विश्व आइवीएफ दिवस आज
झारखंड में हाल के वर्षों में बांझपन की समस्या तेजी से सामने आ रही है. खासकर शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले युवा दंपतियों के बीच. बदलती जीवनशैली, असंतुलित खानपान, मानसिक तनाव, देर से विवाह, नशे की बढ़ती लत और प्रदूषण इसके प्रमुख कारण बनकर उभरे हैं. महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन, पीसीओएस और थायरॉयड की समस्याएं, जबकि पुरुषों में शुक्राणु की गुणवत्ता में गिरावट चिंताजनक रूप से बढ़ रही है. ऐसे में आइवीएफ जैसी तकनीकें संतान सुख से वंचित दंपतियों के लिए आशा की नयी किरण बनकर उभरी है. हालांकि, जागरूकता की कमी, सामाजिक भ्रांतियां और खर्च इसकी राह में अब भी बड़ी बाधाएं हैं. विश्व आइवीएफ दिवस के अवसर पर यह जरूरी हो जाता है कि हम न केवल इसकी वैज्ञानिकता को समझें, बल्कि समाज में फैल रही गलतफहमियों को भी दूर करें. इस उम्मीद की किरण में आइवीएफ पद्धति का दायरा भी बढ़ता जा रहा है. राजधानी रांची में इस समय करीब 20 आइवीएफ सेंटर संचालित हो रहे है. इस विशेष अवसर पर झारखंड में बांझपन की वास्तविक स्थिति, कारण और समाधान की पड़ताल करती मुख्य संवाददाता राजीव पांडेय की खास रिपोर्ट…झारखंड में 10 में से दो महिला बांझपन की शिकार
झारखंड में बांझपन की समस्या बढ़ रही है. महिला चिकित्सकों ने बताया कि 10 में दो महिला इस समस्या से परेशान हैं. वहीं, इन दो महिला में से 30 फीसदी को आइवीएफ अपनाना पड़ता है. बांझपन के लिए ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बिगड़ी जीवनशैली को मना जा रहा है. इसके अलावा शहरी क्षेत्र में 30 से अधिक उम्र में शादी को भी कारण माना जाता है. महिला चिकित्सकों ने बताया कि पहले 18 से 25 साल की उम्र में शादी हो जाती थी, जो अब बढ़ गयी है.
झाड़-फूंक और झोलाछाप भी बड़ा कारण
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़-फूंक और झोलाछाप के चक्कर में अशिक्षित दंपती चले जाते हैं. कई साल बाद जब निराशा हाथ लगती है तब दंपती डॉक्टरों के पास पहुंचते हैं. तबतक काफी देर हो जाती है. बताते हैं कि जानकारी नहीं होने की वजह से इलाज में देर हुई.कोलियरी और औद्योगिक क्षेत्र में बांझपन का ज्यादा प्रभाव
बांझपन के जोखिम को बढ़ाने में कई कारण हो सकते हैं. सामान्य स्वास्थ्य स्थितियां, आनुवंशिक, जीवनशैली, मोटापा, नशे का सेवन, दवा और उम्र, ये सभी बांझपन के कारण हो सकते हैं. डॉक्टर ने बताया कि झारखंड में कोलियरी और औद्योगिक क्षेत्रों को भी बांझपन का कारण माना जाता है. वहीं, फैक्ट्री में काम करने वालों को समस्या होती है. फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों का शुक्राणु कम बनता है, क्योंकि गर्मी की वजह से परेशानी होती है.
झारखंड में 50-50 फीसदी महिला और पुरुष जिम्मेदार
झारखंड में बांझपन के लिए महिला और पुरुष 50-50 फीसदी जिम्मेदार हैं. पहले यह आंकड़ा दोनों में 40-40 फीसदी और 10 फीसदी दोनों में मिला हुआ था. अब यह आंकड़ा बराबरी में पहुंच गया है. इसके कई कारण हो सकते हैं.क्या है आइवीएफ
आज के समय में खान-पान से लेकर रहन-सहन तक, सभी चीजें बदल गयी हैं. जिसका असर महिलाओं के प्रेग्नेंसी पर भी पड़ता है. कंसिव करने में दिक्कतें आती हैं. यदि कंसिव हो भी जाये तो मिसकैरेज जैसी समस्याएं हो जाती है. ऐसी समस्याओं से निजात पाने के लिए आइवीएफ ट्रीटमेंट किया जाता है. जब महिला का शरीर ऐग को फर्टिलाइज करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे लैब में फर्टीलाइज कराया जाता है. इसमें महिला के ऐग्स और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है. एक बार जब इसके संयोजन से भ्रूण का निर्माण हो जाता है, तो उसे वापस महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है.
