– शीन अनवर –
ईद–उल–फितर पर विशेष
चक्रधरपुर : रमजान रहमत, मगफिरत और जहन्नम से आजादी का महीना है. रमजान को मुकम्मल गुजारने के बाद ईद–उल–फितर मनाने का हुक्म है. ईद के दिन खुशी का इजहार करना सुन्नत है. हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रवायत है कि जब ईद की मुबारक रात तशरीफ लाती है, तो उसे लैलतुल की रात के नाम से पुकारा जाता है.
ईद की सुबह में अल्लाह अपने फरिश्तों को तमाम शहरों में भेजता है. फरिश्ते जमीन पर आकर सब गलियों और राहों में खड़े हो जाते हैं. फिर आवाज लगाते हैं ऐ उम्मते मोहम्मदिया उस रब्बे करीम की बारगाह के तरफ चलो जो बहुत ही ज्यादा अता करने वाला और बड़े से बड़े गुनाह को माफ करने वाला है.
फिर अल्लाह अपने बंदों से मुखातिब होता है और कहता है ए मेरे बंदों मांगो, क्या मांगते हो, मेरी इज्जत व जलाल की कसम आज के रोज इस नमाजे ईद की इजतेमा में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सवाल करोगे वह पूरा करुंगा, और जो कुछ दुनिया के बारे में मांगोगे उसमें तुम्हारी भलाई की तरफ नजर फरमाऊंगा.
मेरी इज्जत की कसम जब तक तुम मेरा लिहाज रखोगे, मैं भी तुम्हारी खताओं पर पर्दापोशी फरमाता रहुंगा. मैं तुम्हें मुजरिमों के साथ रुसवा नहीं करूंगा. बस अपने घरों की तरफ मगफिरत याफ्ता लौट जाओ, तुमने मुङो राजी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया.
रसूल अल्लाह का फरमान है ईद और बकरीद की रात जिसमें सवाब हासिल करने की नीयत से क्याम किया, उस दिन उसका दिल नहीं मरेगा, जिस दिन लोगों के दिल मर जाएंगे. ईद के दिन अल्लाह उन तमाम लोगों की मगफिरत फरमा देता है, जो रमजान में इबादत करता है. ईद उसकी नहीं जो नये कपड़े पहन लिया बल्कि ईद उसकी है जो अजाबे इलाही से डर गया.