खरसावां. सरायकेला-खरसावां में इन दिनों पलाश के फूल कुदरती सुंदरता को बढ़ा रहे हैं. सरायकेला, खरसावां, कुचाई, चांडिल, ईचागढ़, नीमडीह आदि के जंगलों में पलाश के फूल लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. आम तौर पर यह फूल बसंत ऋतु में खिलने लगता है. होली के आस-पास यह चरम पर रहता है. पलाश को कई जगहों पर टेसू के नाम से भी जाना जाता है. झारखंड का राजकीय फूल पलाश कई मायने में लाभकारी है. इस मौसम में जंगल लाल रंग की चादर ओढ़ लेते हैं.
पलाश फूल से तैयार होता है प्राकृतिक रंग
होली का त्योहार आने वाला है. इन दिनों पलाश के फूलों की बहार है. लाल रंग के खूबसूरत फूल को लोग होली के कई दिनों पहले से पानी में भिगो कर रख देते हैं. उबालकर इससे रंग बनाते हैं. इस रंग से होली खेली जाती है. इसकी खुशबू से सारा वातावरण महक उठता है.
औषधीय है पलाश का पेड़
पलाश का पेड़ औषधीय होता है. इसके पत्ते, फूल और छाल से दवा बनायी जाती है. कई बीमारी का इलाज होता है. क्षेत्र के कई गांवों में अब भी पलाश के फूल से बने रंगों से होली खेती जाती है. सुदूरवर्ती इलाकों में सदियों से लोग पलाश के फूल से बने रंग से होली खेलते हैं. पलाश के पेड़ के फूल, बीज और जड़ों से औषधि बनाई जाती है. पौराणिक काल से ही आयुर्वेद में इसका प्रयोग किया जाता रहा है.
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