जामुड़िया.
जामुड़िया के इकड़ा औद्योगिक क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. कभी निर्मल जलधारा के लिए प्रसिद्ध सिंघारन नदी आज प्रदूषण व बदहाली का शिकार है. इस क्षेत्र के निवासी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता सभी इस बात पर एकमत हैं कि कारखाना प्रबंधक, सत्तारूढ़ दल के नेता और सरकारी अधिकारी मिल कर पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं.सिंघारन नदी : बदहाली का पर्याय
एक समय था जब जामुड़िया के इकड़ा, रामचंद्रपुर, सार्थकपुर, महिषाबुड़ी सहित आसपास के क्षेत्रों को निर्मल जलधारा देने वाली सिंघारण नदी अपनी खिलखिलाती अठखेलियों से पूरे क्षेत्र को अपनी छटा दिखाती थी. सैकड़ों गांवों की प्यास बुझाने वाली यह नदी आज इस कदर प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी इंसान तो दूर, जानवरों के पीने लायक भी नहीं रह गया है.कई लौह- इस्पात संयंत्र कारखानों पर सिंघारण नदी के दोहन और उसके गतिपथ को अवरुद्ध करने का आरोप है.आरोप है कि कुछ कारखानों ने तो नदी के ऊपर ही अपना ईएसपी (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर) लगा दिया है.इस गंभीर मुद्दे को लेकर कई उच्च-स्तरीय बैठकें भी हुईं और एक समिति का गठन भी किया गया, लेकिन भाजपा नेता संतोष सिंह के अनुसार, यह समिति भी कारखाना प्रबंधन के सामने नतमस्तक होकर नदी को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई.
पौधरोपण के नाम पर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण
भाजपा नेता संतोष सिंह ने आरोप लगाया कि पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कारखाना प्रबंधन सरकारी जमीन पर महज 10 पौधे लगाकर उस पर अतिक्रमण कर लेते हैं. इसमें सत्तारूढ़ पार्टी के नेता मोटी रकम वसूल कर पर्दा डालने का काम करते हैं. उन्होंने कहा कि पौधारोपण कार्यक्रम के नाम पर सरकारी जमीन को हड़प लिया गया है.
बढ़ता प्रदूषण और गंभीर बीमारियां
स्थानीय इकड़ा ग्राम निवासी बुद्धदेव रजक ने बताया कि वे उद्योग के विरोध में नहीं हैं, लेकिन कारखाना प्रबंधन शाम होते ही प्रदूषण नियंत्रण यंत्रों को बंद कर देता है.इसकी वजह से इकड़ा सहित दर्जनों गांवों के लोग प्रदूषण से त्रस्त हो जाते हैं. बुद्धदेव रजक ने बताया कि सिंघारण नदी का पानी सफेद की जगह लाल हो गया है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि वर्तमान समय में कारखानों से ऐसा प्रदूषण हो रहा है जिसके कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारी युवाओं में फैल रही है. उन्होंने बताया कि कैंसर से आम जनता ही नहीं, बल्कि कारखाना प्रबंधन के लोग और कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिक भी इसका शिकार हो रहे हैं। इस पर उच्च-स्तरीय जांच की जरूरत है.
नीलवन जंगल का अस्तित्व पर खतरा
स्थानीय माकपा नेता मनोज दत्त ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि जामुड़िया में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना का उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ-साथ क्षेत्र का विकास था, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सरकार आने के बाद सरकारी जमीन पर लूटपाट के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का सबसे बड़ा प्रतीक ””नीलवन”” जंगल का अस्तित्व भी खत्म हो गया है. मनोज दत्त ने बताया कि नीलवन जंगल में लाखों की संख्या में बड़े-बड़े पेड़ थे, जिन्हें नष्ट कर औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार के नाम पर सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने जमीन और जंगल पर अतिक्रमण करने का काम किया है.आंदोलनों के बावजूद कार्रवाई का अभाव
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य विश्वनाथ यादव ने कहा कि इकड़ा औद्योगिक क्षेत्र में नीलवन जंगल के लाखों पेड़ काट कर अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर सांकेतिक पेड़ लगाने का नाटक औद्योगिक क्षेत्र के कारखाना मालिकों ने किया.उन्होंने इसे सिर्फ फोटो सेशन बताया और कहा कि अगर समय रहते इस औद्योगिक क्षेत्र के इलाकों में जिस प्रकार से पेड़ की कटाई कर कारखाना उस जगह पर चारदीवारी का घेराबंदी कर रही है, अगर समय रहते इन्हें रोका नहीं गया तो आने वाले समय में यहां पर रहना लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न करेगा.प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई बार आंदोलन होने के बावजूद किसी भी कारखाने के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती है.यह स्थिति दर्शाती है कि जामुड़िया में पर्यावरण संरक्षण केवल कागजी कार्यवाही और दिखावे तक ही सीमित है, जबकि वास्तविक नियमों का उल्लंघन धड़ल्ले से जारी है, जिसका खामियाजा स्थानीय निवासियों को भुगतना पड़ रहा है.
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