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World Handicapped Day 2022: विश्व दिव्यांग दिवस पर दिव्यांगजनों के संघर्ष और जुनून की कहानियां

आज विश्व दिव्यांग दिवस है. इस वर्ष का थीम है समावेशी विकास के लिए परिवर्तनकारी समाधान. इसके माध्यम से दिव्यांगजनों के जीवन को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसी खास दिन पर ऐसे दिव्यांगजनों के संघर्ष और जुनून की कहानी बयां की जा रही है. इनका संदेश है, हम किसी से कम नहीं.

कहते हैं अगर लगन और मेहनत हो, तो कोई भी परेशानी मायने नहीं रखती, चाहे वो शारीरिक हो या आर्थिक. कुछ यही कर दिखाया है जोन्हा स्थित बांधटोली निवासी दिव्यांग तीरंदाज जीतू राम बेदिया ने. पैरों से दिव्यांग जीतू के पिता लखीराम मजदूरी करते हैं और घर की आर्थिक स्थिति खराब है. इसी बीच जीतू को कोच रोहित ने तीरंदाजी सिखाना शुरू किया. दो वर्ष जमकर मेहनत की और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद इनका चयन राष्ट्रीय पारा राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए हुआ. इसमें जीतू ने झारखंड के लिए दो कांस्य पदक हासिल किये. फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. जीतू ने 2022 में हरियाणा में हुई तीसरी पारा सीनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता के टीम इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया. जीतू का सपना है कि पारा ओलिंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करना. कोच रोहित कहते हैं : जीतू दिव्यांग जरूर है, लेकिन तीरंदाजी में किसी से कम नहीं है.

डॉ मोहित की आंखों की रोशनी चली गयी, लेकिन जुनून साथ है

रांची विवि के पीजी इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यांग डॉ मोहित लाल कहते हैं : यदि विषय पर पकड़ है, तो बच्चे आपकी बात समझ जाते हैं. उनकी आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गयी थी, लेकिन लगन और जुनून ने इस मुकाम तक पहुंचाया. वह कहते हैं : यहां तक आने में परेशानी जरूर हुई, लेकिन हौसला नहीं खोया. बचपन में टाइफाइड की चपेट में आने के बाद जब दवाइयां ली, तो रिएक्शन कर गया. बाद में आंखों की रोशनी चली गयी. फिर 1981-82 में संत मिखाइल ब्लाइंड स्कूल में पढ़ाई की. 1983-1984 में घर में रहकर तैयारी की और 10वीं की परीक्षा में शामिल हुआ. फिर संत जेवियर्स कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान सामान्य विद्यार्थियों के साथ बैठकर और शिक्षकों का लेक्चर सुनकर स्नातक की पढ़ाई पूरी की.

डॉ जेपी खरे के सम्मान के पीछे छिपा है इनका बेमिसाल संघर्ष

रांची विवि के पॉलिटिकल साइंस के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जयप्रकाश खरे देख नहीं सकते, लेकिन इनके छात्र आज देश और दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं. वर्ष 2006 में डॉ खरे को महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने सम्मानित किया था, लेकिन इस सम्मान के पीछे इनका बेमिसाल संघर्ष छिपा हुआ है. डॉ जेपी खरे की आंखों की रोशनी जन्म से ही चली गयी थी, लेकिन पढ़ाई के प्रति जुनून ने इन्हें यहां तक पहुंचाया. डॉ खरे कहते हैं : मारवाड़ी कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में स्नातक की पढ़ाई की और इसके बाद पीजी विभाग से पीजी. 1992 में जेआरएफ भी मिला. 1996 में कमीशन से असिस्टेंट प्रोफेसर बन गये. वह कहते हैं : मैंने सुनकर अपनी पढ़ाई पूरी की और डी. लिट भी ऐसे ही पूरा किया. अब तक कई अवार्ड मिल चुके हैं.

खुद के साथ दूसरों को पैरों पर खड़ा कर रहे धुर्वा के राजू

धुर्वा निवासी राजू सिंह खुद को दिव्यांग नहीं मानते. दोनों पैर एक दुर्घटना में खो चुके हैं. दिनचर्या के सभी काम खुद करते हैं. वह सिर्फ दिव्यांगों के लिए ही नहीं, बल्कि सामान्य लोगों के लिए भी मिसाल हैं. पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं. सुकुरहुटू कांके में दिव्यांगों के उत्थान के लिए खुद के खर्च पर बिरसा विकलांग उत्थान एवं कल्याण समिति का संचालन कर रहे हैं. दिव्यांगों के लिए आश्रय गृह भी है. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का प्रशिक्षण देकर उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं. राजू कहते हैं : 1991 में सड़क दुर्घटना में पैर खोने के बाद इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. वर्ष 2002 में प्रशिक्षण केंद्र की नींव रखी. केंद्र के माध्यम से कई दिव्यांगजन अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं. वह कहते हैं : दिव्यांग एक सामान्य आदमी की तरह सबकुछ कर सकते हैं.

सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित सौरव कर रहे मेडिकल की पढ़ाई

बूटी मोड़ निवासी सौरव कुमार हजारीबाग से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं. बचपन से ही सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित हैं. शरीर के मूवमेंट में परेशानी होती है. छड़ी को अपना सहारा बनाया है. मां पुष्पा देवी हर पल उनके साथ रहती हैं. सौरव का इलाज एम्स तक हुआ. वहां डॉक्टरों ने आइक्यू टेस्ट किया, जिसका परिणाम बहुत अच्छा था. इसके बाद पुष्पा देवी ने ठान लिया कि कुछ भी हो, बेटे को पैरों पर खड़ा करके रहेंगी. सौरव न केवल पढ़ाई बल्कि बेहतरीन पेंटर और सिंगर भी हैं. प्लस टू के बाद नीट यूजी की तैयारी की. हालांकि सीट नहीं मिली. दूसरे प्रयास में सीट मिल गयी. सौरव ने कहा : मेरे जैसे बच्चों का आइक्यू मजबूत होता है. यदि आपके बच्चे का आइक्यू ठीक है, तो बच्चा सबकुछ कर सकता है. उसे रोकिये मत. वह शरीर से दिव्यांग है, मन से नहीं. दिव्यांग जनाें के मां-पिता को मेरी मां की तरह मजबूत बनने की जरूरत है.

शारीरिक चुनौती का सामना कर बीना बढ़ रहीं आगे

कोकर बाजार निवासी बीना कुमारी बचपन से ही पोलियो ग्रसित हैं. लेकिन उन्हें इस बात का कोई दु:ख नहीं. बल्कि खुशी है कि अपने पैरों पर खड़ी हैं. कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम भी कर चुकी हैं. वर्तमान में टेक महिंद्रा में कस्टमर सर्विस एग्जीक्यूटिव के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं. बीना के आर्ट एंड क्राफ्ट की सराहना राज्यपाल रमेश बैस भी कर चुके हैं. वह कोराेना के पहले जयपुर में कार्यरत थी. इसी दौरान अपने घर रांची लौट गयीं. वर्क फॉर्म होम के दौरान सिंगापुर की कंपनी के साथ काम किया. 10वीं तक की पढ़ाई चेशायर होम से की है. वर्ष 2021 में खेलगांव में हुई मिस इंडिया डिसेबल प्रतियोगिता की विजेता रही हैं. बीना कहती हैं : दिव्यांगता के प्रति समाज का रवैया नकारात्मक है. सबसे पहले किसी भी शारीरिक चुनौती को हृदय से स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए.

रिपोर्ट : लता रानी, रांची

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