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आस्था, इतिहास और पर्यटन का संगम है केतुंगाधाम

बानो प्रखंड मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर मालगो व देव नदी के संगम स्थल पर स्थित है यह जगह

बानो. बानो प्रखंड का केतुंगाधाम आस्था व आध्यात्म का प्रमुख केंद्र है. यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. विशेष रूप से दिसंबर व जनवरी माह में सैलानी सैर-सपाटे और पिकनिक मनाने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. श्रद्धालु यहां पिकनिक के साथ-साथ पूजा-अर्चना भी करते हैं. बानो प्रखंड मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर मालगो व देव नदी के संगम स्थल पर स्थित केतुंगाधाम में झारखंड के अलावा अन्य राज्यों से भी लोग नववर्ष का जश्न मनाने आते हैं. तत्कालीन उपायुक्त सुशांत गौरव के प्रयास से इस स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में पहल की गयी है. मंदिर से नदी तट तक शेड का निर्माण कराया गया है, साथ ही शौचालय और प्रवेश द्वार बनाये गये हैं. पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को पंजीकृत किया गया है. इतिहास के अनुसार, मंदिर की स्थापना श्रीगंकेतु राजा के कार्यकाल में हुई थी, इस कारण इसका नाम केतुंगाधाम पड़ा. बाद में स्थानीय ग्रामीणों ने बरसलोया, केतुंगा, बानो, जलडेगा और लचरागढ़ के लोगों के सहयोग से इसे भव्य रूप दिया. मान्यता है कि राजा अशोक कलिंग युद्ध से लौटते समय यहां कुछ समय के लिए ठहरे थे और इसी दौरान उन्होंने एक बौद्ध मंदिर की स्थापना करायी थी. उसके जीर्ण-शीर्ण अवशेष और मूर्तियां आज भी रानीटांड स्थित खेतों में मौजूद हैं. खुले में रखे होने के कारण ये ऐतिहासिक मूर्तियां धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो रही हैं. यदि प्रशासन पहल करे, तो इस धरोहर को सुरक्षित रखा जा सकता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास के दौरान इसी मार्ग से रामरेखा गये थे. देव नदी की चट्टानों पर राम, लक्ष्मण और सीता के पदचिह्न आज भी स्पष्ट दिखायी देते हैं, जिनके दर्शन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं. केतुंगाधाम शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए कोलेबिरा प्रखंड के लचरागढ़ से लगभग पांच किमी तथा बानो प्रखंड से सोय-कोनसोदे मार्ग से सड़क सुविधा उपलब्ध है. प्रखंड मुख्यालय से मंदिर की दूरी लगभग 10 किमी है. भक्त लसिया मार्ग और बरसलोया मार्ग से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं. दूर से आनेवाले श्रद्धालुओं और सैलानियों के ठहरने के लिए यहां भवन की व्यवस्था की गयी है.

क्या करें और क्या न करें

श्रद्धालु संगम स्थल पर स्नान कर पूजा-पाठ कर सकते हैं तथा आसपास की नदी के बीच चट्टानों पर स्थित राम, सीता और लक्ष्मण के पदचिह्नों के दर्शन कर सकते हैं. वहीं शाम होते ही वापस लौटना उचित है, क्योंकि क्षेत्र जंगली होने के कारण जानवरों का भय बना रहता है.

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Prabhat Khabar News Desk
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