सरायकेला. पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने झारखंड सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि विस्थापन व पुनर्वास आयोग का गठन कर अपनी पीठ ठोकने का प्रयास कर रही है. झारखंड सरकार से कोई पूछे कि बिना किसी अधिकार, शक्ति व संसाधन का आयोग विस्थापितों का भला किस प्रकार करेगा. आयोग के पास विस्थापितों को राहत देने के लिए एक डिसमिल जमीन व एक रुपये देने का अधिकार नहीं है. ऐसे में आयोग के गठन से विस्थापितों के जीवन में क्या बदलाव आयेगा? एक्स पर पूर्व सीएम ने लिखा कि जब राज्य सरकार के पास विभिन्न परियोजनाओं के विस्थापितों की सूची पहले से है. उनकी दुर्दशा जगजाहिर है, तो फिर यह आयोग ऐसा क्या नया आंकड़ा खोज निकालेगा. एक परामर्शदातृ समिति की तरह आयोग के सुझावों को मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है. इसके होने अथवा ना होने से क्या बदल जायेगा. उन्होंने सरकार के नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सीधी बात यह है कि झारखंड के विस्थापितों की आंखों में धूल झोंकने के लिए राज्य सरकार ने एक और आयोग बना दिया है. विभिन्न परियोजनाओं में अपनी जमीन गंवा चुके उन लोगों को दौड़ने के लिए एक और कार्यालय मिल जायेगा, जहां उनकी स्थिति का आकलन, सामाजिक- आर्थिक सर्वेक्षण, सूचनाओं का संग्रहण व विश्लेषण होगा, लेकिन उनके सुझाव को मानना अथवा ना मानना, सरकार की मर्जी पर निर्भर करेगा. यह विडंबना है कि जिन विस्थापितों के लिए यह आयोग बनने जा रहा है, उनके हित में किसी भी प्रकार का निर्णय लेने का अधिकार आयोग के पास नहीं होगा. कुल मिला कर, राज्य सरकार ने विस्थापन का दंश झेल रहे इस राज्य के विस्थापित परिवारों की भावनाओं से खिलवाड़ व उस पर राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की है. विस्थापन के मुद्दे पर अगर राज्य सरकार वाकई गंभीर है, तो आपके विभागों में विस्थापित परिवारों की सूची पड़ी हुई है. कई जनप्रतिनिधि भी आपको उनकी समस्याएं बताते रहते हैं. विस्थापित स्वयं भी कार्यालयों में दौड़ते रहते हैं. आज से उन परिवारों की मदद शुरू कीजिए. विस्थापन जैसे गंभीर मुद्दे पर, आयोग के बहाने, तीन साल तक पूरी प्रक्रिया को टालना बिल्कुल गलत है.
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