इतिहास और महत्व
पहला सफल आइवीएफ : बेबी लुइस ब्राउन का जन्म 25 जुलाई 1978. इसी दिन बांझपन के बारे में लोगों को जागरूक करने और आइवीएफ तकनीक को अपनाने की जानकारी दी जाती है.——————————
सफलता दर 60-65 फीसदी
आइवीएफ सेंटर संचालित करने वालों का दावा है कि इस पूरी प्रक्रिया का सक्सेस रेट 60 से 65 फीसदी है. वहीं, सूत्र बताते हैं कि जितनी जल्दी इस प्रक्रिया को अपनाया जाये सफलता दर बढ़ जाती है. 40 वर्ष के बाद आइवीएफ लेने पर सफलता की दर 20 से 25 फीसदी रह जाती है.————-आइवीएफ का जोखिम
आइवीएफ प्रक्रिया में वैसे तो कोई बड़ा जोखिम नहीं होता है. लेकिन, कभी-कभी किसी दंपती में कैंसर होने का खतरा रहता है. इस तरह का जोखिम बहुत कम देखने को मिलता है. आइवीएफ प्रक्रिया में अंडा लेने के लिए बेहोशी के डॉक्टर की देखरेख जरूरी होती है. लेकिन, अंडा ट्रांसफर करने में इसकी जरूरत नहीं होती है.विश्व में 10 मिलियन बच्चे ले चुके हैं जन्म
विश्व में अभी तक 10 मिलियन बच्चे आइवीएफ पद्धति से जन्म ले चुके हैं. इसका आधिकारिक डेटा उपलब्ध है. सबसे ज्यादा विदेशों में आइवीएफ बच्चों का जन्म होता है.भारत में हर साल 2.5 लाख बच्चे लेते हैं जन्म
भारत में आइवीएफ पद्धित से जन्म लेने वाले बच्चों का कोई आधिकारिक डाटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन हर साल आइवीएफ पद्धति से देश में दो से 2.5 लाख बच्चे जन्म लेते हैं.एग फ्रीजिंग की बढ़ी डिमांड
देश में अब एग फ्रीजिंग की डिमांड बढ़ गयी है. कई दंपती अपना एग फ्रीज करा रहे हैं, जिससे वह इच्छा के अनुसार भविष्य में माता-पिता बन सकें. एग फ्रीजिंग के विषय में शहरी क्षेत्र की महिलाएं फर्टिलिटी को लेकर ज्यादा जागरूक हैं.
आइवीएफ को लेकर पांच मिथक
आइवीएफ से पैदा हुए बच्चे कृत्रिम होते हैं.सौ फीसदी सफल होता है.जुड़वां या तीन बच्चों का जन्म हमेशा होता है.आइवीएफ सिर्फ महिलाओं की समस्या के लिए है.
आइवीएफ बहुत असुरक्षित और दर्दनाक प्रक्रिया है.क्या कहते हैं विशेषज्ञ डॉक्टर
अधिक उम्र में शादी और मोटापा से बांझपन के मामले बढ़ रहे हैं. इस तरह के जोड़े आइवीएफ का सहारा ले रहे है. आइवीएफ नयी तकनीक है, जिससे गर्भधारण कराया जाता है. हाल के दिनों में डिमांड बढ़ने से आइवीएफ सेंटर बढ़ रहे हैं.डॉ पुष्पा पांडेय, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ
————–अधिक उम्र में शादी, बिगड़ती लाइफ स्टाइल और स्ट्रेस इनफर्टिलिटी का मूल वजह नहीं है. मूल वजह पुरुषाें में शुक्राणु और महिलाओं में अंडा का नहीं बनना है. कई मामलों में जब दंपती आते हैं तो शुक्राणु और अंडा शून्य मिलता है. ग्रामीण महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब का ब्लॉक होना भी इनफर्टिलिटी का कारण होता है.डॉ रूपाश्री पुरुषोत्तम, आइवीएफ विशेषज्ञ
—————-अधिक उम्र की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्या है, जिसकी वजह से आइवीएफ को दंपती अपना रहे हैं. अब सामान्य प्रसव और सिजेरियन में हो-हल्ला से आइवीएफ सुरक्षित है. यह भी इस पद्धति के बढ़ने का कारण है.
डॉ रूही श्रीवास्तव, आइवीएफ विशेषज्ञB
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