कोलकाता: पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अशोक कुमार गांगुली ने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्युरिडिकल साइंसेज के मानद प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया. इसी संस्थान की एक छात्रा ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे. श्री गांगुली ने कहा कि उनके पद पर बने रहने को लेकर कुछ शिक्षकों को आपत्ति थी. इसलिए आज उन्होंने इस्तीफा भेज दिया है.
डब्ल्यूबीएचआरसी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बारे में उन्होंने कहा कि वह ‘‘चुप रहना’’ पसंद करेंगे. न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि उन्होंने इस बारे में (राष्ट्रपति की राय जानने के लिए कैबिनेट की मंजूरी) अखबारों में पढ़ा. वह इस बारे में क्या कह सकते हैं ? घटनाक्रम उनका हाथ में नहीं है. वह चुप रहना पसंद करेंगे. न्यायमूर्ति गांगुली को डब्ल्यूबीएचआरसी के अध्यक्ष पद से हटाने की प्रक्रिया कल एक कदम और आगे तब बढ़ी, जब केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रपति की राय जानने के प्रस्ताव को उच्चतम न्यायालय भेजने को मंजूरी दे दी. एनयूजेएस की छात्रा रही विधि इंटर्न के खिलाफ यौन र्दुव्यवहार के आरोपों की जांच के लिए प्रस्ताव भेजा गया है.
प्रस्ताव को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजा जायेगा, जो मामले को भारत के प्रधान न्यायाधीश को भेजकर प्रस्ताव में उठाये गये तीन बिंदुओं की जांच करने को कहेंगे. भारत के प्रधान न्यायाधीश द्वारा गठित तीन सदस्यीय उच्चतम न्यायालय की समिति ने न्यायमूर्ति गांगुली को महिला विधि इंटर्न से ‘‘अवांछित व्यवहार करने’’ और ‘‘यौन प्रकृति का व्यवहार’’ करने का दोषी पाया था.
न्यायमूर्ति गांगुली शुक्रवार को भी पहले की तरह डब्ल्यूबीएचआरसी कार्यालय में आए. वह थोड़े समय तक ही वहां ठहरे. उधर, न्यायमूर्ति गांगुली का समर्थन करते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने कहा कि उन्हें पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से नहीं हटने का अधिकार है. डब्ल्यूबीएचआरसी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से गांगुली के मना करने के बारे में पूछने पर कबीर ने कहा, ‘‘उन्हें ऐसा करने का अधिकार है. वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे.