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मायावती बनाम राखी सावंत….हंगामा तो होगा!

-फैजाबाद से कृष्ण प्रताप सिंह-लखनऊ : ‘क्या होगा जब खुद को तुर्रम खां समझने वाली बहन जी के सामने तेजतर्रार और मुंहजोर राखी सावंत ताल ठोंकेंगी?’ एक अलमस्त नवयुवक के इन शब्दों में सवाल कम और भावनाएं ज्यादा नजर आती हैं तो सामने खड़ा प्रौढ़ मतदाता भी रौ में बहे बिना रह नहीं पाता. कहता […]

-फैजाबाद से कृष्ण प्रताप सिंह-

लखनऊ : ‘क्या होगा जब खुद को तुर्रम खां समझने वाली बहन जी के सामने तेजतर्रार और मुंहजोर राखी सावंत ताल ठोंकेंगी?’ एक अलमस्त नवयुवक के इन शब्दों में सवाल कम और भावनाएं ज्यादा नजर आती हैं तो सामने खड़ा प्रौढ़ मतदाता भी रौ में बहे बिना रह नहीं पाता. कहता है–होगा क्या? वोटों के लिहाज से तो कुछ नहीं होगा. अलबत्ता, रोज एक से बढ़ कर एक तहलका और दिन–रात हंगामा!

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रमुख और केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले के इलाहाबाद आकर अपनी पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन में मायावती के खिलाफ पार्टी की महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष राखी सावंत को चुनाव लड़ाने की फुलझड़ी छोड़ जाने के बाद से मायावती की कर्मभूमि अम्बेडकरनगर में ऐसे सवाल–जवाब आम हो गये हैं. ज्ञातव्य है कि मायावती अम्बेडकरनगर जिले की विभिन्न सीटों से सांसद व विधायक रह चुकी हैं और वहां के अनेक मतदाताओं को उम्मीद है कि इस बार वे फिर अकबरपुर या जहांगीरगंज से चुनाव लड़ेंगी. वे कहते हैं कि राखी उनसे लड़ने आयीं तो वाकई मुकाबले में मजा तो आयेगा.

यह और बात है कि मायावती आमतौर पर आम चुनाव के वक्त खुद नहीं लड़तीं और सत्ता में आ गयीं तो अपने किसी विधायक का इस्तीफा लेकर उपचुनाव के रास्ते विधायक बन जाती हैं. फिर भी उनके समर्थकों की मानें तो राखी उनसे टकरायीं तो उनका तो कुछ बिगड़ेगा नहीं, जो कुछ भी होगा राखी का ही होगा. वे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के दलित मतदाता अठावले की चाल को भली-भांति समझ रहे हैं. राखी सावंत की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को उस मुंबई ने भाव नहीं दिया, जहां ‘आइटम गर्ल’ या ‘सुर्खियों की रानी’ के रूप में उनके ग्लैमर या लटकों–झटकों की माया चल जाने की उम्मीद थी, तो इस अविकसित और पिछड़े इलाके में उनकी दाल क्या गलेगी?

गौरतलब है कि राखी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 29 मार्च को अचानक अपनी खुद की ‘राष्ट्रीय आम पार्टी’ बना ली थी और उसकी ओर से मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरी थीं. उनका चुनाव निशान था हरी मिर्च. लेकिन, शिवसेना के गजानन चंद्रकांत कीर्तिकर, कांग्रेस के गुरूदास कामत और आम आदमी पार्टी के मयंक गांधी के साथ मुकाबले में बहुत जी-जान लगाने के बाद भी उन्हें केवल 1995 वोट मिले. बाद में उन्होंने चुनाव लड़ने को अपनी गलती मानते हुए भाजपा में जाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने की इच्छा जतायी, लेकिन बात नहीं बनी तो वे अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया में शामिल हो गयीं, जो अब मोदी सरकार में साझीदार है और उत्तर प्रदेश में भाजपा से गंठबंधन के फेर में है. इलाहाबाद आये अठावले ने मायावती को हर हाल में सबक सिखाने का एलान कर रखा है. वे कह रहे हैं कि भाजपा से गंठबंधन नहीं हुआ तो उनकी पार्टी दो से ढाई सौ सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बसपा के दलित वोट बैंक को उससे छीन कर रहेगी.

लेकिन, मामले में कई पेच हैं. क्या भाजपा माया के खिलाफ उन राखी का समर्थन करने को राजी होगी, जो पिछले दस अगस्त को अपनी ‘सेक्सी मोदी ड्रेस’ को लेकर उसके लिए ‘लायबिलिटी’ बन गयी थीं और दावा कर रही थीं कि इसके लिए उन्होंने भाजपा से ‘ऑफिशियली’ इजाजत ले रखी है. अगर हां, तो मायावती के खिलाफ अभद्र टिप्पणी के कारण भाजपा से निकाल दिये गये उसके प्रदेश अध्यक्ष दयाशंकर सिंह की महत्वाकांक्षी पत्नी स्वाती सिंह का क्या होगा, जिन्होंने मायावती के पलटवार को अपना व अपनी बेटी का अपमान बता कर मुद्दे को पलट दिया और बसपा से डट कर मुकाबला किया था? उन दिनों के उनके तेवरों के कारण भाजपाइयों को लगता है कि एक वही मायावती का सही जवाब हो सकती हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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