कोलकाता : त्योहारों के मौसम में अलग अलग तरह के मेले लगना आम बात है लेकिन बाल विवाह के गैरकानूनी होने के बावजूद जनजातीय पश्चिम मिदनापुर में बाल विवाह मेले आयोजित किए जाते हैं जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ आती है.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘सुचेतना’ की रिपोर्ट के अनुसार जनजातीय बाल विवाह के ऐसे मेले उत्सवों के इस मौसम में हर वर्ष आयोजित किए जाते हैं. माओवादी हिंसा में कमी आने के बाद जनजातीय लोग निडर होकर अधिक संख्या में इस प्रकार के मेलों में भाग ले रहे हैं.
दत्त ने कहा, ‘‘ इस दौरान सिलदाह से बेलपहाड़ी तक 20 किलोमीटर के इलाके में एक लाख से अधिक जनजातीय लोग कई स्थानों पर मेले आयोजित करते हैं जहां लड़की के माता-पिता अपनी बेटी से अपनी पसंद का दूल्हा ढूंढने को कहते हैं.’’उन्होंने कहा कि लेकिन लड़कियों के पास अपना जीवनसाथी चुनने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं होते. यदि वे इनकार कर देती हैं तो इन किशोरियों का विवाह जबरन करा दिया जाता है.
जिले में संथाल, लोढा, खीरी और महतो जैसे कई जनजातीय समुदायों में लड़की की आयु 12 वर्ष हो जाने पर उसके लिए दूल्हे की तलाश करना परंपरा है. इसके अलावा गरीबी के कारण भी ग्रामीण अपनी लड़कियों का बाल विवाह कराते हैं.
दत्त ने कहा कि बाल विवाह मेलों के कारण पश्चिम मिदनापुर जिले में बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं. उन्होंने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत 18 वर्ष से कम आयु में विवाह करना न केवल कानूनी रुप से अवैध है बल्कि यह लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है.
दत्त ने बताया कि एनजीओ ने गोपीबल्लवपुर-1, बीनपुर-2, संकरैल और केसियारी खंडों में सर्वेक्षण किया था जिसमें पता चला कि शादी के बाद अधिकतर लड़कियां स्कूल की पढाई बीच में ही छोड़ देती हैं. कुछ गांवों में तो 60 से 70 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होता है.