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यूपी : इस बार भी चुनाव में फ्लोटिंग वोटर की होगी निर्णायक भूमिका, 4% वोट खिसका तो बंटाधार

लखनऊ : सूबे के पिछले चुनावों को देखें तो यह साफ है कि 29 से 31 फीसदी वोट पाने वाले दल पूर्ण बहुमत की सरकार बनाते रहे हैं. लेकिन दो-चार फीसदी वोटों के घटने-बढ़ने (फ्लोटिंग वोट) से सत्ता का समीकरण बिगड़ जाता है. सीटों की संख्या में बड़ा अंतर आ जाता है. बहुकोणीय मुकाबलों में […]

लखनऊ : सूबे के पिछले चुनावों को देखें तो यह साफ है कि 29 से 31 फीसदी वोट पाने वाले दल पूर्ण बहुमत की सरकार बनाते रहे हैं. लेकिन दो-चार फीसदी वोटों के घटने-बढ़ने (फ्लोटिंग वोट) से सत्ता का समीकरण बिगड़ जाता है. सीटों की संख्या में बड़ा अंतर आ जाता है. बहुकोणीय मुकाबलों में इन मतदाताओं की भूमिका बहुत बढ़ जाती है. विश्लेषकों की मानें तो इस विधानसभा चुनाव में भी फ्लोटिंग वोटर अहम भूमिका निभायेंगे.

2007 के चुनाव में मुलायम सरकार के खिलाफ बसपा को पूर्ण बहुमत मिला तो 2012 के चुनाव में सपा ने बसपा को हराकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी. दोनों ही पार्टियों को 29 से 31 फीसदी वोट मिले. दूसरी ओर सत्ता में रही पार्टियां तीन से छह फीसदी मतों के घटने से बहुमत से बहुत कम सीटों पर सिमट गयीं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज दिल्ली के प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि यूपी में देश के सबसे ज्यादा फ्लोटिंग वोटर हैं. इनकी तादाद करीब 20 फीसदी है. ये वे मतदाता हैं जो दूसरों से प्रभावित होते हैं और इनका अपना कोई एजेंडा नहीं होता है. राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र द्विवेदी बताते हैं कि चुनाव में छह से आठ फीसदी फ्लोटिंग वोटर सरकार बनाने और बिगाड़ने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं. ये बेहतर प्रत्याशी, बेहतर प्रचार, लुभावने वादे, आकर्षक प्रचारक से प्रभावित होते हैं. इसके अलावा जिसे जीतते देखते हैं, उसके साथ जाना पसंद करते हैं.

द्विवेदी कहते हैं कि 2007 और 2012 के विस चुनाव के अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में फ्लोटिंग वोटर्स ने अहम भूमिका निभायी. 1991 के विधानसभा चुनाव में हिंदू-मुसलिम ध्रुवीकरण और 1993 में जातीय ध्रुवीकरण के बावजूद इनकी अहम भूमिका रही.

जिससे लड़ाई, नहीं लेते उसका नाम

फ्लोटिंग वोटर के संबंध में समाजशास्त्री कहते हैं कि राजनीतिक दल जिससे अपनी लड़ाई बतायें, मानना चाहिए कि वास्तव में उस दल की उससे लड़ाई नहीं है. वास्तव में वह अपनी मजबूत स्थिति दिखाने के लिए कमजोर को प्रतिद्वंद्वी बताते हैं ताकि वह फ्लोटिंग वोटर जो उसका विरोधी है, कमजोर प्रतिद्वंद्वी के साथ चला जाये, उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वी के साथ न जाये. कई बार वह ऐसा करने में सफल होते हैं.

जानिये, क्या है फ्लोटिंग वोटर

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर अभय कुमार दुबे कहते हैं कि फ्लोटिंग वोटर किसी पार्टी या विचारधारा से बंधे नहीं होते. ये परिस्थिति को देखकर वोट देते हैं जो उसे पसंद आता हो. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि दलित, यादव व ब्राह्मण फ्लोटिंग वोटर नहीं हैं. दलित बसपा के साथ, यादव मुलायम के साथ और ब्राह्मण भाजपा के साथ माना जाता है. लेकिन इन वोटरों में भी किसी पार्टी से न बंधे रहने वाले ही फ्लोटिंग वोटर होते हैं.

ओपिनियन पोल, लुभावने वादे डालते हैं प्रभाव

प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि राजनीतिक दल इस वर्ग को ही प्रभावित करने के लिए ओपिनियन पोल और लुभावने वादों का सहारा लेते हैं. यूपी में इस समय ऐसे पोल की बाढ़ आयी हुई है. वे कहते हैं कि एक दल ने पिछली बार लैपटॉप देने का वादा किया, इस बार उसने स्मार्टफोन देने का वादा कर दिया. दूसरा लैपटॉप के साथ एक जीबी डाटा देने की बात कर रहा है. ऐसे वादे लुभाते हैं और प्रभाव डालते हैं.

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