15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

हिंदू, जैन और बौद्ध, तीनों का तीर्थस्थल है अयोध्या

अयोध्या स्थापना मनु के पुत्र सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु ने ईपू 2200 के आसपास की थी. दशरथ इस वंश के 63वें शासक थे. 24 जैन तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के ही थे और प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) तथा चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान अयोध्या ही है. भगवान बुद्ध ने भी 16 वर्षों तक […]

अयोध्या स्थापना मनु के पुत्र सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु ने ईपू 2200 के आसपास की थी. दशरथ इस वंश के 63वें शासक थे. 24 जैन तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के ही थे और प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) तथा चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान अयोध्या ही है.
भगवान बुद्ध ने भी 16 वर्षों तक अयोध्या में ही निवास किया था. इस प्रकार हिंदू, जैन और बौद्धों, इन तीनों का यह पवित्र धार्मिक स्थान रहा था. यह रामानंदी संप्रदाय का भी मुख्य केंद्र रहा है. वाल्मीकि कृत रामायण के बालकांड के अनुसार मनु द्वारा स्थापित अयोध्या नगरी 12 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी. सातवीं शताब्दी में भारत आये चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे ‘पिकोसिया’ कहा. उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी ‘ली’ बराबर 1/6 मील) यानी 10 मील थी. आईन-ए-अकबरी में इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस उल्लिखित है.
बदलता रहा है अयोध्या नगरी पर शासन
मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना के पूर्व तक यहां इक्ष्वाकु वंश का शासन रहा. बाद में यह नगरी गुप्त और कन्नौज के शासकों के अधीन रही.
अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की, जो 1033 ई में बहराइच में मारा गया था.तैमूर के बाद जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ, तब अयोध्या उनके अधीन हो गया. 1440 में शक शासक महमूद शाह के शासन काल में अयोध्या उसकी विशेष नगरी थी. 1526 ई में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहां आक्रमण किया और मस्जिद का निर्माण कराया. यही राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद का विवाद की बुनियाद है.
अकबर का अवध सूबा
1580 ई में अकबर ने ‘अवध’ प्रांत बनाया और अयोध्या को उसकी राजधानी बनायी. दरअसल, तब अकबर ने अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में बांटा था, जिसमें अवध एक था. गंगा के उत्तरी भाग को पूर्वी क्षेत्रों और दिल्ली-आगरा को सुदूर बंगाल से जोड़ने वाला मार्ग यहीं से गुजरता था. इसलिए अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक पुनर्गठन के फलस्वरूप अवध का महत्व बहुत बढ़ गया था.
वाजिद अली शाह था अवध का अंतिम नवाब-वजीर
1707 ई में औरंगजेब की मौत हो गयी और मुगल साम्राज्य विघटित होने लगा.तब अनेक क्षेत्रीय स्वतंत्र राज्य उभरे. उनमें अवध एक था. 1731 ई में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने इसे अपने शिया दीवान-वजीर सआदत अली खां (शासनकाल 1722-1739) को सौंपा था. उसके बाद उसका दामाद मंसूर अली ‘सफदरजंग’ (शासनकाल 1739-1754) की उपाधि के साथ अवध का शासक बना. इसी सफदरजंग के समय में अयोध्या के निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. इसके बाद 1754 से 1775 ई तक उसका बेटा शुजा-उद्दौलाह अवध का नवाब-वजीर बना, जिसने अयोध्या से तीन मील पश्चिम में फैजाबाद नगर बसाया. वाजिद अली शाह अवध का अंतिम नवाब-वजीर था.
हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ …
वाजिद अली शाह का मजहबी विवाद के मामले में दिया गया फैसला इतिहास का वह बेहतरीन पन्ना है, जिसे अंग्रेज गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने भी खूब सराहा था. दरअसल, वाजिद अली शाह के शासनकाल में ही पहला सांप्रदायिक विवाद हनुमानगढ़ी में उठा था. तब नवाब ने हिंदुओं के हक में फैसला दिया था और लिखा था- हम इश्क के बंदे हैं, मजहब से नहीं वाकिफ/ गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या?
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel