावा देश की अनेक संस्थाओं के सदस्य भी रह चुके थे. चटर्जी को 1996 में ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था. अपने तर्क कौशल के लिए मशहूर चटर्जी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की व्यापक जानकारी थी.
वह कई संसदीय समितियों में सदस्य या अध्यक्ष पद पर सुशोभित रहे. विभिन्न पार्टियों के नेता उनका बहुत सम्मान करते थे. माकपा के दिग्गज नेता ज्योति बसु के साथ उनका गहरा संबंध था. बसु ने उन्हें पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईसी) का अध्यक्ष बनाया था. उनपर राज्य में निवेश लाने और नये उपक्रम की शुरुआत करने की जिम्मेदारी थी.

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