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Chaibasa News : आदिवासी संस्कृति है झारखंड राज्य की पहचान : मीनू मीनाक्षी

सूर्या नर्सिंग कॉलेज, चक्रधरपुर में शनिवार को आदिवासी दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया.

चक्रधरपुर.

सूर्या नर्सिंग कॉलेज, चक्रधरपुर में शनिवार को आदिवासी दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया. यह अवसर न केवल झारखंड की समृद्ध आदिवासी परंपराओं और जीवन शैली को करीब से समझने का था, बल्कि इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प भी लिया गया. कॉलेज के छात्र-छात्राएं रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे थे. झारखंडी लोकगीतों तथा लोकनृत्यों की प्रस्तुतियों से वातावरण गूंज उठा. ढोल, मांदर और नगाड़ों की थाप पर थिरकते कलाकारों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. नाट्य कार्यक्रम में आदिवासी जीवन की चुनौतियां, रीति-रिवाजों और त्योहारों को सजीव रूप से पेश किया गया. इस प्रस्तुति के जरिए विद्यार्थियों ने यह संदेश दिया कि आधुनिक जीवन की आपाधापी में भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों को नहीं भूलना चाहिए. उन्होंने बताया कि पारंपरिक कला, भाषा और पहनावे का संरक्षण सिर्फ गर्व की बात नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी भी है. कॉलेज प्रबंधन और शिक्षकों ने विद्यार्थियों की प्रतिभा और समर्पण की सराहना की.

कॉलेज की प्राचार्या मीनू मिनाक्षी तिर्की ने कहा कि आदिवासी संस्कृति झारखंड की आत्मा है. इसका संरक्षण समाज का कर्तव्य है. प्रबंधक नरसिंह महतो ने भी इस अवसर पर विद्यार्थियों को अपनी परंपराओं के अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए प्रेरित किया. सांस्कृतिक रंग और उत्साह से भरपूर यह आयोजन इस संदेश के साथ संपन्न हुआ कि झारखंड की असली पहचान उसकी लोकसंस्कृति और परंपराओं में है. इस अवसर पर सुशांति मिंज, प्रियजा महतो, किरण मुंडा, लॉरेन माइकल, सलीना मुखी, शीतल बखला, इग्निश टोप्पो, बबिता महतो, रीना महतो समेत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे.

आदिवासी सभ्यता व संस्कृति को बचाने की जरूरत : बारला

आनंदपुर.

प्रखंड के भालुडुंगरी में आदिवासी एकता मंच की ओर से आदिवासी दिवस मनाया गया. इस अवसर पर दिवंगत नेता शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि दी गई. मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, बिरसा मुंडा की तसवीर पर माल्यार्पण किया गया. वक्ताओं ने आदिवासियों को एकजुट होने का आह्वान किया. आदिवासी समन्वय समिति के संरक्षक सुशील बारला ने कहा कि आदिवासी समाज के पास वर्तमान परिस्थिति में जल-जंगल-जमीन, भाषा, सभ्यता, संस्कृति तथा अपनी पहचान बचाये रखने की चुनौती है. विकास के नाम पर आदिवासियों की प्रथा और पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. मौके पर सुभाष नाग, सलन डाहंगा, विजय भेंगरा, दिलवर खाखा, सबन हेम्ब्रोम, सुशील डांग, जीवन कंडायबुरु, सुशीला टोप्पो, नूतन प्यारी तोपनो समेत अन्य मौजूद थे.

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