दुर्गापुर.
दाल की बड़ी(बरी) भारतीय रसोई का एक अहम हिस्सा मानी जाती है. पहले इसे हर घर में महिलाएं हाथ से बनाया करती थीं, लेकिन समय बदलने के साथ मशीनों से बने बड़ियों ने जगह ले ली. इसी बीच दुर्गापुर की 80 वर्षीय बसंती देवी अब भी पारंपरिक तरीके से हाथ से बड़ी बनाकर बाजारों में पहुंचा रही हैं. वह प्रतिदिन लगभग 10 से 12 किलो दाल की बड़ी तैयार कराती हैं, जिसे उनके बेटे और पोते बेनाचिटी सहित शहर के अन्य बाजारों में थोक मूल्यों पर दुकानों तक पहुंचाते हैं. बसंती देवी दुर्गापुर नगर निगम के वार्ड नंबर 1 के रघुनाथपुर इलाके की निवासी हैं.पति के साथ शुरू किया था व्यवसाय
बसंती देवी व उनके पति माखन दास ने आर्थिक तंगी के बीच घर से ही बड़ी बनाने और बेचने का काम शुरू किया था. हाथ से बनी बड़ी के बढ़ते स्वाद और मांग ने उन्हें बाजार में पहचान दिलायी. उन्होंने घर पर अन्य महिलाओं को भी काम पर रखा और प्रतिदिन 20 से 25 किलो बड़ी तैयार कर थोक बाजार में बेचने लगीं. बाद में उनकी बहु लिपि दास भी इस कार्य से जुड़ गयीं.अभी भी हाथ से पारती हैं बड़ी
लगभग पांच वर्ष पूर्व वृद्धावस्था में माखन दास का निधन हो गया. जीवनभर उन्होंने बसंती देवी के साथ मिलकर बड़ी बनाने में योगदान दिया. आज, उम्र बढ़ने के बावजूद बसंती देवी बड़ी पारने का काम खुद हाथ से करती हैं. उन्होंने दाल पीसने के लिए मशीन तो ले ली है, लेकिन बड़ी का आकार देने का पारंपरिक कौशल अभी भी उनके हाथों में है. बाजार में मांग आज भी बढ़ी हुई है, लेकिन बसंती देवी मात्रा बढ़ाने से अधिक गुणवत्ता और स्वाद को प्राथमिकता देती हैं. उनके हाथों से बनी बड़ी गांव से शहर आने वाली यादों और स्वाद को जोड़ने का काम कर रही है, जो आधुनिक मशीनों की बड़ी में अक्सर नहीं मिलती. लोगों के अनुसार बसंती देवी की बनायी बड़ी सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि पिछले समय की स्मृतियों का स्वाद भी समेटे हुए है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

