खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : सरायकेला खरसावां जिले के चिलकु गांव के रहने वाले 83 वर्षीय कुड़माली भाषा के साहित्यकार धर्मेंद्र महतो ने कुड़माली लिपि तैयार की हैं. धर्मेंद्र महतो ने इस लिपि को कुड़माली कोड़ माला का नाम दिया है. हालांकि अब तक इसे सरकारी स्तर पर मान्यता नहीं मिली है. इस संबंध में धर्मेंद्र महतो ने बताया कि पूरे भारत में बोले और लिखे जाने वाली अधिकांश भाषाओं की अपनी लिपि है. लेकिन अब तक कुड़माली भाषा के लेख देवनागरी (हिंदी) लिपि में ही लिखी जाती है.
वर्षों के शोध के बाद तैयार हुई कुड़माली कोड़ माला
सरायकेला के सहित्यकार धर्मेंद्र महतो ने बताया कि कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ‘मातृभाषा की महत्ता’ विषय ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया. जिसके बाद उन्होंने यह ठान लिया था कि वे खुद कुड़माली भाषा की अपनी लिपि तैयार करेंगे. इसके लिए उन्होंने पहले ओड़िया, तमिल, कन्नड़, बांग्ला समेत विभिन्न भाषाओं के लिपि पर शोध शुरू किया. गहनता से वर्षों तक शोध करने के बाद वर्ष 2012 में उन्होंने कुड़माली भाषा की लिपि तैयार की.
कुड़माली कोड़ माला को मान्यता दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं धर्मेंद्र महतो
धर्मेंद्र महतो आगे कहते हैं कि कड़ी मेहनत के बाद अब उनकी यह इच्छा है कि उनके द्वारा तैयार इस कुड़माली कोड़ माला को सरकारी स्तर पर मान्यता मिले और इसकी भी अपनी लिपि हो. इसके लिए वे अपने स्तर से लगातार प्रयास कर रहे हैं. धर्मेंद्र महतो अब तक कुड़माली कोड़ माला की सैकड़ों प्रतियां लोगों के बीच बांट चुके हैं.
लोगों को निशुल्क कुड़माली भाषा की शिक्षा दे रहे धर्मेंद्र महतो
कुड़माली के साहित्यकार धर्मेंद्र महतो खरसावां के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र में लोगों को निशुल्क कुड़माली में मातृभाषा की शिक्षा देते हैं. उन्होंने कुड़माली भाषा में ‘दिइया आर बाति’ नाम से दो भागों में गद्य और पद्य संग्रह किया है. हालांकि इसकी लिपि देवनागरी है. वे आजीवन कुड़माली भाषा-साहित्य के क्षेत्र में कार्य करना चाहते हैं.