कोलकाता: उसकी उम्र के अधिकतर लड़के एक बाइक से खुश हो जायेंगे. कार तो उनके लिए एक सपना है. पर, शुभंजन साहा के पास एक ड्रोन है. 21 वर्षीय शुभंजन ने उसे खुद बनाया है. थ्री इडियट्स में दिखाये गये उड़ने वाले स्पाई कैमरा से प्रेरित होकर उसने कैंपस में ही इसमें तब्दीलियां की थीं. शुभंजन का यह ड्रोन देश के बहुचर्चित ‘जुगाड़’ टेक्नोलॉजी का उदाहरण भी कहा जा सकता है. इसे स्क्रैप मेटल, प्लास्टिक के टुकड़े और सस्ते चीन निर्मित यंत्रों से तैयार किया गया है. इसमें लगातार 10 किलोमीटर तक उड़ने की ऊर्जा रहती है. उड़ते वक्त इसकी ऊंचाई पांच से 10 हजार फीट तक की रहती है.
यह हाइ रिजोल्यूशन कैमरा के जरिये धरती का स्पष्ट चित्र लेकर उसे ऑपरेटर तक पहुंचा सकता है. शुभंजन ने इसे बम फेंकने और रॉकेट लांचिंग क्षमता से भी संपन्न किया है. हालांकि उसका मानना है कि यह प्रारंभिक चरण का ड्रोन है और अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने और उसके प्रोटोटाइप को प्रभावी बनाने के लिए विशेषज्ञों की सलाह जरूरी है. मनींद्र चंद्र कॉलेज के तृतीय वर्ष का कंप्यूटर साइंस विद्यार्थी शुभंकर ने इस संबंध में डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) को सहायता व फंड के लिए लिखा है. उसका मानना है कि यदि उसकी चाहत के मुताबिक इसे विकसित कर लिया गया, तो इसका इस्तेमाल सेना भी निगरानी और सुरक्षा ऑपरेशन में कर सकती है. खासकर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर इसका उपयोग किया जा सकता है.
इस ड्रोन को बनाने में उसके 90 हजार रुपये खर्च हुए हैं. प्रांतकथा नामक एनजीओ व एसएन बोस सेंटर ऑफ बेसिक साइंसेस के अभिजीत मुखर्जी उसके सपनों को जिंदा रखे हुए हैं. प्रांतकथा के बाप्पादित्य मुखर्जी ने बताया कि शुभंजन की परियोजना के संबंध में विज्ञान व तकनीक विभाग को लिखा गया है. जवाब मिलने पर सरकार से सेना द्वारा बतौर स्पाईकैम इसके इस्तेमाल की संभावनाओं के संबंध में अपील की जायेगी. ड्रोन बनाने की इच्छा शुभंजन में तब जागी जब उसने अपने चाचा को की कारिगल में शहादत के बारे में सुना. वह बीएसएफ अधिकारी थे. उनपर ऊंचाई से घुसपैठियों ने गोली चलायी, लिहाजा गोलियों के श्रोत का पता नहीं चल सका.
यदि उनके पास स्पाई कैमरा होता, तो वह दुश्मन का पता लगा लेते और जवाब देते. चाचा की मौत ने उसे ऐसा यंत्र बनाने के लिए प्रेरित किया. हालांकि इसे बनाने की दबी इच्छा पांचवीं कक्षा से ही उसके मन में थी. बुन कर का बेटा होने के कारण उसके पास योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए फंड नहीं था. पहला हौंसला तब मिला, जब वह स्कूल में था और स्क्रैप मेटल, लकड़ी, प्लास्टिक तथा शिक्षकों की सहायता से हाथों से तैयार किये गये सर्किट के जरिये उसने एक हेलीकॉप्टर जोड़ लिया. उसमें कैमरा युक्त नहीं था और कुछ सेकेंडों तक ही उड़ पाता था. लेकिन जब वह उड़ा तो उसके लिए बड़ा कदम था. वह समझ चुका था कि वह सही रास्ते में है. कालना से कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह कोलकाता आया. इंटरनेट में जरूरी सामग्रियों के बारे में पता चला. एक दोस्त की सहायता से विदेश में मिलने वाले कुछ यंत्र भी मिले. उसने अब तक तीन फ्लाईंग स्पाई कैम डिजाइन किये हैं.
एक ड्रोन की तरह है और दो क्वाड्रेटर्स की तरह दिखते हैं. सभी में एक प्रोपेलर, हल्की बैटरियां, एक ऑडियो-वीडियो ट्रांसमीटर-कम-कैमरा, एक मोटर व एक एंटेना है. सबसे छोटे का आकार एक गुणा एक मीटर है. सबसे बड़ा दो मीटर लंबा और पंख की चौड़ाई तीन मीटर है. यह 10 किलोमीटर तक पांच किलोमीटर के अर्धव्यास में रिमोट कंट्रोल के जरिये उड़ सकता है. अब वह कैमरे के लिए इन्क्रिप्शन तकनीक विकसित कर रहा है जिसे हैक नहीं किया जा सकता. वह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के पास भी सहायता के लिए पहुंचा था लेकिन उसे कहा गया कि उसे बीटेक की डिग्री हासिल करनी होगी. शुभंजन को आशा है कि डीआरडीओ उसके ड्रोन को ऊंचाई तक पहुंचाने में सहायता करेगा.