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तसर उद्योग के लिए विशेष पैकेज की मांग, विधायक दशरथ गागराई ने सदन में उठाया मुद्दा

खरसावां विधायक दशरथ गागराई ने तसर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार से विशेष पैकेज देने की मांग की है. उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में पूरे राज्य में तसर कोसा के उत्पादन में भारी कमी दर्ज की गई है.

खरसावां, (शचिंद्र कुमार दाश) : खरसावां विधायक दशरथ गागराई ने तसर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार से विशेष पैकेज देने की मांग की है. विधानसभा सत्र के चौथे दिन शून्य काल के दौरान विधायक दशरथ गागराई ने इस मामले को सदन में उठाया. उन्होंने कहा, झारखंड राज्य का 35 फीसदी से अधिक तसर कोसा का उत्पादन कोल्हान प्रमंडल में होता है. पिछले तीन वर्षों में पूरे राज्य में तसर कोसा के उत्पादन में भारी कमी दर्ज की गई है. और यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है. विधायक ने बताया कि तसर उद्योग से जुड़े अधिकांश सामान्य सुलभ केंद्र बंद कर दिये गये हैं. ये सामान्य सुलभ केंद्र गांव की महिलाओं के रोजगार सृजन के मुख्य केंद्र हुआ करते थे. विधायक दशरथ गागराई ने सदन में राज्य सरकार से तसर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्पेशल पैकेज की व्यवस्था करने की मांग की है.

2021-22 से तसर कोसा के उत्पादन लगातार घटे

जानकारी के अनुसार झारखंड में तसर उद्योग को बढ़ावा देने को केंद्र व राज्य सरकार लगातार प्रयासरत है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कच्चे तसर के उत्पादन में भारी कमी आ रही है. इस वर्ष राज्य में करीब 1350 मीट्रिक टन कच्चे रेशम का उत्पादन हो पाया है. झारखंड में वित्तीय वर्ष 2013-14 से 2020-21 तक औसतन 2000 मीट्रिक टन से अधिक कच्चे रेशम का उत्पादन होता था. वर्ष 2021-22 से उत्पादन लगातार घटते चला गया.

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देशभर में झारखंड के कुकून की मांग

झारखंड का खरसावां-कुचाई ऑर्गेनिक रेशम उत्पादन के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां रेशम कीट पालन से लेकर कोसा उत्पादन तक में रसायन का उपयोग नहीं होता है. यहां के कुकून की काफी मांग भी है. मालूम हो कि देश में उत्पादित तसर में 60 से 65 प्रतिशत झारखंड में होता है. पूरे राज्य के 35 फीसदी तसर कोसा का उत्पादन कोल्हान में होता है. देश में वर्तमान में 3.5 लाख लोग तसर आधारित कारोबार से जुड़े हैं. इनमें 2.2 लाख लोग झारखंड के विभिन्न हिस्सों में जुड़े हैं.

झारखंड में कच्चे रेशम उत्पादन का वर्ष वार डाटा

वित्तीय वर्ष : कच्चे रेशम का उत्पादन

  • 2013-14 : 2000 मीट्रिक टन
  • 2014-15 : 1943 मीट्रिक टन
  • 2015-16 : 2281 मीट्रिक टन
  • 2016-17 : 2630 मीट्रिक टन
  • 2017-18 : 2217 मीट्रिक टन
  • 2018-19 : 2372 मीट्रिक टन
  • 2019-20 : 2399 मीट्रिक टन
  • 2020-21 : 2184 मीट्रिक टन
  • 2021-22 : 1051 मीट्रिक टन
  • 2022-23 : 874 मीट्रिक टन
  • 2023-24 : 1127 मीट्रिक टन
  • 2024-25 : 1350 मीट्रिक टन

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