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कैराना लोकसभा उपचुनाव : विपक्षी एकता की एक और परीक्षा

लखनऊ : मौजूदा सियासी हालात में बेहद अहम माने जा रहे कैराना लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष की एकता एक बार फिर कसौटी पर होगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दबदबे वाले माने जा रहे राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने इस सीट से विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर अपने प्रत्याशी को खड़ा करने की परोक्ष रूप से […]

लखनऊ : मौजूदा सियासी हालात में बेहद अहम माने जा रहे कैराना लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष की एकता एक बार फिर कसौटी पर होगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दबदबे वाले माने जा रहे राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने इस सीट से विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर अपने प्रत्याशी को खड़ा करने की परोक्ष रूप से इच्छा जतायी है.

पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह की अगुवाई वाले रालोद का मानना है कि कैराना का जातीय और अन्य सियासी समीकरण उसके पक्ष में है. रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने बताया, ‘‘कैराना लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी के बारे में निर्णय पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही करेगा…… लेकिन हम चाहते हैं कि भाजपा को हराने के लिये विपक्ष यहां भी उसी तरह एकजुट हो, जैसे कि वह गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनावों के समय हुआ था.”

रालोद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उनकी पार्टी पिछले कई वर्षों से कैराना में समाज के सभी वर्गों के बीच रहकर काम कर रही है और उसने सभी जाति और धर्म के लोगों का विश्वास जीता है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयन्त चौधरी इस अभियान की अगुवाई कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस कैराना लोकसभा उपचुनाव में जयन्त की उम्मीदवारी पर पहले ही सहमति जता चुकी है. नेता ने बताया कि रालोद ने कैराना और आसपास के इलाकों में दबदबा रखने वाले नेताओं आमिर आलम और नवाजिश आलम को पार्टी में शामिल करके अपना जनाधार बढ़ाया है.

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ और राजनीतिक रूप से खासा दबदबा रखने वाले मुनव्वर हसन के परिवार में वोटों के बंटवारे के बीच भाजपा के हुकुम सिंह ने कैराना लोकसभा सीट जीती थी. उनके निधन के कारण यह सीट रिक्त हुई है. कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं. इनमें तीन लाख मुसलमान, लगभग चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं. वर्ष 1999 और 2004 में इस सीट पर रालोद अपना परचम लहरा चुका है. रालोद ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष का साथ दिया था.

अगर सपा, बसपा और रालोद का वोट एकजुट हो जाता है तो भाजपा के लिये मुश्किल और बढ़ सकती हैं. भाजपा ने करीब दो साल पहले कैराना से बहुसंख्यक वर्ग के परिवारों के ‘पलायन’ का मुद्दा उठाया था. पार्टी ने पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के लिये अपने घोषणापत्र में इसे एक अहम मुद्दे के तौर पर शामिल किया था, लेकिन वह भाजपा के लिये फलीभूत नहीं हुआ था. कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह की बेटी भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा था. ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं कि उपचुनाव में भाजपा हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को मैदान में उतार सकती है, क्योंकि इससे उन्हें सहानुभूति वोट भी मिल सकते हैं.

कैराना लोकसभा सीट पिछले कई साल से अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है. वर्ष 1996 में सपा, 1998 में भाजपा, 1999 और 2004 में रालोद, 2009 में बसपा और 2014 में भाजपा का इस पर कब्जा रहा। अब यह सीट किसकी झोली में जाएगी इस पर सभी की नजरें होंगी.

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