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Ranchi News : पैतृक संपत्ति में बेटे और बेटियों को समान अधिकार : भवेश कुमार

प्रभात खबर की लीगल काउंसेलिंग में झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता भवेश कुमार ने दी कानूनी सलाह.

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रांची.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में वर्ष 2005 में संशोधन हुआ था. पहले बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं होता था. संशोधन के बाद बेटियों को बेटे के समान अधिकार व दायित्व दिया गया है. 20 दिसंबर 2004 के पूर्व यदि संपत्ति का बंटवारा हो चुका है, तो उस पर यह कानून लागू नहीं होगा. उक्त बातें झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता भवेश कुमार ने कही. वह शनिवार को प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में पाठकों के सवालों पर कानूनी सलाह दे रहे थे. श्री कुमार ने यह भी कहा कि माता-पिता की स्वयं की अर्जित संपत्ति पर उनके जीवन काल में जब तक उनकी इच्छा नहीं हो, तब तक उस पर पुत्र, पुत्री अथवा अन्य किसी का कोई अधिकार नहीं होता है. इस दौरान उनसे पेंशन, भूमि अधिग्रहण, क्रिमिनल व सर्विस से संबंधित सवाल पूछे गये.

हजारीबाग के प्रेम कुमार का सवाल :

मेरे पिताजी स्वास्थ्य विभाग से तीन साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे, लेकिन अब तक पेंशन का भुगतान शुरू नहीं हुआ है. क्या करें?

अधिवक्ता की सलाह :

स्वास्थ्य विभाग पेंशन भुगतान के लिए आवेदन दें. सर्कुलर के मुताबिक तीन माह में पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिए. यदि विलंब से पेंशन का भुगतान किया जाता है, तो सूद के साथ भुगतान करना होगा. संबंधित अधिकारी को अभ्यावेदन देने के बाद भी पेंशन, एसीपी, एमएसीपी नहीं मिलता है, तो झारखंड हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकते हैं. न्याय जरूर मिलेगा.

रांची के संतोष कुमार का सवाल :

भारतमाला प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण हो रहा है. अधिग्रहण का सम्मिलित नोटिस दिया गया है, जबकि उनकी भी जमीन जा रही है, लेकिन उन्हें व्यक्तिगत रूप से नोटिस नहीं मिला है, क्या करें?

अधिवक्ता की सलाह :

जमीन अधिग्रहण के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है. भूमि का सर्वे किया जाता है. सोशल इंपैक्ट रिपोर्ट देखी जाती है. जमीन की दर का निर्धारण भी होता है. सेक्शन 30 (2) में व्यक्तिगत अवार्ड घोषित किया जाता है. सेक्शन 38 में जिला कलेक्टर यह सुनिश्चित करेगा कि अर्जित भूमि का मुआवजा भुगतान व पुनर्वास संबंधी कार्य पूर्ण हो चुका है, तभी वह अर्जित भूमि को कब्जे में लेगा. ऐसा नहीं होने पर रैयतों के मामले में झारखंड हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभिन्न वादों में सरकार पर जुर्माना भी लगाया गया है.

तोरपा के मो इस्माइल खां का सवाल :

सरकार ने 1955-56 में प्रखंड के लिए जमीन अधिग्रहण किया था, लेकिन अब भी कुछ जमीन खाली पड़ी है. मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद वह जमीन वापस ले सकते हैं क्या?

अधिवक्ता की सलाह :

जमीन अधिग्रहण का आपने मुआवजा ले लिया है. उस जमीन पर प्रखंड कार्यालय बन चुका है. कुछ जमीन खाली है, तो सरकार उसका कोई और उपयोग करेगी. जमीन आप वापस नहीं ले सकते हैं.

राहे के किशोर कुमार महतो का सवाल :

नाना-नानी को कोई पुत्र नहीं है. उनकी दो पुत्री ही थी. उनकी संपत्ति पर किसका अधिकार होगा?

अधिवक्ता की सलाह :

आपके नाना-नानी की सिर्फ दो पुत्रियां हैं, तो उनकी संपत्ति पर दोनों पुत्रियों का बराबर का अधिकार होगा.

चुटिया से विकास का सवाल :

उन्होंने हाइकोर्ट में एक केस दायर किया है, लेकिन वह लंबित है. सुनवाई नहीं हो रही है. क्या करें?

अधिवक्ता के सवाल :

देखिए, आप अपने वकील से मिलें. उनसे आग्रह करें कि शीघ्र सुनवाई के लिए कोर्ट में मेंशन करायें.

गुमला के कृष्णा साह का सवाल :

जमीन 28 डिसमिल है, पर गलती से 58 डिसमिल दर्ज करा लिया गया है. जमाबंदी भी चल रही है. उसे कैसे सुधारा जा सकता है?

अधिवक्ता की सलाह :

यदि लंबे समय से जमाबंदी चली आ रही है, तो उसे रद्द कराने के लिए आपको सिविल कोर्ट में पिटीशन दायर करना होगा. कोर्ट जाने पर उचित कारण भी बताना होगा. यह कोर्ट पर निर्भर करेगा कि वह मानता है या नहीं.

मो इस्माइल का सवाल :

मेरी पत्नी ने मंईयां सम्मान योजना के लिए आवेदन दिया था. सभी अर्हता पूरी करती है, लेकिन उसे लाभ नहीं मिल रहा है. क्या करें?

अधिवक्ता की सलाह :

आप उपायुक्त, एसडीओ को लिखें. सभी कागजात के साथ पुन: आवेदन दें. इसके बाद भी योजना का लाभ नहीं मिलता है, तो आप हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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